माँ का विश्वास – रश्मि प्रकाश

आज बहुत दिनों बाद प्रफुल्ल घर आ रहा है… मनोरमा जी ने बेटे को फ़ोन करके आने के लिए जो कहा था कॉलेज की पढ़ाई करने शहर गया तो अतिव्यस्त दिनचर्या और पढ़ाकू प्रफुल्ल के लिए घर आने का वक़्त ही नहीं मिल रहा था पर मनोरमा जी ने बेटे को इस बार कैसे भी हो दो दिन के लिए घर आने को कहा था जिस बात को प्रफुल्ल टाल नहीं सका और जब आ रहा है तो इस भरे पूरे परिवार में उसको लेकर संशय हो रहा है कि क्या मनोरमा जी अपने बेटे को गले लगाएगी या फिर लताड़ देगी …. 

पर मनोरमा जी वो तो रसोई में व्यस्त है अपने लाड़ले के लिए खाना बनाने में…तभी रसोई में उसकी जेठानी कला आकर पूछती है,” छोटी तू सच में अपने प्रफुल्ल से ग़ुस्सा नहीं है ?” 

“ क्यों ग़ुस्सा जीजी … जब पता है मेरा बेटा लाखों में एक है उसमें कोई ऐब हो ही नहीं सकता और मैं किसी की कही गई बातों पर विश्वास कर के अपने विश्वास की डोर को कमजोर नहीं करना चाहती ।” कहते हुए मनोरमा जी कढ़ाई में पूरी डाल कर तलने लगी

“ ये छोटी माँ भी ना …. ग़ज़ब विश्वास करती है प्रफुल्ल भइया पर और एक हमारी माँ है कोई झूठ भी बोल दे तो वो विश्वास कर लेगी।” रसोई के बाहर अपनी माँ कला और मनोरमा चाची की बातें सुन कला के बेटे कुशल ने मन ही मन कहा

शाम होते प्रफुल्ल भी घर आ गया….बस मनोरमा जी को छोड़ उसने ध्यान दिया की सब उसे आश्चर्य से देख रहे हैं वो अपने भाई की तरफ़ देख रहा था कि वो कुछ बताए तभी दरवाज़े पर कला की बेटी भी अपने भाई प्रफुल्ल से मिलने आ गई और प्रफुल्ल के मन का संशय वही अटक गया ।

“ दीदी जीजू साथ नहीं आए वो आ जाते तो उनसे भी मिल लेता, दो दिन बाद तो मैं चला ही जाऊँगा।”बहन को अकेला आया देख प्रफुल्ल ने पूछा 

“ वो रात को जब हमें लेने आएँगे तब तू मिल लेना… चल ये बता कैसी चल रही है तेरी पढ़ाई और तेरी मस्तियाँ?” बहन कनु ने उसके गालों पर चिकोटी काटते हुए पूछा

“ मस्ती और मैं… मैं तो बस अपनी पढ़ाई में मग्न रहता हूँ… कुछेक दोस्त है जिनके साथ कभी-कभी घुमने निकल जाता हूँ वरना सारा समय तो मेरा किताबों के संग निकलता है ।” प्रफुल्ल ने कहा 

“ अच्छा फिर वो विवेक हमारा पड़ोसी और तेरा कॉलेज दोस्त हमारी चाची से तेरी शिकायत क्यों कर रहा था?” कनु ने पूछा 

“ मेरी शिकायत … ? “ सोचने की मुद्रा में प्रफुल्ल ने पूछा 

“ हाँ भइया वो छोटी माँ से आपकी शिकायत कर के गए हैं…जब आप छोटी माँ के पास जाओगे तो माफ़ी माँग लेना…. वैसे मुझे समझ नहीं आ रहा आपकी फ़ोटो देखकर भी छोटी माँ उसकी बात पर विश्वास नहीं कर रही थी पता वो विवेक भइया से क्या बोली … मेरा प्रफुल्ल कभी ऐसा कर ही नहीं सकता … तू चाहे गंगा में खड़े होकर भी बोलेगा तो भी मैं विश्वास ना करूँगी…. मेरे बेटे के लिए मेरे विश्वास की डोर कमजोर नहीं हो सकती…. इतना विश्वास करती है छोटी माँ आपके उपर…. उनका विश्वास टूटने मत देना भइया ।” कुशल ने कहा 

