माँ का फैसला कितना सही कितना गलत   –  पूजा अरोड़ा

जिस दिन ही रागिनी  और मनन  हनीमून से वापस आए उसी दिन सुनीता  ने बेटी रागिनी  और दमाद मनन   को अपने घर शाम को चाय पर बुला लिया|

रागिनी  और मनन  बहुत खुश नजर आ रहे थे और आते  भी क्यों नहीं दोनों ने प्रेम विवाह किया था और एक दूसरे को अच्छी सी जाँच – परख लिया था |

जब दिल मिल जाते हैं तो चेहरे की रौनक ही  कुछ और होती है | रागिनी  और मनन  को खुश देख कर आज सुनीता  भी बहुत खुश थी |

मुस्कुराते हुए बोली, “देख रही हूँ! तुम दोनों बहुत खुश लग रहे हो  | मैं तुम दोनों से कुछ जरूरी बात करना चाहती हूँ |”

जैसे ही य़ह सुनीता  ने कहा दोनों सवालिया नजरों से सुनीता  की ओर देखने लगे |

“बेटा मनन ! तुम तो जानते ही हो कि रागिनी के पिताजी के जाने बाद रागिनी की सारी जिम्मेदारी मेरे ऊपर आ गई थी और उसको मैंने उच्च शिक्षा दी और उसकी अच्छी परवरिश करने की कोशिश भी की | सिंगल पेरेंट्स होने के नाते बहुत मुश्किल होता है अकेले इस तरह बच्चे की परवरिश करना परंतु मेरे शिक्षित होने की वजह से और आत्मनिर्भर होने की वजह से यह सब कुछ संभव हो सका और मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने अपने दायित्व को भली भांति निभाया |”

सुनीता  ने अभी इतना कहा ही था कि अचानक रागिनी  के चेहरे के भाव बदलने लगे परंतु उसकी परवाह किए बिना सुनीता  ने आगे कहना शुरू किया,” बेटा! अब मैंने जीवन में आगे बढ़ने का फैसला किया है और मैं अपने पुराने मित्र अखिलेश से विवाह करने जा रही हूँ |”

अभी सुनीता  ने इतना ही कहा था कि रागिनी  गुस्से से चीख उठी, “मां! इस उम्र में शादी और अखिलेश अंकल का भूत अभी तक आपके सिर से उतरा नहीं है |”

मनन  रागिनी  के इस रवैए से हैरान था, ” रागिनी ! तुम माँ से इस तरह का व्यवहार कैसे कर सकती हो? “




” तुम्हें कुछ नहीं पता | मनन ! तुम्हें कुछ भी नहीं पता” रागिनी  ने भरी आँखों से बोला |

“हाँ बेटा! तुम्हें कुछ नहीं पता और क्योंकि तुम भी अब इस  घर के सदस्य हो इसलिए आज मैं तुम सब कुछ बताती हूँ | कॉलेज के दिनों में अखिलेश मेरा ही सहपाठी था और ना जाने कब हमारी दोस्ती प्रेम में बदल गई परंतु दूसरी जाति का होने के कारण मेरे पिताजी ने उसके साथ विवाह के लिए  मुझे सहमति नहीं दी और अखिलेश मेरे अभिभावकों की सहमति के बिना विवाह नहीं करना चाहता था इसलिए हम दोनों ही  स्वयं ही पीछे हट गए|

