रत्ना नाम था उस प्यारी सी बहु का। वर्मा जी के घर जब वो बहु बनकर आई तो ऐसा लगा जैसे घर में रत्नों की बहार आ गई। एक निजी कंपनी में कार्य कर रहा उनका लड़के भावेश का अचानक प्रोन्नति हुआ और वो मैनेजर बन गया। सभी ने माना कि घर मे लक्ष्मी के आने से ही ऐसा हुआ है।
करीब छह महीने बाद उसने कंपनी बदली तो आगे एरिया मैनेजर की पोस्ट मिली। अब घर में खुशी का ठिकाना नही था। भावेश को शहर छोड़कर किसी और शहर में जाना था इसलिए वो तो निकल गया। एक दो महीने बाद उसने चाहा कि अब रत्ना भी उसके पास आ जाये तो अच्छा रहेगा। कंपनी के तरफ से उसे बंगला और गाड़ी भी मिला था।
जब भावेश ने रत्ना को ये बात बताई तो रत्ना पहले तो बहुत खुश हुई पर बाद में खुद के हृदय पर पत्थर रखकर बोली..” भावेश जी मैं कैसे जा सकती हुँ आपके साथ…?
” क्यो क्या हुआ…?
” घर पर माँ पापा की सेवा कौन करेगा…? यहाँ मेरी एक जिम्मेदारी है। पापा, माँ जी, बिट्टी और देवर जी सबको देखना पड़ता है।
भावेश हँसता हुआ बोला…” सबकी इतनी चिन्ता ….! अच्छा है मेरी जान पर मेरी चिंता कौन करेगा। रही बात सेवा की तो तुम मेरी मां और पापा को अभी से बुजुर्ग मत बना दो।
रत्ना मायूस होकर बोली ” मैंने ऐसा नही कहा।
भावेश रत्ना को अपनी तरफ खींचता हुआ बोला..” मेरी माँ और बहन अभी यहाँ सब देख लेंगी। पर अभी तुम्हारी जरूरत मेरे साथ है रत्ना। जब समय आएगा तो पापा और माँ की सेवा के लिए मैं तो हुँ ना। हमें वहाँ पूरा जीवन थोड़ी ना बिताना है। अब तुम तैयारी करो , हमलोग परसो यहाँ से निकलेंगे।
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रत्ना थोड़ी अटकती हुई सी बोली..” प पर एक बार माँ से बात कीजिये।
ह्म्म्म…..! कर लूँगा…! सुबह जरूर बात करूँगा।
इतना कहकर भावेश ने रत्ना को प्यार भरी निगाहों से देखता हुआ पापा के पास बाहर निकल गया।
सुबह हुई तो रत्ना या भावेश को कुछ कहने की जरूरत नही पड़ी। किचन के खटकते बर्तन और बिट्टी की आवाज से पता चल गया था कि बात शुरू हो गई है। भावेश के लिए ये पहला अनुभव था पर रत्ना के लिए नया नही था।
हो गया अब घर का बँटवारा…! भाभी ने कर दिया मेरे दोनों भाइयों को अलग…! हो गई तरक्की इस घर की।
बेटी बिट्टी जो किचन में चाय बना रही थी चिल्ला चिल्ला कर ताने मार रही थी…” अब मेरी शादी का क्या…? मेरे शादी की तैयारी का क्या…? छोटे की पढ़ाई का क्या…? मेरा क्या मैं तो चली जाऊँगी अपने ससुराल। माँ रह जायेगी नौकरानी बनकर।
बिट्टी…! ये तू क्या कर रही है…? तू चाय बनाएगी तो तेरी हाथ जल जाएंगे बेटा। चल हट… नौकरानी बनकर तो मैं आई थी इस घर में पच्चीस साल पहले। आज तक आराम नहीं मिला। मेरे जीते जी मेरी लाडो के नर्म हाथ किचन में झुलसे ये मैं बर्दाश्त नही करूँगी।
रत्ना पूजा घर से पूजा करके सीधे किचन में आई और काम करने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि सास जी तेज से चिल्लाई…” खबरदार जो कहीं हाथ लगाया तो…! तुम्हे क्या लग रहा है तुम नही रहोगी तो हम भूखे मर जायेंगे। जा बहु तू शहर जा मेरे लाल को अलग कर….!
” माँजी मैं तो..!!
चुप कर…! अब एक भी शब्द नही सुनने मुझे।
भावेश तब तक वहाँ आ चुका था। उसे देखकर माँ और ताव में आ गई और सुनाने लगी रत्ना को। भावेश बेचारा सदमे में था, उसे यकीन नहीं था कि मेरी माँ और बहन रत्ना के लिए ऐसा सोचेंगी। उसने माँ से बड़े प्यार से बोला…” माँ आपकी तबियत बिगड़ जाएगी। मुझे बताइये क्या बात हो गई…? रत्ना से या हमसे कोई गलती हो गई क्या..?
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माँ भड़क कर बोली…” रहने दे तो भावेश…! जा पल्लू में छिपकर रह। बहन की शादी , भाई का पढ़ाई…! ये सब तो मेरे पापा देख लेंगे। तेरी या रत्ना की कोई जिम्मेदारी नहीं है ना..!
