Moral Stories in Hindi :
आ गयी तुम सब… कलेजे को ठंडक मिली… कब से पापा राह देख रहे हैं… बहुत गर्मी हैं… बच्चे ठीक से तो आयें अल्का बेटा…
हाँ माँ…. बस अब ठंडा पानी पिलाओ …
दीदी आप भी अब गरिमा दीदी की तरह एक फोर वहीलर ले ही लो… क्यूँ जीजा जी की इज्जत का कबाड़ा करती हो… और फिर हर गर्मियों की छुट्टी में आपका आना होता ही हैं बच्चों के साथ… आराम रहेगा…. छोटा भाई अनमोल अपनी दीदी अल्का से मज़ाकिया लहजे में बोला….
ले लेगी जब लेनी होगी… अभी उसके और (विनोद ) जीजाजी के आगे और भी ज़िम्मेदारियां हैं… मेरे घर की तरह अकेले बेटे नहीं हैं जीजा जी… जो सब उन्ही का हो… मैने तो कहा भी था कि बता देना मैं ले लूँगी स्टेशन से…. पर इसने बताया ही नहीं…. बड़ी बहन गरिमा अपनी बहन की तरफदारी करते हुए बोली…
पर शायद यह बात अल्का को बिल्कुल अच्छी नहीं लगी तभी तो वह बिना कुछ बोले अपना बैग उठाकर माँ के कमरे में चली गयी…
इस कहानी को भी पढ़ें:
माँ, पापा ने दोनों बेटियों को गले से लगा लिया … पिता मनीष जी बोले… अब खूब रहो यहां जब तक बच्चों के स्कूल नहीं खुल रहे.. बच्चे आ ज़ाते हैं घर में तो रौनक लगती हैं… नहीं तो अकेले यह घर काटने को दौड़ता हैं… गरिमा तुम और अल्का हमारे साथ हमारे कमरे में सो जाना हर बार की तरह… और बच्चे अनमोल के कमरे में…
नहीं माँ… मुझे तो बहुत गर्मी लगती हैं.. जब से एसी में रहने की आदत पड़ गयी हैं तब से गर्मी सहन नहीं होती माँ .. मैं तो अनमोल के कमरे में ही डाल लूँगी अपना पलंग …. उसके कमरे में एसी हैं तो नींद तो भी अच्छी आ जायेगी…
तो अल्का तू भी वहीं सो जाना…
पर माँ अल्का दीदी की लाडो तो 6 महीने की हैं… वो रात में रोयेगी तो मैं बिल्कुल नहीं पढ़ पाऊंगा … गरिमा दीदी के बच्चे तो अब बड़े हो गए हैं आराम से सो ज़ाते हैं…
ठीक हैं अनमोल,,मुझे तो वैसे भी एसी की आदत नहीं… कूलर में ही सोती आयी हूँ… यहां भी सो जाऊंगी तो कोई मुझे कांटे नहीं लग रहे….
अल्का के मुंह से यह बात सुन सब थोड़ा असहज तो हुए पर कुछ बोले नहीं…
इस बार अल्का कुछ बुझी बुझी सी नहीं लग रही आपको… मुझे अच्छा नहीं लग रहा उसे ऐसा देखकर… माँ रमा पति रमेश जी से बोली…
नहीं,, तुझे तो हमेशा कुछ ना कुछ भ्रम लगा रहता हैं… ऐसा कुछ नहीं हैं… सफर की थकान हैं बस…
अच्छा हो सकता हैं … मेरा सोचना गलत हो….
