शुभा अभी घर के सुबह के कार्यों को निबटा ही रही थी कि फोन की घंटी बजी।
फोन उठाते ही अंश के स्कूल से फोन था आप जल्दी विद्यालय पहुंचे अंश खेलते खेलते गिर गया है उसे चोट आई है अस्पताल ले जाना पड़ेगा देरी न करें।
फोन रख उसने अपनी सास से कहा मम्मी जी मैं अंश के विद्यालय जा रही हूं अंश गिर गया है उसे चोट आई है अस्पताल ले जाना पड़ेगा
हैं तो तू क्या अकेली जाएगी।
मम्मी जी बात समझिये सुदीप, भैया और पापा जी सब काम पर जा चुके हैं उन्हें आने में देर हो जायेगी बच्चे की स्थिति नाजुक है।
कोई जरूरत नहीं है अकेले जाने की वे लोग हैं सम्हाल लेंगे।अभी बात हो ही रही थी कि फिर फोन आ गया आप शीघ्र आयें हमने एम्बुलेंस बुला ली है।यह सुन अब शुभा अपने को रोक नहीं सकी जैसी खड़ी थी वैसे ही पर्स में कुछ रुपए डाल वह बाहर की ओर भागी।
तभी सास जोर से चिल्लाई सुन नहीं रही मैं क्या कह रही हूं।
तब तक शुभा जा चुकी थी।अंश बेहोश था उसे देख उसे रोना आ गया। स्कूल वालों के संग उसे लेकर वह अस्पताल पहुंचीं।तब तक उसने सुदीप को भी वहां पहुंचने के लिए फोन कर दिया था। सुदीप के पहुंचने तक अंश को होश आ चुका था उसकी मरहम पट्टी कर दो घंटे बाद डिस्चार्ज कर दिया।
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सुदीप को अंश एवं शुभा के साथ आते देख उसकी मम्मी सुमिता जी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया बजाए अंश की तबीयत पूछने के वे सुदीप पर बरस पड़ीं।देख बेटा ये तेरी पत्नी मेरा कहना जरा भी नहीं मानती।मेरे मना करने के बाद भी यह अंश के स्कूल अकेली चली गई। इसे अच्छी तरह समझा यह बातों की भाषा नहीं समझती इसे दूसरी तरह समझाना पड़ेगा उनका आशय शारीरिक प्रताड़ना की तरफ था ।
तब तक शुभा की जिठानी अंकीता अंश को कमरे में ले जाकर लिटा चुकी थी और हल्दी वाला दूध बना कर पिला दिया।
मां का प्रलाप सुन सुदीप शुभा से गुस्से में बोला शुभा तुम मम्मी का कहा क्यों नहीं सुनतीं जब वो मना कर रही थीं तो मान जातीं मुझे फोन कर देतीं मैं आ जाता। सुदीप तुम अंश की हालत देख कर भी क्या बोले जा रहे हो। मैं दूसरों के भरोसे अपने बेटे को नहीं छोड़ सकती थी तुम्हें आने में समय लगता। मैंने मम्मी जी से पूछा था पर इन्होंने मना कर दिया।
तो तुम्हें रूकना था छोटी सी बात तुम्हारी समझ में क्यों नहीं आती।देखो भाभी भी तो रहती हैं घर में वे कहीं अकेले जातीं हैं।
सुदीप तुम किस जमाने में जी रहे हो अकेले जाने में क्या परेशानी है मुझे आदत है। शादी से पहले भी तो मैं स्कूटर चलाती थी और अपने सब काम खुद करती थी तो अब क्या हो गया।
देख बेटा कैसे कैंची सी जबान तुझसे लड़ा रही है। इसे न जाने किस बात का इतना गुरूर है।
शुभा अब आगे से तुम घर से बाहर कदम नहीं निकालोगी समझ लोवर्ना****।
वर्ना क्या करोगे वह भी करके दिखा ही दो।कह वह दुख और क्षोभ से रोती अपने कमरे में चली गई।अंश को देख उसे और जोरों की रुलाई फूट पड़ी।आज के जमाने में ये कैसी बंदिश है और मां का श्रवण कुमार बेटा सब सच्चाई जानते हुए भी कैसी ऊल-जलूल बातें कर रहा है।
अस्पताल में तो सुदीप ने कुछ नहीं कहा घर आते ही क्या हो गया।सुबह से उसने कुछ नहीं खाया था,भूख के मारे बुराहाल हो रहा था किन्तु इतने अपमान के बाद जाकर खाना लेने का मन नहीं हो रहा था। इतना अपमान मानो उसकी कोई अहमियत ही नहीं है। सुदीप पढ़ा-लिखा समझदार है फिर मां के सामने उसे क्या हो जाता है।
तभी उसकी जिठानी उसके लिए खाना लेकर आती है। शुभा खाना खा लो भूख लगी होगी।
नहीं दीदी मेरी भूख मर चुकी है इतना अपमान बिना कुछ ग़लती किये।आप ही बताओ क्या मैंने जाकर गलत किया।
अंकिता, नहीं शुभा तुम अपनी जगह सही हो पर मम्मी जी की ये अकेले बाहर जाने पर रोक लगाने की बात समझ नहीं आती। मैं तो पंद्रह साल से इस कैद को भुगत रही हूं। मुंह खोलने पर तुम्हारे भैया भी मेरी ही लानत-मलामत करते हैं सो हार कर चुप हो गई।
