मुझे शिक्षक प्रशिक्षण के तहत विद्यालय में जाकर पाठ्य योजना के अन्तर्गत कक्षाओं में जाकर पढ़ाना था। लेसन प्लान बना कर मैं एक विद्यालय गई। एक कक्षा को पढ़ाने के बाद मैंने टाइम देखा तो दस पन्द्रह मिनट ऊपर हो गये थे। पर अभी तक दूसरे पीरियड की घंटी नहीं बजी थी, दूसरे पीरियड में मुझे समय कम मिलता, इसलिए मैंने बाहर आकर देखा तो एक स्टूल पर मुड़े तुड़े हुए कपड़े पहने एक व्यक्ति बैठे थे। मैंने उनसे कहा,समय तो हो गया है, आपने घंटी क्यों नहीं बजाई ? उन्होंने आंखें तरेर कर मुझे देखा और उठ कर चले गए।
कुछ देर में घंटी बज गई।
मेरा समय समाप्त हो गया तो मैं घर जाने ही वाली थी कि एक चपरासी आया, मैडम आपको प्रिंसिपल सर बुला रहें हैं।
मैं अंदर गई तो देखा सारा स्टाफ बैठा है, और जिनको मैंने घंटी बजाने को कहा था, वो उनके बीच में विद्यमान थे। मैंने आश्चर्य से उन्हें देखा,मन में सोचा,ये चपरासी इनके बीच। इतने में प्रिंसिपल सर ने कहा,,, मैडम, ये सर कह रहे हैं कि आपने इन्हें चपरासी समझ कर घंटी बजाने को कहा, उनका अपमान आपने किया है। तो ये आपसे माफ़ी मांगने की जिद कर रहें हैं। बहुत नाराज़ हैं। आप इनसे माफी मांग लीजिए।
मैंने कहा,सर जी, ये तो चपरासी के स्टूल पर बैठे थे। ऊपर से …. कह कर मैं चुप हो गई, कहना तो चाहती थी कि इनके कपड़े को देखिए,गंदा सा पाजामा, और कुर्ता, पर बोल नहीं सकी, फिर मैंने गुस्से में आकर कहा , “माफी तो मैं भगवान से भी नहीं मांगती ” यदि वो मेरी बात नहीं सुनते तो मैं गुस्सा हो जाती हूं। तो मैं तो इनसे माफी हरगिज़ नहीं मांगूंगी। ये क्यों चपरासी की जगह पर बैठे थे। सबने मुझे बहुत समझाया,पर मैं टस से मस नहीं हो रही थी। मेरा स्वाभिमान मुझे इसकी इजाजत नहीं दे रहा था। नई नई नौकरी, नई नई उमर।जोश से लबरेज मैं।
मैंने कभी भी अपने माता-पिता से माफी नहीं मांगी,चाहे मेरी कितनी भी बड़ी ग़लती क्यों न हो।
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इतने में सर ने उठते हुए कहा,चलिए, आपने किस कक्षा को पढ़ाया है, वहां चल कर देखते हैं। जी चलिए।
बाहर आकर सर ने कहा, मैं आपके पिता जैसा हूं, देखिए, गलती तो आप से हो गई है ना,चाहे अनजाने में ही सही। आप उनकी जगह अपने को रख कर देख लीजिए, उनके सम्मान को चोट पहुंची है, सबके सामने अपने को अपमानित महसूस कर रहे हैं। कपड़ों से हम किसी के गुणों का आकलन नहीं कर सकते हैं, वो बहुत ही कुशल, विद्वान शिक्षक हैं। घर से थोड़ा परेशान हैं।आप उनकी वेशभूषा पर मत जाइए। आपके लेसन प्लान के वो ही इंचार्ज हैं, वहीं चुपचाप बैठ कर वो आपके पढ़ाने के तरीके को देख रहे थे। आप तो बहुत बुद्धिमान हैं, आपने शिक्षक प्रशिक्षण परीक्षा में पूरे मध्यप्रदेश में दूसरा स्थान प्राप्त किया है।आपके प्रिन्सिपल आपकी बहुत तारीफ करते हैं। आप उनसे माफी मांग कर अपनी विनम्रता का परिचय दीजिए। आपकी एक माफ़ी उनके चोट खाए हुए दिल पर मलहम का काम कर देगी। माफी मांगने से आपका ही स्तर ऊंचा हो जाएगा।
उनकी बात मेरी समझ में आ गई और हठ छोड़ कर मैंने उनसे कहा,वाकई,सर गलतफहमी की वजह से मुझसे अनजाने में ही सही, गलती हो गई है, मेरी वजह से आपको चोट पहुंची है,आप बहुत दुखी हैं, मैं ह्रदय से आपसे दोनों हाथ जोड़कर माफी मांगती हूं, मेरे बाबूजी कहते हैं,किसी का दिल हमारे कारण दुखा हो तो भगवान भी हमें माफ़ नहीं कर सकते हैं। सबके सामने माफी मांगने से उन्हें गर्व का एहसास हुआ,उनका चेहरा सम्मान पाकर चमकने लगा। चलिए ठीक है,हो जाता है कभी कभी, कहकर मुस्कुरा दिए और मेरे मन से भी बोझ उतर गया।
सच मानिए, ये मेरी पहली माफीनामा मुझे आज तक नहीं भूली।
अब तो बच्चों ने भी बात बात पर सॉरी और थैंक्यू कह कर मुझे भी सिखा दिया है । अपने मेड और छोटों को भी मैं अक्सर सॉरी थैंक यू बोलती रहती हूं।
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सही कहा था सर जी ने… हमें किसी के वेश-भूषा से उसके आचरण, व्यवहार और विद्वत्ता का मूल्यांकन नहीं करना चाहिए।
माफी मांगने से हम छोटे नहीं हो जाते, उससे हमारा बड़प्पन ही झलकता है ,और हां माफी मांगना भी हर किसी के बस की बात नहीं है। माफ़ कर देना भी हर कोई नहीं जानता। बड़ी से बड़ी गल्तियां भी माफ़ी मांगने से माफ हो सकती है।
सुषमा यादव, प्रतापगढ़ उ प्र
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
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