” सुनिये..आज मनु के स्कूल जाना है, उसका पीटीएम है…आप 11बजे तक स्कूल आ जायेंगे ना..।” सुधा ने अपने पति वरुण से कहा जो ऑफ़िस के लिये निकल रहे थे।चलते- चलते उन्होंने कह दिया, ” हाँ- हाँ..आज मेरी कोई मीटिंग नहीं है..आ जाऊँगा।”
सुधा एक मध्यवर्गीय परिवार की लड़की थी।उसके पिता पर तीन बच्चों और माता-पिता की ज़िम्मेदारी थी जिसकी वजह से वो सबकी इच्छाएँ पूरी नहीं कर पाते थें।वो जब अपनी सहेलियों को बड़ी गाड़ियों में स्कूल आते देखती..जन्मदिन पर महंगी ड्रेस पहनकर सभी को चाॅकलेट बाँटते देखती तब वो अपनी दादी से पूछती कि हम अमीर क्यों नहीं है..दूसरों की तरह हमारे पास मोटर-महंगे कपड़े क्यों नहीं है? तब उसकी दादी हँसते हुए उसे समझाती कि बिटिया…
तेरे पिता ईमानदारी से अपनी मेहनत की कमाई से परिवार चलाते हैं और चैन की नींद सोते हैं।अमीर लोगों के पास पैसा तो बहुत है लेकिन आराम नहीं..दिमाग में सैकड़ों टेंशन और अपने परिवार के लिये समय नहीं..इसलिये तो बेटी…सोने के पिंजरे से ज़्यादा आत्मस्वाभिमान की टूटी-फूटी झोंपड़ी कहीं ज़्यादा अच्छी होती है।लेकिन उसके नन्हें मस्तिष्क में दादी की बड़ी-बड़ी बातें समझ में नहीं आती।बड़े होने पर वह रोज भगवान से एक ही प्रार्थना करती कि मेरी शादी एक अमीर घराने में हो जाये।
काॅलेज़ के वार्षिकोत्सव पर सुधा ने एक नृत्य किया था।मुख्य अतिथि शहर के नामी बिजनेसमैन उससे बहुत प्रभावित हुए और एक रविवार अचानक अपनी पत्नी के संग उसके घर पहुँच गये।वो सुधा के पिता को अपना परिचय देते हुए बोले कि हमें आपकी बेटी बहुत पसंद है।हम अपने बेटे वरुण जो एक गार्मेंट फ़ैक्ट्री का मालिक है, के लिये आपकी बेटी का हाथ माँगने आये हैं।उसे तो जैसे मुँह-माँगी मुराद मिल गई हो और एक शुभ-मुहूर्त में उसका वरुण के साथ पाणि-ग्रहण संस्कार हो गया।
अब सुधा एक बिजनेस मैन की पत्नी और अमीर घराने की बहू थी।वरुण के साथ महंगे रेस्ट्रां में खाना खाकर और खरीदारी करके वो बहुत खुश थी।वो अपनी सहेलियों के साथ इतराकर बात करती…उनके सामने अपने महंगी सामानों की प्रशंसा करती और अपने मायके में भी अपने धनी होने का रौब दिखाती।
कुछ दिनों के बाद वरुण अपने काम पर जाने लगे।ऑफ़िस से आने में अक्सर ही उन्हें देर होने लगती।कभी मीटिंग तो कभी देर रात की पार्टी।सुधा अकेले बोर होने लगी तो पति से शिकायत की।जवाब में वरुण उस पर चिल्लाने लगे।फिर वो मनु की माँ बनी, उसे लगा कि बेटे को तो वरुण अवश्य समय देंगे परन्तु ऐसा नहीं हुआ।उसकी हर शिकायत पर वरुण यही कहते कि किस चीज़ की कमी है तुम्हें .. बंगला, गाड़ी, नौकर-चाकर..सब कुछ तो है तुम्हारे पास।मिडिल क्लास से आई हो ना..रईसों के तौर-तरीके तुम्हें नहीं मालूम…।तब वह चुप रह जाती।अपनी सहेलियों को पति के साथ घूमते देखती तो उसे बहुत बुरा लगता।फिर उसे दादी की कही बात याद आती तो उसकी आँखों से झर-झर आँसू बहने लगते।