इस कहानी को भी पढ़ें:
ले अनमोल… तेरी फेवरेट काजू कतली और तेरे लिए ये कपड़े … गरिमा अपने बैग में से अनमोल को मिठाई और कपड़े देते हुए बोली…
वाओ दी…. कितनी सुन्दर शर्ट हैं और ये डेनिम की पैंट तो बहुत ही क्लासी हैं… थैंक यू सो मच दी… इसे तो मैं राहुल चाचा की शादी में पहनूंगा …
बेचारी अल्का भी भाई के लिए अपने हाथ की बनी खोये की मिठाई और कपड़े लायी थी पर गरिमा के कपड़ों की तरह उसके कपड़े ब्रांडेड नहीं थे… उसने बस बुझे मन से मिठाई माँ को निकालकर दे दी और कपड़े बैग में ही छोड़ दिये…
रमा जी और मनीष जी ने अल्का का चेहरा पढ़ लिया था… वो बोले… वाह क्या मिठाई हैं घर के बने शुद्ध खोये की मिल्क केक … बहुत बढ़िया बनी हैं बेटा…
यह सुन अल्का के चेहरे पर कुछ मुस्कान आयी… अनमोल तू भी तो ले..
नहीं दी… इसमें बहुत शुगर होती हैं… मैं तो ये काजू कतली ही खाऊंगा …
रहने दे तू … ये तो मैं और तेरे पापा ही खायेंगे … हमें तो बहुत अच्छी लगी… माँ रमा बोली…
इस बार अल्का का मन बिल्कुल नहीं लग रहा था… वो ज्यादातर माँ के साथ ही रहती… गरिमा से कटने की कोशिश करती. … शायद उसके मन में अपनी बड़ी बहन की अमीरी देखकर जलन पैदा हो गयी थी…
अगले दिन बुआ जी आयी… वो गरिमा को देख तपाक से बोली… कितना सुन्दर सूट लग रहा हैं तेरा… कितने का लिया??
ज्यादा नहीं… यहीं कोई 2500 का बुआजी…
इस कहानी को भी पढ़ें:
क्या बुढ़ापा ऐसा भी होता है – निशा जैन: Moral Stories in Hindi
क्या 2500?? … और दिखा मुझे कौन कौन से सूट लायी हैं तू …
गरिमा अपने सारे सूट दिखाने लगी… ज़िसे देखकर अल्का भी जलभुन गयी….
तू बड़ी किस्मत वाली हैं री गरिमा…. पैसों में खेलती हैं अब तो…. सबकी किस्मत तेरे जैसी कहां …. ए री अल्का. ..तू भी अब थोड़ा ढंग के कपड़े पहनाकर जिससे लगे कि तू भी अच्छे घर में गयी हैं…
तभी माँ रमा बोली… जीजी… क्या बुराई हैं मेरे अल्का के कपड़ों में….कितने अच्छे तो लग रहे हैं…. मुझे तो इसके सूट हमेशा ही अच्छे लगते हैं…
अल्का कुछ ना बोली… बस मन ही मन कुढ़ती रहती…. उसकी जलन उसके दिलो दिमाग पर पूरी तरह से हावी हो चुकी थी… तभी तो उस दिन गरिमा का बेटा अपनी नानी के कूलर में पानी भर रहा था वो अन्दर हाथ डालकर तार ठीक कर रहा था तभी मौका पाकर अल्का ने कूलर चला दिया पर पता नहीं अगले ही पल उसके मन में क्या आया..
