मैं बहू हूं साहब,, मेरे अधिकारों पर सदा से मेरी सासू मां का कॉपीराइट चला आ रहा है। शदियां गुजर गई मैं अभी तक अपने अधिकारों को सुरक्षित नहीं कर पाई हूं।,,, मैं एक बंधुआ मजदूर हूं। मैं सदा से घर की धुरी रही हूं। लेकिन मुझे कभी महत्व नहीं दिया गया,,,,
कई घरों में तो शादी ही बेटे की इसलिए किए जाती है। बहू आएगी तो सासु मां को आराम मिलेगा यानी काम से छुट्टी,,,, सासु मां भी कहती मुझे रसोई से क्या लेना देना अब आ गई हो तो अपनी जिम्मेदारी संभालो,,,, क्या अभी तक एक कामवाली का इंतजार हो रहा था मुझे अपनी जिम्मेदारी भी पता है बस थोड़े से आपकी सहयोग की आवश्यकता है।
शादी के बाद तो मैं अपने घर रुकने की सोच भी नहीं सकती हूं कि घर का काम कौन करेगा ,,, सारा घर भूखों मर जाएगा,,,,, अब बहू आ गई तो खाने पीने से समझौता क्यों,,,, एक-दो दिन के लिए भी मायके जाए तो परेशानी,,,
मेरे आने के बाद घर का कोई भी सदस्य चाहे वह छोटा हो या बड़ा सभी को सारा सामान हाथों पर चाहिए कोई एक गिलास पानी भी खुद से लेकर नहीं पीता,,,,, ऑर्डर करने की जरूरत है बहू हाजिर है।
घर के सभी सदस्य बाहर सभी से बात कर सकते हैं लेकिन बहू होने के नाते मैं किसी से बात नहीं कर सकती मेरे ऊपर पाबंदी होती है।
अगर घर में बहू और बेटी दोनों है तो मेरे साथ खाने पीने में भी भेदभाव किया जाता है।
कोई मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा था या मुझसे कुछ गलत कहता तब भी आप मेरा समर्थन ना करके उस पारिवारिक सदस्य का आत्मबल बढ़ाती,,,
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कोई बात नहीं तुमसे ज्यादा तो मुझे सुनना पड़ा है। तुमसे तो अभी इतना कहा भी नहीं गया है। मेरा साथ आपने सिर्फ इसलिए नहीं दिया क्योंकि मेरा आपसे खून का रिश्ता नहीं है।
गांव में तो लंबा सा घुंघट निकालती ही थी,,,
अभी अभी मैं गांव से शहर में आई,,, सासू मां ने हिदायत दी कि घूंघट नहीं हटना चाहिए,,,,, मुझे सासू मां से बड़ा डर लगता है ।इसलिए मैंने लंबा सा घुंघट निकाल लिया,,,, शहर में हेलमेट भी पहनना जरूरी होता है इसलिए घूंघट के ऊपर मैंने हेलमेट पहन रखा था,,, अब मेरा मुंह बिल्कुल ढका हुआ था,,, जब हेलमेट उतारने की जरूरत हुई तो मैं हेलमेट को उतार नहीं पा रही थी,,,, मेरे पति ने मेरा हेलमेट उतारा,,,,, बड़ा शहर था चारों तरफ लोग मुझे देख रहे थे,,,,
अगर मैं छोटे परिवार से हूं। पिता की हैसियत कुछ कम है तो मुझसे कहा गया कभी कुछ देखा नहीं इतना सब देख कर पागल हो गई है। छोटे परिवार की है इसलिए कंजूस है। यह कहकर मुझे ताना दिया गया
अगर मेरे पिता की हैसियत अच्छी है तो अपनी आर्थिक जरूरतों को मुझसे पूरा करवाने के लिए मुझे प्रताड़ित किया गया मानसिक और शारीरिक रूप से ,,
कभी-कभी मुझे मरना भी पड़ता है।
बहू के आने से बेटा बदल गया यह भी आरोप सदा से मेरे ऊपर लगते रहे हैं। बेटा आपका है मां है आप उसकी भला चंद दिनों में मैं उसको कैसे बदल सकती हूं।