“ कौन सी फ़ोटो क्या शिकायत तुम लोग क्या कह रहे हो मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा खुलकर बताओ ना?” प्रफुल्ल आश्चर्यचकित हो कर बोला

तभी मनोरमा जी ने सबको खाने के लिए आवाज़ दी… सब बच्चे खाने चल दिए ।

खाना खा कर सब अपने अपने कमरों में सोने चले गए।

जब से प्रफुल्ल के पिता के पिता का देहान्त हुआ तब से प्रफुल्ल अपनी माँ के साथ ही सोने लगा था बड़े होने के बाद भी वो माँ के साथ ही सोने की ज़िद करता था पर मनोरमा जी बोलती कुशल के साथ सोया करो वो छोटा है अकेले उसे डर लगेगा पर आज जब वो कॉलेज जाने के बाद पहली बार घर आया तो उसने मनोरमा जी के साथ ही सोने की ज़िद की मनोरमा जी भी बेटे की जिद टाल ना सकी आख़िर बहुत वक़्त के बाद बेटे के साथ बातचीत करने का मौक़ा जो मिला था ।

“ माँ विवेक ने तुमसे मेरी शिकायत की ?” मन में चल रहे सवालों में उलझा प्रफुल्ल माँ से पूछ बैठा 

“ हाँ कुछ बोल तो रहा था पर मैंने उसकी बात पर विश्वास ना किया…. वो किसी की कसम भी देता गंगा में खड़े होकर भी बोलता तो भी विश्वास ना करती।” मनोरमा जी ने बेटे की ओर देखते हुए कहा 

“ मुझे बताओ तो सही शिकायत क्या की ?” आश्चर्य से प्रफुल्ल ने पूछा 

“ जाने दे ना क्यों पूछ रहा है ।” मनोरमा जी बात को टालते हुए बोली 

“ नहीं माँ बताओ तो सही…. मुझे भी तो पता चले क्या शिकायत की क्या फ़ोटो दिखाई?” प्रफुल्ल ने कहा 

“ वोऽऽ वो… कह रहा था देखो प्रफुल्ल कॉलेज क्या गया सिगरेट पीने लगा … और उस फ़ोटो में तेरे हाथों में सिगरेट भी दिखाई दे रही थी…. घर में सबने विश्वास कर लिया कि शहर क्या गया कॉलेज की पढ़ाई करने और कर क्या रहा है…. मैंने तभी सबके सामने कह दिया मैं कभी विश्वास ना कर सकती मेरा प्रफुल्ल सिगरेट पी सकता…. उसमें कोई ऐब हो तो विश्वास कर लूँ जब मुझे विश्वास है वो ऐसा कुछ कर ही नहीं सकता तो आप लोग बात को यहीं ख़त्म करें…. पता तेरे बड़े पिता ने क्या कहा था…परम तो चला गया बुरी आदतों के सेवन करके बेटा भी उसके ही पदचिह्नों पर चलेगा…. बस बाहर निकलने की देरी थी लो रंग दिखा दिया… बेटा तेरे बड़े पिता से भी मैंने यही कहा था मेरा प्रफुल्ल मेरा विश्वास है वो ऐसा कोई काम ना कर सकता जिससे उसकी माँ को लोग ताने दे… मैं सच कह रही हूँ ना बेटा?” ये कहते कहते मनोरमा जी की आँखों में आँसू छलक आए थे 

“ माँ सच में विवेक ने फ़ोटो दिखाया फिर भी तुमने विश्वास नहीं किया?” आश्चर्य से प्रफुल्ल ने पूछा 

