मैं अपने अहंकार में रिश्तों के महत्त्व को भूल बैठी थी – के कामेश्वरी : Moral Stories in Hindi

सुगंधी पति वेदांत से कह रही थी देखिए मैंने पोस्ट ग्रेजुएशन किया है और खाली घर में बैठी हुई हूँ बच्चे स्कूल और आप ऑफिस चले जाते हैं तो मेरा समय कटना मुश्किल हो जाता है ।

वेदांत ने उसकी बात पर गौर किया और अपने दोस्त से बात करके एक चिटफ़ंड कंपनी में उसको नौकरी दिलवाई ।

सुगंधी को अब आज़ादी मिल गई थी । सुबह जाकर शाम को आना यह सब उसे अच्छा लग रहा था । यह सब थोड़े दिन तक ठीक था पर धीरे-धीरे वह देर से घर आने लगी कारण पूछने पर हर बार कोई ना कोई जवाब दे देती थी ।

एक दिन वेदांत ने कहा कि देखो सुगंधी मेरे ख़्याल से तुम नौकरी छोड़ दो तो अच्छा है । आजकल तुम रोज़ देर से आती हो जिससे बच्चों को तकलीफ़ हो रही है । मुझे उनके स्कूल से कॉल आया था कि उनका होमवर्क नहीं हो पाता है बच्चे बॉक्स में खाना नहीं लाते हैं कभी-कभी तो बिना लंच किए ही रह जाते हैं । इस तरह से बच्चों का ध्यान पढ़ाई से हट जाएगा । आप माता-पिता होकर भी उनकी देखभाल नहीं कर रहे हैं । मेरा सर शर्म से झुक गया था । मैंने नहीं सोचा था कि तुम इस तरह से रोज़ाना देर से आओगी और बच्चों पर ध्यान नहीं दोगी ।

 सुगंधी अपनी नौकरी नहीं छोड़ना चाहती थीं । उसके पैसे घर में नहीं देती थी परंतु हर महीने फिर वेदांत से पैसे माँगती रहती थी । उसे नौकरी छोड़ने के लिए कहने का यह भी एक कारण था ।

एक दिन जब दोनों के बीच बहुत विवाद हुआ तो सुगंधी ने साफ मना कर दिया था कि वह अपनी नौकरी नहीं छोड़ सकती है इसलिए दोनों बच्चों को हम हॉस्टल में भर्ती करा देते हैं ।

वेदांत मज़बूर होकर दोस्तों को अपनी समस्या बताता है तो उसके एक दोस्त ने ही बताया था कि एक हॉस्टल है जहाँ मेरे पहचान के बहुत से लोगों ने अपने बच्चों को भेजा है मैं भी अगले साल अपने बच्चों को उसी हॉस्टल में भर्ती कराऊँगा सोच रहा हूँ । एक बार चल हम दोनों जाकर उसे देखकर आते हैं ।

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वेदांत ऑफिस से छुट्टी लेकर अपने दोस्त के साथ हॉस्टल देखने जाता है उसे अच्छा ही लगा था तो वह सुगंधी को भी ले जाकर दिखाया । वह तो बहुत खुश हो गई थी क्योंकि उसके बच्चे अच्छे से पढ़ाई कर लेंगे और उसकी आज़ादी भी नहीं छीनी जाएगी ।

हॉस्टल जाने के पहले बच्चे वेदांत के पास आकर खूब रोते हैं पापा प्लीज़ हमें हॉस्टल मत भेजिए आप जैसा कहेंगे हम वैसा ही करेंगे । वेदांत की चुप्पी से वे दोनों माँ को पकड़ कर खूब रोने लगे पर सुगंधी का दिल नहीं पसीजा उसने कहा कि हम वीकेंड पर तुम दोनों को देखने आ जाया करेंगे फ़िक्र मत करो कहकर उन्हें समझाया और रोते बिलखते बच्चों को हॉस्टल में छोड़ दिया था ।

सुगंधी बच्चों को हॉस्टल में छोड़ कर अब आराम से ज़िंदगी जी रही थी । उसका जब मन होता था तब घर आती थी वेदांत ने भी उसे टोकना छोड़ दिया था ।

