शकुन्तला जी बिलकुल जीर्णावस्था में आ चुकी थीं । सभी ने उनके बचने की उम्मीद छोड़ दी थी । बस अब किसी भी वक्त भगवान के घर से उनका बुलावा आ सकता था ।
उनके दोनों बेटे, बहुएं और पोता पोती सब आखिरी वक्त उनकी सेवा में लगे थे। उनकी बेटी अंकिता भी अपनी माँ से अंतिम बार मिलने आ पहुंची थी।
बिस्तर पर पड़े- पड़े शकुन्तला जी अपने भरे पुरे परिवार को निहारती रहतीं तो कभी शून्य में ताकते हुए भगवान से मुक्ति की याचना करती रहतीं ।
अंकिता शकुन्तला जी के कमरे में ही सोई थी। सुबह जब अंकिता की छोटी भाभी कमरे में अपनी सास के कपड़े बदल रही थी तो उसने देखा कि सास के गले में सोने की चेन नहीं है ।
उसने ये बात घर में सभी को बताई तो ननद अंकिता बोली, ” भाभी वो कल रात को मां ने ही अपने गले की चेन मुझे दी थी कहा कि मेरी निशानी समझ के रख ले । ,,
किसी ने अंकिता को कुछ भी नहीं कहा सोचा चलो कोई बात नहीं मां की जैसी मर्जी ।
शकुन्तला जी की हालत देखकर उस वक्त कोई भी इस बारे में बहस नहीं करना चाहता था। शाम तक शकुन्तला जी की तबियत ज्यादा खराब हो गई और उनकी सांसें हमेशा के लिए थम गई । उनके अंतिम संस्कार की सारी रस्में पूरी करके सारा परिवार साथ में बैठा था और उनकी बातों को याद कर रहा था । उनके सामान को सब देख- देख कर अपना बचपन याद कर रहे थे ।
तभी अंकिता बोल पड़ी , ” भईया , माँ हमेशा कहती थी कि मेरी सोने की चूड़ियाँ मैं तुझे दे कर जाऊंगी। माँ तो बेचारी चली गई अब उनकी इच्छा कौन पूरी करेगा । मुझे गहनों का कोई लोभ नहीं है.. मैं तो बस माँ की इच्छा बता रही हूँ….।,,
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अंकिता के भाई भाभी सब समझ रहे थे कि अंकिता माँ के गहने हथियाना चाहती है। लेकिन किसी की कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी ।
लेकिन बड़ी भाभी बहुत समझदार थी । वो बोल पड़ी, दीदी कुछ दिनों पहले ही माँ ने कहा था कि मेरे गहनों को मेरे नाती पोतों के बीच बराबर बांट देना।
इसलिए जब आपके और हमारे बच्चों की शादी होगी तब इन सारे गहनों को हम उनमें बराबर बांट देंगे……आखिर माँ की अंतिम इच्छा का मान रखना हम सब का फर्ज है । इसलिए ये चूड़ियाँ हम अभी आपको नहीं दे सकते….. वैसे भी मां की निशानी के रूप में आपके पास मां ने आपको चेन तो दे ही दी है । ,,
अंकिता के पास इसका कोई जवाब नहीं था। उसकी चाल नाकाम हो गई और बाकी सब संतुष्ट थे कि किसी के साथ अन्याय नहीं हुआ ।
लेखिका : सविता गोयल