अगर मैं घर के किसी मामले में अपनी राय रखती हूं तो मुझसे कहा जाता है तुम्हें बोलने की क्या जरूरत है। अपने ही परिवार में मैं हमेशा परायों की तरह रही,
गर्मियों में घुंघट करने से मेरे चेहरे में घमोरियां भी निकल आती हैं और 24 घंटे सिंथेटिक साड़ी पहनने से मेरी स्किन जल भी जाती है। जो मेरे लिए बहुत पीड़ादायक होती है। सबको मुझसे ज्यादा और लोगों की फिक्र है कि अगर घूंघट नहीं किया तो लोग क्या कहेंगे उस पर यह ताना हमारे समय में तो बड़ा लंबा घुंघट चलता था तुम्हें तो अब इतना आराम है कि रात में तो सूट पहन सकती हो
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कई बार जब मैं घूंघट के साथ घर से निकलती हूं तो एक्सीडेंट होते-होते मैं बची हूं। लेकिन डर के कारण मैंने घूंघट कभी नहीं हटाया,,,,
मेरी ननद जो अपने लिए तो आजादी चाहती है लेकिन मां के साथ मिलकर मेरे ऊपर ना जाने कितनी पाबंदी लगाती है।
मैं अपने सास ससुर की सेवा करती तो मुझे प्रोत्साहित करने की बजाय मेरी ननद कहती है सारी जमीन जायजात लोगी तो सेवा करोगी कौन सा एहसान कर रही हो,,,, वह यह क्यों भूल जाती है ।वह भी तो अपनी ससुराल में सारी जमीन जायजात लेगी फिर उसे अपने सास-ससुर क्यों बुरे लगते हैं।
अगर सुबह उठने में मै अगर 10 मिनट लेट भी हो जाती हूं। तो मुझे बाहर आने में डर लगता है क्योंकि आपका मुंह फूला होगा या मुझे आप कुछ सुनाएंगी जैसे मैंने बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो,,,
आजकल की बहुओ से काम कहां होता है इसीलिए तो इनके ऑपरेशन से बच्चे होते हैं। हम देखो कितना काम करते थे,,,,
आजकल की बहूए मल्टीटास्किंग वूमेन हो चुकी है। उन्हें आपके भावनात्मक साथ की जरूरत है।
जब परिवार का वंश मेरी कोख में पल रहा होता है। तो मेरी बहुत अच्छी देखभाल की जाती है। मेरे संतुलित आहार की पूरी व्यवस्था रखी जाती है। जो नई पीढ़ी के परिवर्तन को दर्शाती है। आप यहां भी कहने से नहीं चूकती हमारे समय में ऐसा कहां होता था हमें कौन से फल मिले मेरे बच्चे तो ऐसे ही हो गए,,,
कभी-कभी छल से अपने बिगड़े हुए बेटे की कमान मेरे हाथ में सौंप दी जाती है। जो मुझे प्रताड़ित करता है। और मुझे ही चुप रहने की हिदायत दी जाती है।
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अगर बेटा दुनिया से चला गया तो बहू को भी परिवार के सारे अधिकारों से वंचित कर दिया गया,,, जिसके लिए मुझे कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती हैं।
मेरी तुलना हमेशा औरों की बहुओं से की गई,,, मैं भी तो आप की तुलना औरों की सांस कर सकती थी,,,,,
मैं घर और ऑफिस दोनों जगह काम करती हूं। लेकिन अभी भी सारी जिम्मेदारी घर की मेरे ऊपर ही है। बराबर की आर्थिक साझेदारी देने के बाद भी मुझे ताने सुनने पड़ते हैं कमाती है तो क्या मेरे लिए थोड़ी कमती हो,,,,
बहु का अपने मायके बात करना हमेशा बुरा लगता है फिर बेटी से घंटों फोन पर बात करना अच्छा क्यों लगता है। बहू काम आएगी वह आपके पास रहती है।
