सुषमा आज फिर सकारात्मक उत्तर की अपेक्षा मे प्रमोद जी की खाने की थाली परोस रही थी कि, शायद आज दिल खुश हो जाये …
प्रमोद जी ने खाना शुरू कर दिया , पहला निवाला मुँह मे रखते ही वे बोले ,अरे वाह ,,,आलू प्याज़ की सब्जी,,,,
सुषमा की जिज्ञासा और बढ़ी कि,शायद अब वे वो कहेंगे जो मैं पिछले छब्बीस सालों से सुनना चाहती हूँ ॥पर जब वे कुछ न बोले तो उससे रहा न गया ,उसने प्रमोद से पूछ ही लिया _–सब्जी कैसी बनी है?
“बहुत अच्छी , पर माँ के हाथ की सब्जी की तरह नही,वैसा स्वाद आज तक नही मिल पाया, जो माँ के हाथों मे था।” प्रमोद ने कहा।
दिल बैठ गया ,चेहरा मुरझा गया। सुषमा रसोई मे चली आई ,
छब्बीस सालों से हर प्रयत्न कर लिए पर प्रमोद के मुँह से सिर्फ यह सुनने के लिए सुषमा के कान तरस गए कि ,हाँ आज आलू प्याज़ की सब्जी बिलकुल माँ के हाथ जैसी बनी है।
बच्चे बड़े हो गए, बेटे का विवाह हो गया, बहू घर मे आ गयी ,
आज खाना बहू ने ही बनाया था। टेबल पर खाना लगा दिया गया ।सभी खाना खाने बैठ गए । सुषमा ने देखा बहू ने आलू प्याज़ की सब्जी बनाई है। बहू ने बड़े ही प्यार से सबको खाना परोसा ।,सबने खाना शुरू कर दिया ।
“सब्जी कैसी बनी है? ” अचानक बहू ने बेटे की तरफ देख कर पूछा ।
“बहुत अच्छी ….पर माँ के हाथ के जैसी नही बनी…तुम एक बार माँ से रेसिपी पूछ कर फिर ट्राय करना …” बेटा बोला ।
बहू के चेहरे का रंग बदल गया। सुषमा ने प्रमोद की ओर देखा जिनकी नज़रें चश्मे मे से उसे ही देख रही थी,,,,,,
*नम्रता सरन”सोना”*
भोपाल मध्यप्रदेश