‘ मैं शादी क्यों करूँ? ‘ -विभा गुप्ता

आज फिर एक लड़के वाले ने नयना को यह कहकर रिजेक्ट कर दिया कि उसकी हाइट कम है।पिछले सप्ताह भी सहारनपुर से एक सीए लड़का उसे देखने आया था।उसे देखने और नुमाइश के बाद यह कहकर चला गया कि रंग ज़रा साँवला है,मुझे तो गोरी लड़की चाहिए।अब तो जैसे उसे रिजेक्ट होने की आदत-सी पड़ गई थी।

           उसने अपना मुँह धोकर मेकअप की मोटी परत उतारी और भारी भरकम साड़ी बदलकर हल्के गुलाबी रंग की साड़ी पहनी।बैग में दो किताबें और कुछ कागज़ात रखकर काॅलेज के लिये निकल ही रही थी कि बुआजी कमरे में आ धमकी।खींसें निपोरते कहने लगी, ” बिटिया,

जी छोटा ना कर, अभी इससे भी अच्छे लड़के….।” ” बस बुआजी, बंद कीजिये ये देखने-दिखाने का नाटक।” वह चीख पड़ी।तभी माँ कमरे में आ गई।उन्होंने नयना को डाँटा, ” तू अपनी बुआजी से कैसे बात कर रही है?आखिर वो तेरे भले के लिये ही तो कह रहीं है ना।चल, माफ़ी माँग इनसे।”

             ” माफ़ी…, किस बात की माँ? पिछले चार बरसों से जो तुम मुझे सजा-धजाकर मेरी प्रदर्शनी लगाती हो और बाज़ार की मिठाइयों को मेरे हाथ की बताकर झूठी तारीफ़ करती हो, उसके लिए या फिर मेरे चेहरे पर पाउडर पोतकर मुझे गोरी दिखाने का और हाई हील की सैंडिल पहना कर मेरी हाइट को बढ़ाने का जो असफल प्रयास करती हो,उस  बात की माफ़ी माँगू?” नयना चीखते हुए अपनी माँ से पूछी।

                “माँ, आखिर तुम मेरी शादी क्यों कराना चाहती हो? ससुराल वालों की सेवा करने के लिए या फिर उनका वंश चलाने वास्ते बेटा पैदा करने के लिए या फिर मैं बेटा पैदा करने में असमर्थ हूँ तो मेरा पति दूसरी शादी करके मेरी छाती पर सौत लाकर बिठा दे और मैं सारी उम्र

उसकी चाकरी करती रहूँ।या फिर तुम्हारा दिया हुआ दहेज उन्हें कम पड़ जाये तो रीमा जीजी की तरह मुझे भी जलाकर मार डाला जाये।उनका बेटा शराबी बने तो मैं दोषी कहलाऊँ और असमय मृत्यु हो जाये तो डायन भी


मैं ही कहलाऊँ।उनका बेटा इधर-उधर मुँह मारे, मुझे मारे-पीटे तो कोई बात नहीं, मैं किसी पुरुष से बात कर लूँ तो कुलटा-कुलछनी भी बन जाऊँ।दिन-भर काम करके रात को दो रोटी खाने को बैठूँ तो सब्ज़ी की जगह सासूजी की गालियाँ खाने को मिले जैसे कि निरूपमा भाभी को बुआजी से मिलती है

और यदि सही-सलामत जवानी कट गई तो बुढ़ापा या तो बहू की तीमारदारी में कटेगा या फिर बोझ समझकर बेटा वृद्धाश्रम में फेंक आयेगा जैसे कि वृंदा काकी का बेटा उन्हें फेंक आया है।

            हाँ, शायद तुम्हें यह डर सता रहा है कि कहीं मैं भी निर्भया-दामिनी न बन जाऊँ तो माँ, तुम्हें बता दूँ कि अधिकांश भेड़िये तो ससुराल में ही रिश्तों के रूप में छिपे रहते हैं।भाग्य में लिखा होगा दुर्गति होनी तो यहाँ क्या और वहाँ क्या। क्या यही सब होने देने के लिये मेरी शादी करा देना चाहती हो?

बोलो माँ, कोई एक कारण तो बताओ।”  वह दोनों हाथों से माँ के कंधों को झकझोरती हुई बोली।माँ ने कोई जवाब नहीं दिया।तब वह धीरे से बोली, “तुम क्या जवाब दोगी, तुमने तो खुद ही एक कुलदीपक को जनने के लिए तीन-तीन लक्ष्मियों को कोख में ही मार दिया है।” कहकर उसने अपना बैग उठाया और काॅलेज चली गई।

              बुआजी बोली, ” देखा भाभी, कमाने लगी है तो कैसी गज भर की ज़बान हो गई है।बस अब तो जो भी मिले, इसका निबटारा कर ही….।” “बस करो जीजी, अब इस घर में नयना की शादी की बात कोई नहीं करेगा।”

                 “हैं..ये क्या कह रही हो भाभी? आपकी आँखों पर भी परदा पड़ गया है क्या? लोग क्या कहेंगे,ये भी सोचा है?” बुआजी ने आश्चर्य से पूछा तो माँ ने जवाब दिया, “परदा पड़ा नहीं है जीजी, आँखों पर से परदा हट गया है।रही बात लोगों की तो जीजी, नयना मेरी बेटी है,कोई बोझ नहीं।उसकी पसंद-नापसंद का ख्याल रखना मेरा काम है ,लोगों का नहीं।” माँ के चेहरे पर एक दृढ़ विश्वास और संतोष के भाव था कि देर से ही सही,उन्होंने एक सही निर्णय लिया है।

                ——– विभा गुप्ता 

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