कभी-कभी बहू की भी तारीफ कर दिया करो सासू मां हमेशा बेटी की ही तारीफ के पुल बांधती रहती हो गुण और दोष बेटी और बहू दोनों में ही होते हैं बेटी के दोष हमेशा नजरअंदाज,,, कभी बहू के भी दोष नजरअंदाज कर दिया करो
आपने अपनी सास को बुरा बताया खुद को बहुत अच्छा,,,, अपने मुंह से अच्छा या बुरा कहने से कुछ नहीं होता यह तो बहू बताएगी कि आप अच्छी हो या बुरी,,,, अपने को अच्छा बता कर यह आप ताना दे रही हो।
हो सकता है आपके साथ बहुत गलत हुआ हो सासु मां तब का दौर और था आप मेरे लिए एक अच्छा दौर ला सकती हैं।
शायद उपर्युक्त कारणों के कारण ही एक बहू अपनी सास के साथ रहना पसंद नहीं करती अलग रहना पसंद करती है या दूर शहर में रहना पसंद करती है। वह आजाद रहना चाहती है। इतनी भी पाबंदियां और ताने मत दो कि आपके पीठ पीछे आपकी बहू आपको बद्दुआ दे। रस्सी को यदि ज्यादा खींचा जाता है तो वह टूट जाती है। प्रेम के बंधन बांधे पाबंदियों के बंधन तोड़ दो
मेरी प्रिय सासू मां आप ही मुझे इस घुटन भरी जिंदगी से बाहर ला सकती है। यदि आप मुझे इस घुटन भरी जिंदगी से बाहर निकाल लेंगी तो यकीन मानिए आप घर में नहीं मेरे दिल में रहेंगी,,, आप एक कदम आगे तो बढ़ाओ सासू मां आपकी बहू दोनों कदमों से आगे बढ़कर आपको गले लगा लेगी,,,,
रूढ़िवादिता की जंजीरे सासू मां मेरे लिए तोड़ दीजिए आप यह बखूबी कर सकती हैं।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा तो मोदी जी आपने लगा दिया और बेटियां तो इस नारे से सबकी परी बन गई
मोदी जी एक नारा बहू के नाम का भी लगा दीजिए जिससे सभी घरों में बहुओं को आत्म सम्मान मिल सके घुटन भरी जिंदगी से बाहर आ सके ग्रामीण अंचल का हाल बहुत खराब है जिससे वहां भी कुछ सुधार आए और बहू भी खुलकर सांस ले सकें रूढ़िवादिता की जंजीरों से मुक्त हो जाए,,,,,
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इधर भी क्लिीनिक है । – डा. नरेंद्र शुक्ल
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ,,, अब बेटी बची गई है और बेटी पढ़ भी रही है अब जरूरत है बहुओं की जिंदगी में अमूल चूल व बदलाव आए बेटी ही तो बहू बनती है। अगर बहू की जिंदगी में बदलाव नहीं आया तो स्थितियां वही की वही बनी रहेंगी
बदलाव आ रहा है इसको नकारा नहीं जा सकता लेकिन बदलाव अभी मुट्ठी भर है। अभी बहुत बदलाव और प्रोत्साहन की जरूरत है। तभी बहू सुखी रह सकती है। जब बहू को मानसिक रूप से सुख प्राप्त होगा तो निश्चित रूप से परिवार भी सुखी बन जाएगा
आओ अब बहुओं को भी गले लगाते हैं।
और परिवार को सुखी बनाते हैं।
अनुभव तथा आसपास के महिलाओं के अनुभव के आधार पर लेख,,,,,, हर बात सभी जगह फिट नहीं होती है। अपवाद भी होते हैं।,,, आप अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें जब बात होगी तो विचार-विमर्श होगा विचार विमर्श से ही बदलाव आता है।
मंजू तिवारी गुड़गांव
प्रतियोगिता हेतु
#बहू