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मुझे भी तो सात साल हो गए, अरे बच्चा है कभी भी कहीं भी जाने की जरूरत पड़ सकती है क्या मैं सुदीप के आने की राह देखती रहूं।वो भी इस ज़माने में।
अंकिता उसे खाना खिला अपनी बेटियों को खाना देने चली गई जो अभी अभी स्कूल से आईं थीं।दवा के असर से अंश सो रहा था। शुभा ने अपने कपड़े अटैची में रखे अंश का सामान समेट रही थी कि तभी सुदीप कमरे में आया और बोला ये क्या कर रही हो कहीं जा रही हो क्या।
हां मैं जा रही हूं अपने मम्मी-पापा के पास अब यहां और नहीं रह सकती ।
पर हुआ क्या है जो घर छोड़ने की बात आ गई।
अब और क्या होना बाकी है अभी इतने से
तुम्हारा मन नहीं भरा।
सुदीप उसे हाथ पकड़ पलंग पर बैठाते बोला शुभा मेरी बात सुनो मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता वो तो बस मां के अहम् को संतुष्ट करने के लिए तुमसे कह दिया। शुभा यह सुनते ही गुस्से से उठ खड़ी हुई क्या कहा मां का अहम् और मेरे स्वाभिमान का क्या जो जब-तब सबके सामने ऐसे ही लताड़ते रहते हो
यहां तक बच्चों के सामने भी मेरा अपमान करने से नहीं चूकते। क्या मेरा कोई अहम् नहीं है।ये बच्चे मेरी क्या इज्जत करेंगे। इन्हें तुम कैसा वातावरण दे रहे हो। आगे चलकर बच्चे वही आचरण करेंगे जो वे देख रहे हैं।आज मेरी क्या ग़लती थी दो बार फोन आया बच्चे की हालत खराब थी। मैंने पूछा था
पर जाने ही नहीं दे रहीं थीं। मैं भी मां हूं मेरा बच्चा तकलीफ में है तो मैं कैसे रुक सकती थी । तुम पढे लिखे हो क्या इतना भी नहीं समझते कि मेरी क्या ग़लती थी और तुम ये बात मां को भी समझा सकते थे।पर नहीं उनकी हां में हां मिला कर गलत तरीके से मुझे अपमानित किया। और ये क्या लगा रखा है कि अकेले बाहर नहीं जाना। क्यों यह रोक लगा रखी है अब तो मैं बिल्कुल नहीं मानूंगी। बहुत हो गया सात सालों से भुगत रही हूं ये कैद।
शुभा यदि मां को इससे खुशी मिलती है,उनका अहम् संतुष्ट होता है तो तुम्हें क्या परेशानी है।
परेशानी ,मैं और अंकिता दीदी भी इंसान हैं इतनी पाबंदी में कैसे रह सकते हैं। हमारी भी इच्छा होती है बाहर आने जाने की, घूमने की। क्या हम इतने अनाड़ी हैं कि पुरुष के साथ के बिना बाहर जा ही नहीं सकते। इससे हमारे अहम् को संतुष्टि मिलती है। यदि मां के अहम् की इतनी चिंता है तो पत्नी के अहम् की भी चिंता कीजिए जिसे आप सात वचन दे सुखी रखने का वादा कर इस घर में लाए हैं।हम कोई कैदी नहीं हैं
जो हमारे आने जाने पर रोक लगाई जाए। फैसला तुम्हें करना है या तो मां को समझाकर गलत बात करने से रोको नहीं तो अपने रास्ते अलग अलग हैं। अब मैं यह बंधन स्वीकार नहीं करूंगी और न ही अपमान सहूंगी। मैं अपने बच्चे के साथ घर छोड़ दूंगी।ये मेरी कोई मनमानी नहीं है अपने हक की लड़ाई है। मां के सम्मान के साथ -साथ पत्नी का सम्मान करना भी सीखें।
सुदीप ने बड़े भाई से बात कर पापा से बात की। पापा आप मम्मी को समझायें ये सब रोक हटा दें। बहुओं को स्वतंत्र रूप से
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आने -जाने की अनुमति दें नहीं तो घर
टूटने की नौबत आ जाएगी।
पापा के समझाने पर मम्मी बोलीं इन्हें बाहर जाने दूंगी तो ये तो फिर मनमानी
करेंगी। सारे दिन बाजार में घूमती फिरेंगी घर का काम कौन करेगा इसलिए रोकती हूं।
पापा बोले ये तुम अच्छा नहीं कर रही हो। दोनों बहुएं समझदार हैं वे अपनी जिम्मेदारी समझतीं हैं देख लो घर बंधा रखना चाहती हो तो अपनी जिद छोड़ दो वर्ना वे अपने परिवार को लेकर अलग-अलग हो जाएंगे फिर अकेली बैठी रहना।
वे जानती थीं कि वह गलत हैं। फिर यह सोचकर कि यदि बेटे-बहू अलग हो गए तो सारी जिम्मेदारी उन पर आ जाएगी और उनका आजादी से घूमना-फिरना , आस पड़ोस में गप्पे मारना, आराम से टीवी धारावाहिक देखना सब बंद हो जाएगा उन्होंने बहुओं को आजादी देना ही उचित समझा।
अब सब हंसी-खुशी रह रहे थे।
शिव कुमारी शुक्ला
11-12-24
स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित
शब्द प्रतियोगिता****अपमान