महिला कभी रिटायर नहीं होती – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

प्रशांत जी का ‘अगले माह रिटायरमेंट था सो एक छुट्टी बाले दिन वे सुबह चाय पी रहे थे तो पत्नी माधवी से बोले सुनो माधवी अगले माह मैं रिटायर हो जाऊंगा सो मैंने एक अपना रुटीन प्लान सोचा है कि कैसे  अपनी  दिनचर्या बनाऊंगा ।अब ऑफिस जाने का तो कोई ताम -झाम रहेगा नहीं सो आराम से सोऊंगा। सुबह पांच बजे उठ कर घूमने जाऊँगा सो तुम उठ कर एक कप चाय बना देना।

वहाँ से आकर कुछ देर योगा करूंगा ,तब तक चाय नाश्ता तुम तैयार कर ही लोगी फिर बैठ कर आराम से पेपर पढूंगा। फिर नहाना धोना, थोडा पूजा पाठ करुंगा, तब तक खाने का समय हो जाएगा तो खाना खाकर कुछ समय आराम करूंगा। फिर शाम को चाय पीकर पार्क चला जाया करूंगा। एक दो घंटे वहां बिताऊंगा ।

बीच में जो समय मिलेगा उसमें मैं अपने नौकरी की आपाधापी में छूटे हुए शौक जैसे लिखना पढना पूरा करूंगा। कुछ टीवी पर न्यूज वगैरह देखूंगा और डिनर करने के पश्चात जल्दी सो जाऊंगा ताकि सुबह जल्दी उठ सकूँ। सो तुम मेरे इसी रुटीन के साथ एडजस्ट करना और समय पर सब उपलब्ध करा देना ।

माधवी जी चुपचाप उनका रूटीन कार्यक्रम सुनती रहीं।

 तब वे बोले तुमने कुछ कहा नहीं ।

कहना क्या है मुझे तो करना ही है। सबके हिसाब से तो ही मेरा जीवन चलना है। पहले शादी के बाद तुम्हारे एवं मम्मीजी पापाजी के हिसाब से चली फिर बाद में बच्चे होने के बाद उनका काम भी जुड गया। बच्चे पढ लिख कर घरौंदा छोड़कर 

उड़ गए तो वापस तुम्हारे रूटीन  पर आ गई।  अब तुम रिटायर हो रहे हो, तुम्हारी उम्र हो गई  है सो तुम आराम करो।अब  फिर मैं तुम्हारे बदलते रुटीन से एडजस्ट करूंगी।

प्रशांत जी तो ठीक है  तुम हाथ पैर चलाती रहोगी तो एक्टिव  बनी रहोगी ।

हां सही कहा मैं तो मरते दम तक  हाथ पैर चलाती रहूँगी क्योंकि न तो मेरी उम्र बढ़ रही है न मुझे रिटायरमेन्ट की आवश्कता  है।  न मुझे घूमने  की जरूरत हे न योगा करने की।  न मेरे कोई शौक हैं जिन्हें मैं इस उम्र में भी पूरा करने की नहीं सोच

सकती। 

अरे तुम तो बुरा मान गई। तुम भी घूमो -फिरो, अपने शौक पूरे करो मैंने कब मना किया है। 

कब, कब करूं । तुम्हारे रुटीन में  मेरी जगह कहां है।

जीवन भर तो अकेले ही घर बाहर की जिम्मेदारी उठाती रही ताकी तुम  बेफ्रिक  होकर  अपना  काम कर सको ।अब  रिटायरमेन्ट के  बाद तुम्हारा  नया रूटीन बन गया जिसमें मेरी लिए तुम्हारे पास  कब वक्त है। मेरे शौक पूरे करने के लिए तुम क्या  सहयोग करने वाले हो। मेरा शरीर क्या मशीन है जो चलता ही रहेगा उसे किसी तरह के व्यायाम, घूमने की जरूरत नहीं। क्या कभी मेरा मन घर  से बाहर निकलने  का नहीं होता। पहले नौकरी है  समय नहीं मिलता चुप रही अब फिर अपने हिसाब से रुटीन सेट हो गया। अब प्रशांत जी के सोचने की बारी थी।

माधवी कह तो सच रही है उसे घूमने-फिरने, पिक्चर देखने  का कितना शौक था किन्तु जिम्मेदारियों के चलते, कुछ मुझे इन सब चीजों का शौक  न होने के कारण वह चुप हो गई ।पहले मैगजीन्स, पुस्तकें पढ़तीं थीं, धीरे-धीरे बढते बच्चों  की पढ़ाई-लिखाई की जिम्मेदारी  में वह सब भी बन्द हो गया। शायद पिछले पन्द्रह  सालों में हम कहीं घूमने गये हों मुझे याद नहीं ।पढाई के बाद बच्चों को सेटल करने  में  भी वहअकेली ही भागती फिरी मैं तो छुट्टी  न मिलने का बहाना कर इन सब झंझटो  से बचता रहा। फिर बच्चों के शादी व्याह उसे तो जीवन में साँस लेने की फुर्सत ही नहीं मिली ।