नही माँ नही…! आप ऐसा क्यों कह रही हो। मेरे रहते पापा को कोई जिम्मेदारी नहीं लेने दूँगा। आप हुकुम तो करो। हमें करना क्या है..?
नही नही…! तू रत्ना के साथ शहर में रह बेटा। हमारा क्या…? हमारी लाडो का क्या..? उस फूल सी बच्ची पर अब घर का बोझ डालेगा तू।
अब भावेश को सारा माजरा समझ आ गया था। उसने तुरंत अपना निर्णय बदला और बोला..” माँ यदि रत्ना के जाने की वजह से ये सब हंगामा है तो साफ साफ कहिए हम उस नौकरी और शहर को छोड़ देंगे। वापस अपने ही शहर में कर लेंगे नौकरी।
मैंने ऐसा कब कहा कि तुम नौकरी छोड़ दो। क्या जरूरत है बहु को ले जाने की। इसकी जिम्मेदारी नहीं है क्या ननद की शादी की तैयारी करें। उसे कुछ सिखाये, समझाए।
रत्ना वहाँ खड़ी खड़ी सब सुन रही थी और अब उसने बोलना मुनासिब समझा…” माँ जी मैने इनसे कितनी बार कहा कि मैं ना जाऊँगी यहाँ से । मेरी सबसे ज्यादा जिम्मेदारी है इस घर के लिए।
और फिर मजबूरीवश भावेश अकेले ही शहर गया। इधर बिट्टी की शादी की तारीख नजदीक आ रही थी। रत्ना ने बहुत मौका दिया कि बिट्टी कुछ गुण सीख ले पर बिट्टी को पार्लर के अलावा और कुछ दिखाई नही देता था। दिन रात मोबाइल में घुसी रहती थी और अपने होने वाले पति से बात करती। नई नई शॉपिंग करती और अपनी सहेलियों से चैट करती। उसे परिवार से ज्यादा अपनी सहेलियों में इंटरेस्ट रहता था।
और अब तो बिट्टी की शादी भी हो गई। भावेश और रत्ना ने अपने बड़े होने का सारा फर्ज निभाया। बहन को अच्छा सामान दिया, गाड़ी दी और बहनोई को ढेर सारा उपहार।
एक दिन रत्ना के पास बिट्टी का फोन आया। ” भाभी मुझे बचा लो।
” क्या हो गया बिट्टी…?
” भाभी आपकी नसीहतें अब याद आ रही है। ,,
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” पर बिट्टी हुआ क्या है..?
भाभी हमारा तलाक हो जाएगा और इसकी जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ मैं हूँ।
” पर बिट्टी बात क्या है…?
बिट्टी रोने लगी। ” भाभी हमने आपकी एक न सुनी, सारी बात माँ की मानी, माँ ने मुझे कुछ न सिखाया और शादी के बाद तक सिर्फ मुझे एक नन्ही गुड़िया समझा। पर भाभी अब नन्हीं गुड़िया जो बड़ी हो गई है उसे घर संसार बसाना ही नही आता। रात दिन झगड़े हुए और हर झगड़े को मैने माँ से बताया। पर भाभी काश आपको बताती। माँ ने हमेशा मेरा पक्ष लिया चाहे मैं गलत थी तब भी । पर भाभी मुझे एहसास तब हुआ
जब मुझे आपकी याद आई…! आपने कभी माँ को उल्टा जवाब नही दिया। माँ ने हमेशा बेटी वाला कोना देखा कभी बहु वाला कोना देखी होती तो आज मेरा ये हाल न होता। मैं माँ से बात ही नही कर रही हुँ भाभी जी। मुझे एहसास हो गया है कि मैं गलत हुँ, मैं यहॉं परी बनकर रहना चाहती थी जबकि मुझे एक बहु बनना था।
बिट्टी परेशान मत हो। मैं आ रही हूँ तुम्हारे भैया के साथ और देखती हूँ कैसे तुम्हारा घर टूटता है। मैं समझाऊंगी नंदोई को सारी बात बताऊंगी कि अब बिट्टी को सब एहसास है, उसे उसकी गलती पता है, एक बार मौका दे दीजिए।
हाँ भाभी आप जल्दी आओ। मेरा घर टूटने से आप ही बचा सकती हो।
और फोन कट गया। रत्ना परेशान होकर भावेश को फोन लगा कर सारी बात बताई ” आप जल्दी आ जाओ हमें बिट्टी की चिंता है।
इधर सासु माँ की आँखो में ढेरों आँसू थे। उन्होंने सारी बात सुन ली थी। उन्होंने रत्ना के सामने दोनों हाथ जोड़ लिया और बोली…” बहु काश मैं बिट्टी के अत्यधिक मोह में न पड़ती। मुझे तो सही और गलत का फर्क ही समझ न आया। मैं खुद एक बहु हुँ और मुझे बहु का दर्द ही समझ मे नही आया। बहु मुझे माफ़ कर दो ।
रत्ना की आँखो में भी आँसू आ गए। उसने माँ के हाथ पकड़ लिया और भावुक होकर बोली…” माँ ऐसा मत कहिये। आप हाथ न जोड़िए। माँ तो माँ होती है।
लेखक- शैलेश सिंह “शैल,,
गोरखपुर उत्तर प्रदेश
VM