“ हाँ क्यों मेरा विश्वास गलत है?” मनोरमा जी ने पूछा 

“ नहीं माँ तेरे विश्वास की डोर कभी टूटने नहीं दूँगा पर मेरे हाथों में सिगरेट कैसे आई ये तो तुम्हें पूछना चाहिए था ना …चल कोई नहीं मैं बताता हूँ…. मेरा वो दोस्त है ना आरव… जिसका घर उसी शहर में है ….उसे सिगरेट का शौक़… मैं तो उसको मना ही करता हूँ पर वो बोलता यार तू पता नहीं कौन सी मिट्टी का बना है … पर मुझे तो कभी कभी सिगरेट पीने दिया कर … और वो कभी कभी कॉलेज से घर जाने से पहले सिगरेट पीने की ज़िद करता… एक दिन उसका कोई रिश्तेदार  उस तरफ़ आ रहा था और उसने डर के मारे मेरे हाथों में सिगरेट पकड़ा दिया … उसी वक़्त विवेक भी मुझे पूछने आया था …वो घर जा रहा है तुम्हारे लिए घर से कुछ लाना है तो बता दो … पक्का तभी उसने फ़ोटो लिया होगा आप लोगों को दिखाने के लिए…. मैं तो मजे से उससे बात कर रहा था… ये भी नहीं सोचा था कि मेरे हाथों में सिगरेट है… वैसे भी माँ जब कोई गलती करो तो डर लगता बिना गलती के डर कैसा?…..वैसे माँ तेरा विश्वास मान गया मैं ।” कहते हुए प्रफुल्ल माँ के गले लग गया 

“ बेटा जब एक माँ अपने बच्चों को जब हर अच्छी बुरी बातें बताती रहती है तो उसे विश्वास रहता है कि उसके बच्चे ऐसा कोई काम ना करेंगे जो उसे और उसके माता-पिता को शर्मसार करें…. तुम्हें बस यहाँ इसलिए आने को बोल रही थी ताकि परिवार वालों के मन में जो तुम्हें लेकर संशय है वो दूर हो जाए और उन्हें यक़ीन हो जाए कि मनोरमा का विश्वास उसके बेटे के लिए ग़लत नहीं है …. कल तेरे बड़े पिता जी सवाल करें तो ना तू शर्मिंदा हो ना मैं ।” मनोरमा जी बेटे के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली 

दूसरे दिन जैसा की मनोरमा जी को उम्मीद था उनके जेठ प्रफुल्ल से सवाल करेंगे…

“ ये सब क्या चल रहा है प्रफुल्ल…. कॉलेज पढ़ने गए हो या …? बड़े पिता ने प्रफुल्ल से कड़क स्वर में पूछा 

प्रफुल्ल ने जो सच्चाई थी वो बताते हुए कहा,” बड़े पिता जी…. जिन बुरी आदतों की वजह से मैंने पिता को खो दिया है…. मैं कभी ऐसा सोच भी नहीं सकता….और मैं ये विश्वास दिलाता हूँ कि मैं अपनी माँ के विश्वास की डोर को कभी कमजोर नहीं पड़ने दूँगा ।” प्रफुल्ल के बोलने के लहजे से ही उसकी स्पष्टता समझ आ रही थी उसके बड़े पिता जी ने उसे पास बुलाया और बोले,” बेटा एक बार को तो हमने विश्वास कर लिया था कि शायद तू भी …. पर तेरी माँ का विश्वास अटल था और वादा कर तुम्हारे उपर उसके विश्वास की डोर को कभी टूटने ना देगा… वो पति खो चुकी है तुम्हें खोना उसके लिए…।”

“ ऐसा कभी नहीं होगा बड़े पिता जी… ये मेरा आपसे वादा है।’ प्रफुल्ल अपनी माँ की ओर देखते हुए बोला

 मनोरमा जी एक किनारे पर खड़ी बेटे को देख उसपर फ़ख़्र कर रही थी।

मेरी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#विश्वास की डोर

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