तुरंत बंद कर दिया… बाहर आकर अपने भांजे का हाथ देखा तो उस से खून बह रहा था… उसे अफसोस तो हुआ पर आस पास के लोगों का, घर आने जाने वालों का, भाई का उसे हर बात में गरिमा से कमतर आंकना उसे फूटी आँख ना सुहाता…. एक दिन फिर अल्का ने मौका पाकर गरिमा का सबसे सुन्दर सूट ज़िसे वो शाम को मामा जी के यहां पहनकर जाने वाली थी , उसे कैंची से ऐसी जगह से काटा कि वो सिलने के बाद भी अच्छा ना लगे…
उस दिन गरिमा ने अपनी छोटी बहन की हरकत देख ली थी… उसने कहा कुछ नहीं पर मन में इस समस्या का समाधान ढूंढ चुकी थी … वो अल्का के पास गयी और बोली… पता हैं अल्का तुझे…. आज तुझे अपने मन की बात बताती हूँ… मेरे घर में कहने को सब कुछ हैं… रूपये पैसे, गाड़ी घोड़ा किसी चीज की कमी नहीं हैं पर तुम्हारे जीजाजी बहुत गलत आदतों में पड़ गए हैं…
रात को पीकर लेट आते हैं … मुझ पर भी कई बार नशे में हाथ उठा देते हैं और धमकी देते हैं कि अगर मुझे पीने से रोका य़ा मेरे किसी काम में दखल दिया तो तुझे तलाक दे दूँगा …. तू वैसे भी मेरे लायक नहीं… दुनिया को जैसा दिखता हैं वैसा होता नहीं अल्का… तुझे हीरा मिला हैं हीरा जो तेरी हर ख्वाहिश को सर माथे रखता हैं…
इस कहानी को भी पढ़ें:
दो पल के गुस्से से प्यार भरा रिश्ता बिखर जाता है -पूजा मिश्रा : Moral Stories in Hindi
मुझे फ़ोन किया था विवेक (अल्का का पति ) ने… बोल रहे थे दीदी अल्का के सब सपने पूरे करने की दिन रात कोशिश कर रहा हूँ… पर गाड़ी बहुत पैसों की आती हैं… थोड़ा समय लग रहा हैं पर ले लूँगा… फिर मेरी अल्का भी गाड़ी से जाया करेगी मायके…
ये बात सुन मेरी आँखों से आंसू आ गए अल्का… ऐसे पति पर तो कोई पत्नी सब कुछ न्योछावर कर दें… तू बहुत किस्मत वाली हैं… मैं अमीर होकर भी तेरे आगे बहुत गरीब हूँ… पर सब किस्मत लिखाकर आतें हैं… शायद मेरी किस्मत में य़हीं लिखा हैं…
यह सुन अल्का बोली… दीदी मुझे माफ कर दो… बहुत बुरी बहन हूँ… आपके कपड़ों और पैसों से जल रही थी … आप इतना दुख क्यूँ सह रही हो…. मैं अभी माँ पापा को बताती हूँ…
नहीं नहीं… ऐसा मत कर … पापा हार्ट के मरीज हैं… यह सुन कि उनकी गरिमा दुखी हैं दोनों जीते जी मर ज़ायेंगे… और हमारा अनमोल तो कितना सेंसिटिव जानती हैं ना …
फिर क्या दी आप इतना सब कब तक सहती रहोगी…
अल्का अपने बच्चों के सहारे ज़िन्दगी काट लूँगी…. और ईश्वर से प्रार्थना करती रहूँगी शायद किसी दिन ये बदल जायें और पहले की तरह मेरा परिवार खुशहाल हो जायें …
पता नहीं .. कबसे दोनों बहनों की बातें रमा जी, मनीष जी और अनमोल सुन रहे थे… आकर गरिमा और अल्का को उन्होने गले से लगा लिया…
तू हमारी बेटी हैं…. तुझे दुखी नहीं देख सकते… तेरे बाप की बांजुओं में इतनी ताकत हैं कि अपनी बेटी को पूरे जीवन फूलों की तरह रख सकूँ… कल ही चल रहे हैं हम सब तेरी ससुराल करने… मैं दामाद जी (अल्का के पति) को भो फ़ोन कर दे रहा हूँ… वो भी चलेंगे हमारे साथ …. तू रो मत …. मनीष जी भावुक होते हुए बोले…
हां दी… हम भी चलेंगे… अनमोल और अल्का एक साथ बोले… गरिमा ने दोनों को अपने गले से लगा लिया…
स्वरचित
मौलिक अप्रकाशित
मीनाक्षी सिंह
आगरा
V M