नहीं नही मेरा बच्चा शानू बच जायेगा इसे कुछ नही हो सकता….माता सुलभा का हृदय चीत्कार कर उठा था।
शाम का समय था हॉस्पिटल से फोन आया ।
शानू के पापा विकास का फोन था.. सुभा…जल्दी यहां आ जाओ संक्षिप्त कथन था उनका परंतु गहरा लंबा उतर गया था दिल में ।घर से हॉस्पिटल का रास्ता पास होने के बावजूद सुलभा को आज मीलों लंबा अंतहीन सा लग रहा था ।पहुंचते ही सबने बता दिया शानू के सर पर गंभीर चोट आई है जीवित रहने की कोई उम्मीद नहीं है।
हॉस्पिटल के बिस्तर पर अचेत पड़ा था शानू।मां का कलेजा अपने लाडले को इस अवस्था में देख बाहर निकला आ रहा था। वह हाथ जोड़ जोड़ कर हर डॉक्टर हर नर्स से करुण पुकार कर रही थी मेरे आंखों के तारे को मेरे दुलारे को बचा लीजिए किसी भी तरह इसे होश में ले आइए … ।
सुभा होश में आओ और वास्तविकता को स्वीकार करो अपना बेटा शानू अब जीवित नहीं हो सकता।डॉक्टरों ने सारे प्रयास कर लिए है उसके मस्तिष्क ने कार्य करना बंद कर दिया है गंभीर चोट लगी थी सर पर।अब इसे कभी होश नही आयेगा विकास के बार बार कहने पर भी रोती कलपती मां का दिल बिस्तर पर बेसुध अपने बेटे को देख यकीन नहीं मान रहा था।
उसे हर क्षण यही प्रतीत हो रहा था कि अभी शानू चट से उठ कर मेरे पास आयेगा “मां क्या सोच रही हो कुछ खाने को दो जल्दी से मुझे संगीत की क्लास जाना है… कहने लगेगा..! कितना सधा हुआ कंठ है शानू का मानो मां सरस्वती विराज रही हों।मनमोहनी आवाज में जब वह कुछ भी गाता है तो सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।बालसुलभ मुस्कान उसकी उसे सबका दुलारा बना देती है।
कल की ही तो बात है कह रहा था मां ऐसा लगता है पढ़ाई बढाई छोड़ दूं और सिर्फ संगीत की कक्षा ही जाता रहूं रियाज करता रहूं आप मान जाओ ..!!मान जाओ ना मां..!!
चुप … खबरदार ये पढ़ाई लिखाई छोड़ने की बात जो की अब… पढ़ाई तो सबसे जरूरी है साथ में संगीत भी करता रह बेटा… हंसकर ही उन्होंने झड़प दिया था उसे।
क्या मालूम था दूसरे ही दिन वह पढ़ाई तो क्या दुनिया ही छोड़ कर चला जायेगा।
सुनो शानू की मां मेरे मन में एक विचार आ रहा है डॉक्टर भी समर्थन कह रहे हैं अगर तुम मान जाओ…!!अचानक विकास का स्वर सुलभा को चौंका गया था।
फिर वही तुम मान जाओ..!! यही शब्द तो शानू के भी थे मां अगर आप मान जाओ..!!
क्या मान जाऊं मैं… असहनीय दुख के आवेग को संभालने का असफल यत्न करती सुलभा कराह उठी थी।
.. यही कि हमें अपने बेटे के अंग दान कर देने चाहिए ऊतक भी…. सुलभा की तरफ देखते हुए धीरे से विकास ने कहा तो एक पल को सुलभा स्तब्ध रह गई थी.. फिर एकदम बिफर उठी..
क्या कह रहे हैं.. मैं क्यों दान करूं अपने बेटे के अंग क्या वह मर गया है ..!! जीते जी उसे सुई भर कष्ट नहीं होने दिया मैने अब इतना कष्ट क्यों सहेगा वह.. इतना मासूम है मेरा बच्चा उसके इस कोमल शरीर को छिन्न भिन्न कर दूं ..!! क्यों..!! मेरे बच्चे की जान बचाने कोई नही आया तो मैं भी किसी की जान बचाने के लिए अपने बच्चे की कुर्बानी क्यों दूं…!!
नहीं ..नहीं …नहीं…. मैं आपकी बात नही मानूंगी कभी नहीं मानूंगी ।आप पिता हैं ना आपके हृदय नहीं है मां के हृदय से पूछो जिसने नौ महीने उसे अपनी कोख में अपने खून से सींचा है उसके एक एक अंग का जतन किया है ….! नहीं मैं अपने पुत्र के शरीर को किसी को छूने भी नही दूंगी ये पूरा का पूरा मेरा है जीवित भी और मृत भी…!!