वेदांत का छोटा भाई रायपुर में कॉलेज में लेक्चरर है उसके बच्चे नहीं हैं इसलिए माँ उसके साथ ही रहती थी वे साल में एकाध बार वेदांत के पास आ जाती थी ।वेदांत जबलपुर में रहता था । वह एलआईसी में नौकरी करता था ।

चैन से जीने वाली सुगंधी के जीवन में तब हलचल मची जब उसे वेदांत ने बताया था कि माँ आने वाली है ।

उसका ग़ुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया था । उसने ग़ुस्से से कहा कि तुम्हारी माँ को काम वाम कुछ नहीं है तो क्या हमें काम नहीं है क्या? उन्हें पता है कि हम दोनों घर में नहीं रहते हैं फिर भी आने वाली है । अब तुम ही सोचो रोज़ उनके लिए सब कुछ बनाकर ऑफिस जाना पड़ेगा इन झमेलों से छुट्टी पाने के लिए ही तो मैंने बच्चों को हॉस्टल में भेजा था और अब यह खबर मेरी मानो तो उन्हें भी किसी वृद्धाश्रम में भेज देते हैं और हफ़्ते में एक बार देख कर आ जाते हैं ।

वेदांत ने कहा कि चुप रहो सुगंधी तुम अपने अहंकार में इस तरह डूब गई हो कि रिश्तों को ताक पर रख दिया है । तुमने बच्चों को मेरी माँ को सबको भुला दिया है ।

सुगंधी मुँह फुलाए कमरे में चली गई । सुगंधी ऑफिस से आई तो देखा सास अन्नपूर्णा बैठक में बैठी हुई है । उसने नाम के वास्ते उनका हालचाल पूछा और अपने कमरे में चली गई । अन्नपूर्णा ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया और बाहर गेट के पास जाकर खड़ी हो गई जैसे किसी का इंतज़ार कर रही हो ।

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पड़ोस में रहने वाली सुनीता ने कहा क्या बात है आंटी तब से आप बार बार गेट के पास आ जा रही हैं ।

अन्नपूर्णा ने कहा कुछ नहीं सुनीता पोतों की राह देख रहीं हूँ स्कूल से आने का समय हो गया है ना ।

सुनीता ने कहा कि अरे आँटी आपको पता नहीं है क्या उन्हें हॉस्टल में पढ़ने के लिए भेज दिया है ।

अन्नपूर्णा आश्चर्यचकित हो गई थीं उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि वेदांत इस तरह की हरकत करेगा । वह सीधे अंदर आती हैं वेदांत और सुगंधी की खूब खबर ली। तुम दोनों जानते हो मैं सिर्फ़ बच्चों को देखने यहाँ आती हूँ । मेरी यह समझ में नहीं आता कि तुम दोनों अपने दो बच्चों की देखभाल नहीं कर सकते हो ।

उन मासूम बच्चों को हॉस्टल में दूसरों के सहारे छोड़ दिया है । तुम्हें बुरा नहीं लगा सुगंधी तुम तो माँ हो ।

मैं इतनी दूर से बच्चों के लिए ही आती हूँ । उनके बिना घर काटने को दौड़ता है कैसे माँ बाप हैं आप दोनों । सुगंधी जिन बच्चों के लिए नौकरी कर रही हो वे ही खुश नहीं हैं तो तुम्हें नौकरी करने की क्या ज़रूरत है ।

सुगंधी ने धीरे से कहा कि नहीं मम्मी जी हॉस्टल बहुत अच्छा है और हम वीकेंड पर ज़रूर जाकर आते हैं । आपको पता नहीं है दोनों बहुत अच्छे से पढ़ाई कर रहे हैं ।

वह कुछ और कहती इससे पहले ही अन्नपूर्णा वहाँ से उठ कर चली गई । उस रात उसने खाना भी नहीं खाया था ।

सुगंधी अन्नपूर्णा को खुश करने के लिए नहा धोकर पूजापाठ करके अन्नपूर्णा के लिए खाना बनाने लगी क्योंकि अन्नपूर्णा को बिना नहाए खाना बनाना अच्छा नहीं लगता था ।