फिर बच्चों का बुलावा मम्मी बच्चे को सम्हालने में परेशानी आ रही है आप आजाओ । कभी बेटे-बहू के पास कभी बेटी-दामाद के पास हर जगह सहायता के लिए समय-समय पर पहुँचती रहीं। इस सब में वह अपने लिऐ जी ही कब पाई। सबकी आवश्यकताओं  के अनुसार वह अपने जीवन को ढालती रही ।क्या उसे कभी समय मिला अपने अनुसार जीने का, फिर ऊपर से बीमार होने पर सबकी नसीहतें सुनती कि कभी अपने ऊपर भी थ्यान दिया करो। घूमने जाया करो, योगा कर लिया करो पर किसी ने कभी नहीं सोचा कि वह यह सब कब करें ।उसकी भी उम्र बढ रही है उसे भी आराम की जरूरत है किसने सोचा।

उन्हें चुप देख कर माधवी जी बोलीं क्यों 

चुप क्यों हो गए। क्या मैंने कुछ गलत कहा।

नहीं माधवी तुमने कुछ गलत नहीं कहा।

मैं यही सोच रहा हूँ कि एक महिला  कितनी फ्लेक्सिबल  होती है कि वह स्वयं को सबकी, इच्छाओं , आवश्यकतानुसार ढाल लेती है अपनी सारी इच्छाओं को दबाकर। तुमने सच ही कहा कि तुम्हारी भी उम्र बढ रही है यह मैंने नहीं सोचा। तुम्हारी भी उम्र  के हिसाब से कार्यक्षमता कम हो रही है,तुम्हें भी आराम की जरूरत है ऐसा तो हम लोगो ने नहीं सोचा और केवल तुमसे अपेक्षायें ही रखीं। आज तुम्हारी बातों ने मेरे अन्तस को झकझोर दिया। 

चलो छोड़ो भी क्या बातें लें सुबह-सुबह बैठ गए।बहुत काम पड़ा है शायद  दीपा आ गई है मैं उसे काम बताऊं कहकर चाय के बर्तन ले वे किचन में चली गईं। 

पीछे बैठे रह गए प्रशान्त जी सोचते वैवाहिक जीवन के अडतीस बर्ष हो  गए इतने वर्षों में कब उन्होंने माधवी की  मन की पीड़ा जानने की कोशिश की। कब उन्होंने  कभी उससे पूछा कि तुम्हारी भी कोई इच्छा है चलो  उसी अनुसार कोई काम कर लेते हैं। इतने वर्षों में घर से बाहर कितनी बार घुमाने ले गये शायद तीन  या चार  बार। बीती जिन्दगी पर जब निगाह डालते हैं तो अतीत चलचिल की भाँति आँखों के  आगे से गुजरने लगता है। कैसी सुकोमल, सुन्दर सी माधवी उनके संग ब्याह कर आई थी। उसकी आँखो में कितने रूपहले, सुन्दर सपने थे। कितनी चंचल हर समय कहती  चलो कहीं  घूमने चलें मुझे घूमने का बहुत शौक है। कहां चलें  बनाओ न प्रोग्राम।

मैं हमेशा झिड़क देता घर में मम्मी से काम नहीं  सम्हलता तुम उनकी  मदद करो। मेरे भाई-बहन अभी पढ रहे हैं मेरे ऊपर‌ उनकी  जिम्मेदारी है। पापा बीमार हैं उनकी सेवा करो। फिर बच्चे हो गये वह उनके पालन पोषण मे खो गई । रह गई मौन, निष्प्राण, जिम्मेदारी के बोझ तले दबी माधवी  जिसने अपनी सभी इच्छाओं आकांक्षाओं को मार  कर  हृदय के किसी कोने में दफन कर लिया। 

 सच  ही है कि एक महिला कभी जीवन में  रिटायर नहीं होती। जीवन पर्यन्त उससे अपेक्षाएं  बनी रहती हैं। यदि सर्विस करने बाली है तो उसकी तो और भी दोहरी

जिन्दगी चलती है। दो गुनी जिम्मेदारी किन्तु फिर भी नौकरी से तो रिटायर हो जाती है किन्तु घर से नहीं।

शिव कुमारी शुक्ला

6-7-24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित 

#कलंक 

दोस्तों यह मेरी सोच है और अधिकांश परिवारों यही होता है कि घर की महिला जो कि परिवार की धुरी होती है उसकी इच्छाओं, खुशीयों को कोई महत्व नहीं दिया जाता केवल उसे एक नौकरानी की भांति सबका काम करना, बुजुर्गो की सेवा करना, बच्चे पैदा कर उनकी परवरिश करना यही उसके जीवन का उद्देश्य समझा जाता है।वह जीवन में क्या करना चाहती, कोई मुकाम हासिल करना चाहती है इसकी कोई अहमियत नहीं होती ।

माता-पिता यह कह कर की  अपने सारे शौक ससुराल जाकर पूरे करना हमें तो समय पर शादी कर जिम्मेदारी से मुक्त होने दो। और जब वह ससुराल में अपनी बात रखती है तो सुनने को मिलता है कि यह सब तुम्हें मायके में करना था ये ससुराल है। महिला क्या करे। कुछ अपवादों को छोड़कर जहां उसे मनचाहा करने की पूरी आजादी होती।आप लोगों के क्या विचार हैं जरुर बताएं।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!