विकास खामोश रह गए थे पर उनकी खामोशी में भी एक अनकहा अनंत विषाद था जो भीतर छटपटा रहा था।एक बेटा जो अपने पिता की भुजा होता है भविष्य होता है उसका प्रतिरूप होता है.. वह आज उनकी आंखों के समक्ष निष्प्राण पड़ा था… कितने सतरंगी स्वप्न संजोए थे उनके दिल ने कितनी ऊंची उड़ाने भर चुका था उनका मन अपने पुत्र को एक सुंदर उज्जवल सितारे के रूप में देखने का।
लेकिन अब पुत्र की मस्तिष्क मृत्यु का नंगा कठोर सत्य उनके दिल दिमाग पर सतत वज्र प्रहार कर रहा था …!
अभी अभी वह डॉक्टर से मिल कर आए थे और डॉक्टर ने ही उन्हें शानू के अंग और ऊतक दान करने की सलाह दी थी ।
उनके एक पुत्र के शरीर से कई शरीरों को जीवनदान दिया जा सकता है।यह गहरी बात उन्हें अपने दुख से परे जा कर दूसरो के दुख दूर करने की प्रेरणा देने लगी थी लेकिन मां सुलभा जो अभी तक अपने मासूम पुत्र के इस आकस्मिक हादसे से नही उबर पाई थी यकायक उसके अंग दान के लिए एक इंच भी तैयार नहीं हो सकती थी।
अचानक उन्हें एक युक्ति सूझी..!!
सुलभा चलो डॉक्टर हमें बुला रहे हैं… विकास के कहते ही सुलभा फिर आक्रोश में आ गई मुझे नही जाना कहीं मैं यहीं अपने बेटे के पास बैठी रहूंगी।
किसी तरह विकास उसे बाहर लेकर आए ही थे कि अचानक एक महिला झपटती हुई आई और उनके पैरों पर गिर पड़ी।
ए मां मेरे बच्चे को जिंदगी दे दो उसका दिल काम करना बंद कर दिया है डॉक्टर बता रहे थे अगर अभी तुरंत उसका दिल बदल दिया जाए तो वह बच जायेगा।मां आपके बेटे का दिल मेरे बेटे को दे दो ।मेरे बच्चे को बचा लो मां बचा लो… फूट फूट कर रोती बिलखती एक मजलूम असहाय अबला अचानक जाने कहां से आकर सुलभा के पैरो को पकड़ जमीन पर लेट गई।मिट्टी में उसकी जीर्ण धोती लिपट रही थी उसके बाल खुल कर मिट्टी में सन रहे थे उसे किंचित परवाह नही थी..!
सुलभा अचानक उस महिला के आर्तनाद के सामने अपना दुख भूल सी गई..!
क्या हो गया तुम्हारे बेटे को पूछ बैठी।
मां मेरा बेटा गाड़ी के नीचे आ गया बहुत बुरी दुर्घटना का शिकार हुआ है … उसका दिल काम नही कर रहा है तुरंत एक अच्छा दिल चाहिए बहन।यहां सबके मुंह से मैने तुम्हारे बेटे के बारे में सुना है मां… मैं जानती हूं बेटे को खोने का दुख क्या होता है।बहन तुम अपना बेटा का अच्छा दिल मेरे बेटा को दे दो ।
मेरा बेटा जिंदा हो जायेगा तुम समझ लेना तुम्हारा बेटा जिंदा हो गया मां… मैं बहुत गरीब हूं मां जान बचाने की कोई कीमत मैं तुमको नहीं दे पाऊंगी….वह फिर से फूट फूट कर रोने लगी और फिर तेजी से सुलभा का हाथ पकड़ कर अपने निष्प्राण पड़े बेटे के पास ले गई।
स्तब्ध रह गई थी सुलभा ….अचानक उसके पुत्र की जगह उसे अपना शानू नजर आने लगा.. मानो वह हंसता हुआ उठ कर बैठ गया हो और कह रहा हो ..”मान जाओ ना मां..!!
