मैं तो अमृत पीकर आई हूं –  हेमलता गुप्ता : Moral stories in hindi

आह.. रवि कहां हो तुम ..प्लीज जल्दी आओ.. यार देखो.. गरम-गरम तेल मेरे हाथ और  पेट पर गिर गया और  बहुत जलन हो रही है, प्लीज.. जल्दी से डॉक्टर के पास चलो ना..! बस हो गए तुम्हारे सुबह से नाटक चालू? फिर एक नया बखेड़ा कर लिया खड़ा तुमने,.. ऐसा क्या कर रही थी किचन में, जो खुद को जला लिया, ध्यान से काम  करना  तो कभी सीखा ही नहीं !

अरे यार… वह थोड़ा सा तेल था कढ़ाई में, तो मैंने सोचा उसमें थोड़े से पापड़  तल लूं .. पापड़ को दबा रही थी चिमटे से, कि वह कढ़ाई एकदम से मेरे ऊपर आ गिरी और गरमा गरम तेल मेरे पेट, हाथ  और पैर पर फैल गया, वह तो गनीमत रही मेरा चेहरा नहीं बिगड़ा, देखो कितना लाल और फफोले हो गई !चलो ठीक है.. तुम्हें डॉक्टर को दिखा लाता हूं,  तुम यार ध्यान से काम किया करो, तुम हमेशा ही ऐसा करती हो, बहुत लापरवाही है तुम्हारे अंदर!

हां हां ध्यान रखूंगी अब… चलो तो सही..! डॉक्टर के यहां से आने के बाद नीलम ने आज शाम का खाना बाहर से आर्डर कर दिया  क्योंकि दर्द और जलन की वजह से उसे बुखार भी आ गया था! शाम को उसकी बेटी प्रिया अपने कुछ दोस्तों को घर पर ले आई यह जानती हुए भी की उसकी मम्मी की तबीयत सही नहीं है और आते ही हुकुम छोड़ दिया…. मम्मी.. फटाफट से गरमा गरम सैंडविच या पाव भाजी बना दो और साथ में चार कप कोल्ड कॉफी  बना दो और मम्मी थोड़ा जल्दी करना मेरे दोस्तों को जाना भी है!

लेकिन बेटा मुझे तो आज बुखार आ रहा है, तुम्हें पता ही है ना आज सुबह में कितना जल गई थी और  दर्द और जलन की वजह से मुझे बुखार हो गया तो बेटा मुझसे तो कुछ भी काम नहीं होगा और मैंने आज खाना भी बाहर से ही ऑर्डर कर दिया, तुम चाहो तो तुम भी अपने फ्रेंड्स के लिए बाहर से कुछ खाने पीने को मंगा लो..! अरे यार.. मम्मी.. यह लोग तो आपके हाथ का खाने आए थे अब मैं  इनको  क्या बोलूं ..? 

क्यों.. क्या उनकी मम्मी बीमार नहीं पड़ती? बोल नहीं सकती कि मेरी मम्मी की तबीयत खराब है, और जब सही हो जाएगी उस दिन तुम्हें पार्टी दे दूंगी! तुम तो वैसे भी आए दिन किसी न किसी  दोस्त को घर पर लाती ही रहती हो, मैंने आज तक कभी कोई कसर छोड़ी है उनकी खातिरदारी करने में ?”मेरे बीमार होने से किसी को फर्क नहीं पड़ता है” !तुम्हारे तो अगर जुकाम खांसी भी होती है तब भी तुम्हें सारी चीज बेड पर चाहिए होती है,

इतने में ही प्रिया के पापा घर आ गए और बोले यार… प्लीज बहुत गर्मी हो रही है, कुछ जल्दी से ठंडा ठंडा बना दो और कुछ खाने को भी बना दो! नहीं यार… आज तो मेरे से कुछ भी नहीं होगा.. मुझे बुखार हो रहा है, या तो तुम खुद बना लो या फिर बाहर से आर्डर कर दो! वैसे मैंने खाना तो ऑर्डर कर दिया है आता ही होगा तो सभी लोग टाइम से खाना ही खा लेना! अरे यार… आदमी ऑफिस से थका हुआ आए और घर पर हर समय बीमार पत्नी का चेहरा देखने को मिले तो आदमी का मूड खराब नहीं होगा क्या.?

जब देखो जब तुम्हारी बीमारी चलती रहती है, रहने दो तुम तो बस… हमेशा आराम ही करो, मुझे खाना होगा वह मैं देख लूंगा, और ऐसा कहकर वह बाहर चला गया! तब नीलम और भी ज्यादा दुखी हो गई अपने पति  और बेटी के रवैया को देखकर और सोचने लगी… क्या मैं कभी बीमार नहीं हो सकती, मुझे कोई शौक थोड़ी  है बीमार होने का.?

मैं क्या अमृत पीकर आई हूं, पर यह लोग समझते क्यों नहीं है, क्यों मेरे बीमार होने से किसी को फर्क नहीं पड़ता! बजाए इन की सहानुभूति के, बल्कि उनकी गुस्से की और भागीदार बन जाती हूं! किंतु उसके बाद नीलम ने सोचा.. अरे यार यह तो रोज का ही ड्रामा है इन लोगों का, क्योंकि हर बार बीमार पड़ने पर भी मैं इनको हाथों में कर करके देती हूं, किंतु अब बस… मेरी भी दर्द तकलीफ होती है.. आज के बाद बाप बेटी  कितना ही चिड़चिड़ाए या कुछ भी करें.. मुझे भी पूरा हक है अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने का और मैं ऐसा ही करूंगी! और फिर नीलम दवाई लेकर जाकर सो गई!

 हेमलता गुप्ता स्वरचित 

 मेरे बीमार होने से किसी को फर्क नहीं पड़ता है

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