मनु चौथी कक्षा में आ गया था।उसकी टीचर ने पीटीएम में उसके पिता को बुलाया था..सुधा ने वरुण को याद दिलाया तो वह आने का प्राॅमिस करके अपने गार्मेंट फ़ैक्ट्री चला गया।वह मनु के साथ वरुण का इंतज़ार करती रही लेकिन हमेशा की तरह इस बार भी वो व्यस्तता के कारण स्कूल नहीं आ सके।अब उसे अपना ही घर एक सोने का पिंजरा महसूस होने लगा था जहाँ उसका दम घुटने लगा था।
एक सीमा तक आकर सफलता की उलटी गिनती शुरु हो जाती है।वरुण की फ़ैक्ट्री भी अब घाटे में जाने लगी।कारीगरों ने हड़ताल कर दी…माल का सप्लाई बंद होने से उनपर कर्ज़ का बोझ आ पड़ा।तब उनके पिता ने मदद करनी चाही लेकिन उन्होंने साफ़ इंकार कर दिया।लेनदार पैसों का तकाज़ा करने लगे तब उन्होंने अपनी फ़ैक्ट्री तथा घर औने-पौने दाम में बेचकर उनके पैसे चुका दिये और बचे हुए पैसों से कपड़े की एक दुकान खोल ली।
अब सुधा दो कमरों के किराये के मकान में रह रही थी जिसकी दीवारें कई जगहों से टूटी हुई थी।बिजली चले जाने पर उसे लैंप जलाना पड़ता था।यहाँ तो कोई नौकर-चाकर भी न था।घर का काम वह स्वयं करती थी फिर भी वह खुश थी क्योंकि यहाँ वरुण उसके पास थे।वो दुकान से सीधे घर आते..उसके साथ बैठकर चाय पीते,हँसकर बातें करतें और मनु के साथ खूब खेलते।उसे अब कुछ और नहीं चाहिये था।वह अपनी इस लाइफ़ से बहुत खुश थी।
एक दिन रोटियाँ बनाते समय उसका हाथ जल गया।खाना परोसते हुए वरुण ने देख लिया तो उसका हाथ सहलाते हुए बोले,” सुधा..मैंने तुम्हें महल से लाकर झोंपड़ी में पटक दिया।तुम्हें रानी से नौकरानी…।” सुधा ने तपाक-से अपना हाथ उनके मुख पर रख दिया और उनकी आँखों में देखते हुए बोली,” सुनिये जी..आपके उस सोने के पिंजरे से ज़्यादा आत्मस्वाभिमान की ये टूटी-फूटी झोंपड़ी कहीं ज़्यादा अच्छी है और मैं यहाँ की महारानी हूँ।आपका साथ जहाँ मिले..हमारे लिये तो वहीं स्वर्ग है।” पत्नी की बात सुनकर वो भाव-विभोर हो गये।वो सुधा को गले लगा ही रहें थें कि मनु आ गया और अपना रिपोर्ट-कार्ड दिखाते हुए बोला,” पापा..मैं कक्षा में प्रथम आया हूँ।कल मेरा पीटीएम है..आप चलेंगे ना…।”
” हाँ- हाँ..ज़रूर चलूँगा।आज मेरी कोई मीटिंग…।” फिर तो वरुण के साथ सुधा और मनु भी हा-हा करके हँसने लगे।
विभा गुप्ता
स्वरचित, बैंगलुरु
# सोने के पिंजरे से ज़्यादा आत्मस्वाभिमान की टूटी-फूटी झोंपड़ी कहीं ज़्यादा अच्छी होती है