तभी डॉक्टर आ गए वहां पर।
देखिए ये सही कह रही हैं आपके बेटे का दिल अगर इस बच्चे को अभी ही प्रतिरोपित कर दिया जाए तो इनका बेटा बचाया जा सकता है।
जब तक सुलभा कुछ कह पाती डॉक्टर उसे एक दूसरे कक्ष में ले गए.. जहां विभिन्न आयु लिंग के कई गंभीर मरीज पड़े थे।
देखिए इस मरीज को एक लीवर की जरूरत है और इस बालिका को किडनी की।वो किनारे के जो दो मरीज आप देख रही हैं उनकी आंखों में कॉर्निया प्रत्यारोपण की जरूरत है … अगर अभी समय पर इन्हें ये सभी ऊतक उपलब्ध करवा दिए जाएं तो ये सभी स्वस्थ हो सकते हैं।
और अगर नही मिल पाए तो.. सुलभा ने उन मरीजों और उनके संतप्त परिजनों को देखते हुए आशंका जताई।
नहीं मिल पाए तब इन सभी को बचा पाना हमारे लिए मुश्किल है डॉक्टर ने दीन भाव से कहा।
क्यों आपका इतना बड़ा प्रतिष्ठित हॉस्पिटल है इसीलिए तो ये सब और हम भी यहां पर आए हैं आपको कुछ करना ही पड़ेगा सुलभा की आवाज में आग्रह सा था।
हम सब अपनी तरफ से पूरे जतन कर रहे हैं लेकिन इलाज के लिए कुछ सुविधाएं चाहिए देखिए ये जो बीच में अधेड़ व्यक्ति बेहोश पड़े हैं वह इस शहर के जाने माने रईस हैं इन्हें तुरंत लीवर की आवश्यकता है .. अब लीवर बाजार में तो बिकता नहीं कि इनके घरवाले मुंह मांगी कीमत देकर खरीद लाए
और इन्हे बचा लें…!इसीलिए हम लोग ऐसी स्थिति में लोगों से अंग दान का आग्रह करते रहते हैं….!!
……खैर हम आप पर कोई दबाव नहीं डाल रहे हैं हमारा धर्म है मरीजों की जान बचाने के हर संभव प्रयास करना बस वही कर रहे थे कहीं से भी अपने मरीजों की जिंदगी बचाने की किरण ले आएं … यही कामना रहती है ….डॉक्टर ने बहुत ही विनम्रता से कहा और चले गए।
सुलभा को अचानक अपना दुख अपने ही जैसे बहुतेरो के दुख दूर करने का जरिया दिखाई देने लगा।
क्या डॉक्टर जो कह रहे थे सही है उसने विकास से पूछते हुए अपने सारे उभरते हुए संशय पर लगाम लगानी चाही थी।
हां सुभा यही तो मैं भी तुमसे कह रहा था।जो हादसा अपने शानू और अपने साथ होना था वह तो हो चुका उसका कोई समाधान नहीं हो सकता ।लेकिन एक शानू की जिंदगी के बदले कितनी सारी जिंदगियां बचाई जा सकती हैं।सुभा हमारा बेटा एक नहीं अनेकों जिंदगियों में सांस लेगा.. वह मरेगा नही सुभा वह इन सबमें जिंदा रहेगा… सुभा मान जाओ ना ..!!विकास का स्वर रूंध गया था लेकिन जैसे शानू के जीवित होने का एहसास करा गया था सुलभा को।
आप ठीक कहते हैं जी हमारा बेटा बहुत पुण्यात्मा था इतनी सारी जिंदगी बचाने वाला तारणहार बन रहा है मैं स्वार्थी हो उठी थी किसी की जिंदगी में उजाला फैलाने का माध्यम ईश्वर हमे बनाना चाहते हैं इसे देख पाने में मैं अक्षम थी।अगर सभी लोग मेरे जैसे स्वार्थी हो जायेंगे
तो डॉक्टरों का सहयोग कौन करेगा जान बचाने में ..!!मेरे बेटे की जान की कीमत इन सबकी जान बचाना ही है….मेरा शानू जीवित है जीवित रहेगा … जीवित रहेगा जी… सुबकती हुई पत्नी को अपने गले से लगा लिया था विकास ने।
बहन तुम धन्य हो मां तुम धन्य हो मेरे लाल की जान बचा ली तुमने… जोर जोर से कहती वह अबला एक बार फिर सुलभा के पैरो पर लोट गई थी..!
डॉक्टर तुरंत प्रत्यारोपण की तैयारी हेतु तत्पर होने लगे थे..!
अब सुलभा की आंखों में दूसरों का दुख साझा करने की …किसी का जीवन बचा पाने की अनोखी चमक थी..!और दिल में अपने पुत्र को जीवित रख पाने की एक प्रेरक अनुभूति थी..!!
लतिका श्रीवास्तव
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