वेदांत ने उसे रसोई में देखा और कहा कि नॉट बेड तुम तो माँ को खुश करने में लगी हो । चलो पहले चाय बना लो मैं उन्हें लेकर आता हूँ ।

वेदांत के व्यंग्य को वह समझ गई थी इसलिए बड़बड़ाते हुए ही चाय बनाकर लाती है ।

उसने देखा वेदांत परेशान हो कर पूरे घर में घूम रहा था । जब उससे कारण पूछा तो उसने बताया कि माँ कहीं नहीं दिखाई दे रही है । इतनी सुबह अकेली कहाँ चली गई होगी ।

सुगंधी मन ही मन खुश हो रही थी क्योंकि आज सब सहेलियों ने शापिंग का प्लान बनाया था जिसे वह मिस करना नहीं चाहती थी । कहीं ऐसा तो नहीं कि वो वापस विनय के घर चली गई हो वैसे भी उन्हें वहीं अच्छा लगता है ।

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हाँ हाँ तुम तो यही चाहती हो कि मेरी माँ यहाँ से चली जाए पर तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ वे दोनों बाहर घूमने गए हैं इसलिए माँ यहाँ आई हैं ।

देखा वे दोनों मस्ती करने गए हैं और हमें बंदी बना दिया है ।

तुम तो कुछ बोलो ही नहीं तुम्हें ना बच्चों से लेना देना है और ना ही पति से आए दिन दोस्तों के साथ घूमना शापिंग करना यही तो तुम्हारा काम है ।

ये दोनों एक दूसरे को दोषी ठहराने में इतने व्यस्त हो चुके थे कि घर के सामने रुके ऑटो की आवाज को भी नहीं सुन सके थे ।

अनिव की आवाज सुनकर दोनों ने आश्चर्य से मुड़कर देखा तो अन्नपूर्णा का हाथ पकड़कर अनिव खड़ा था और उनकी गोद में छोटा बच्चा अव्यय था ।

अन्नपूर्णा दोनों को लेकर अपने कमरे में चली गई और अव्यय को सुलाया । वेदांत और सुगंधी भागकर कमरे में आकर कहने लगे कि माँ इसे क्या हो गया है । इसे आपने गोद में क्यों उठाया है ।

अन्नपूर्णा ने उनकी तरफ देखा और कहा तुम दोनों कैसे माँ बाप हो वहाँ तुम्हारा बेटा बुख़ार से तड़प रहा था और तुम लोगों को खबर तक नहीं थी ।

मैं आज सुबह बच्चों को देखने के लिए हॉस्टल पहुँची और जब उनके कमरे में पहुँची तो देखा एक कमरे में कम से कम आधा दर्जन बच्चे थे पूरा कमरा गंदा पड़ा हुआ था सबके कपड़े इस तरह फैले हुए थे कि छाँटने पर भी पता नहीं चलेगा कि कौन सा कपड़ा किसका है । उन सबके बीच यह तुम्हारा अव्यय बुख़ार से तड़प रहा था । मुझे देखते ही छिपकली की तरह मुझसे चिपक गया और रोने लगा कि दादी मुझे यहाँ से ले चलो और बेहोश हो गया था । मैं दोनों बच्चों को लेकर अस्पताल पहुँची और दवाई लेकर आई ।

एक काम करते हैं सुगंधी वैसे भी तुम्हारे देवर को बच्चे नहीं हैं वे बच्चों के लिए तरस रहे हैं मैं इन दोनों को वहाँ ले जाती हूँ वहीं हम इन्हें पढ़ा लिखा लेंगे । तुम्हें तो इनकी कदर नहीं है ।

सुगंधी जडवत खड़ी हो गई और अन्नपूर्णा की बातें सुनने लगी उसे अहसास हो गया था कि उसने कितनी बड़ी गलती की है । सोचने के लिए मजबूर हो गई कि मैं अपने अहंकार में रिश्तों के महत्त्व को भूल गई थी ।

उसने अन्नपूर्णा से कहा कि माँ मुझे मेरी गलती का एहसास हो गया है मैं कल ही अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा दे दूँगी और बच्चों को अपने पास ही रखूँगी कहते हुए दोनों बच्चों को गले लगा लेती है । अन्नपूर्णा और वेदांत के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है ।

के कामेश्वरी

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