मेरा विवाह रागिनी  के पिता राजेश के साथ हो गया | मैंने भी इसे अपनी किस्मत मान कर अपने आप को राजेश और उसके परिवार के आगे समर्पित कर दिया परंतु विवाह के चार साल बाद ही राजेश का गुस्सैल स्वभाव मुझे तंग करने लगा परंतु फिर भी रागिनी  की खातिर मैं  सब कुछ सहती रही और अचानक राजेश की एक सड़क दुर्घटना में शरीर के आधे हिस्से ने काम करना बंद कर दिया और उस समय पर  घर और बाहर की दोनों जिम्मेदारी मुझे उठानी पड़ी |  मैंने नौकरी करना शुरू कर दिया और साथ ही मैं राजेश की देखभाल भी करती और इधर रागिनी  की पढ़ाई का ध्यान रखती परंतु बिस्तर पर पड़े रहने के कारण वह कुंठाग्रस्त होते गए और दिन पर दिन हमारे झगड़े बढ़ते चले गए | मेरे दफ्तर जाने पर भी मेरे चरित्र पर उंगली उठाना आम बात थी परंतु मैं फिर भी उनकी सेवा करती रही और मात्र 12 बरस की रागिनी  थी तब राजेश का हृदय गति रुकने के कारण अचानक निधन हो गया और उस समय अखिलेश ने एक स्तंभन कर मुझे सहारा दिया | अखिलेश ने अभी तक विवाह नहीं किया था | अभी भी  वे मुझसे विवाह करने को इच्छुक थे और रागिनी  को अपनाने को भी |  जब मैंने रागिनी  से अपने दूसरे विवाह की बात की तो रागिनी  इस बात के लिए तैयार नहीं हुई | किशोर बच्ची थी और उसके मन पर बुरा प्रभाव ना पड़े इसलिए अखिलेश ने मुझे विवाह को कुछ समय के लिए टाल जाने के लिए कहा | कुछ वर्ष यूँ ही बीत गए परंतु रागिनी  का दूसरे  किसी और को पिता स्वीकार करना ना जाने क्यों हरगिज मंजूर नहीं था बल्कि रागिनी   देर सवेर आने पर  मुझको अजीब सी नजरों से देखती और इससे बचने के लिए अखिलेश ने इस शहर से दूर दूसरे शहर बैंगलोर में अपना तबादला करा लिया |कभी कभी  फोन पर हमारी बात हो जाती थी परंतु मिले हुए काफी अर्सा हो गया था | एक औरत की इच्छा को पूरा ना करके पहले मैंने अपने माँ होने के दायित्व को निभाना जरूरी समझा | मैंने अपनी भावनाओं को मार दिया और रागिनी  की खुशी के लिए अखिलेश को थोड़ा और इंतजार करने के लिए कहा | अब जब तुम इसकी जिंदगी में आ गए हो तो मुझे लगता है कि मेरा दायित्व पूरा हो गया है और शायद बनवास भी |” सुनीता  ने अपनी बात खत्म की |

 




” मम्मी! आपने सोचा है मेरे ससुराल वाले क्या कहेंगे और यदि आपको विवाह करना ही था तो आप पहले बता देते कम से कम मेरे ससुराल में यह बात पहले तो रखी जा सकती थी | इस तरह तो उन्हें लगेगा कि हमने उनके साथ धोखा किया है |”*गुस्से में रागिनी  बोली |

मनन  ने रागिनी  को शांत करते हुए कहा,” धैर्य रखो रागिनी ! मुझे जहाँ तक लगता है तुम किसी और को अपने पिता के रूप में देखना ही नहीं चाहती हो शायद इसीलिए तुम तरह-तरह के बहाने बनाती हो |  मैं मानता हूँ कि किसी भी बच्चे के लिए किसी और को पिता कहना बहुत मुश्किल होता है परंतु अब तो तुम परिपक्व हो चुकी हो और यदि तुम्हें अखिलेश जी को पापा नहीं भी कहना तो भी चलेगा उन्हें एक दोस्त के रूप में देखो कि वह तुम्हारी मां की दोस्त है |  जीवन में प्रत्येक को जीवन साथी की जरूरत होती है और मैं तो हैरान हूँ कि तुम्हारी माँ ने तुम्हारी भावनाओं की कदर करते हुए ताउम्र इतने अच्छे दोस्त से दूरी बनाकर रखी जो उनका हमसफ़र बन सकता था और उन्होंने भी माँ के निर्णय का मान रखा|  इससे अधिक पाक प्रेम का तुम्हें और क्या सबूत चाहिए और रही मेरे परिवार की बात तो मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे लोग क्या सोचते हैं मुझे यह फर्क पड़ता है कि माँ क्या सोचती है |

अगर माँ खुश है तो हमें इसमें कोई भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए | माँ मैं इस फैसले में आपके साथ हूं और रागिनी  भी इसकी गारंटी मैं लेता हूँ |” रागिनी  की तरफ देखते हुए मुस्कुराते हुए मनन  ने कहा |

 

सुनीता  को गर्व  था कि उसकी बेटी ने उनके लिए दामाद नहीं बल्कि एक हीरा चुना है |

आज पहली बार सुनीता  ने रागिनी  की चिंता छोड़ दी थी क्योंकि उन्हें पता चल चुका था कि उसका समझदार दामाद मनन  रागिनी  को संभाल लेगा और वे झट से अखिलेश को फोन करके झट य़ह खुशखबरी बाँटने लगी |

दोस्तों अक्सर विधवा या तलाकशुदा महिला कई बार समाज के कारण या अपने बच्चों के कारण जीवन में आगे बढ़ने का फैसला नहीं ले पाती है | उस समय जरूरत होती है उसके आसपास के लोगों को उसका साथ देने की | सिर्फ आधुनिकता कहने के लिए नहीं बल्कि आधुनिकता करनी ने में भी दिखानी चाहिए | दबे मुँह लोगों की चुगली करना या तलाकशुदा या विधवा के दूसरे विवाह पर बातें बनाना निम्न  सोच को दर्शाता है |  आवश्यकता है अपनी सोच को स्वतंत्र करने की क्योंकि जिंदगी अमूल्य है और प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मर्जी से जिंदगी जीने का अधिकार है |

उम्मीद है हर बार की तरह यह स्वरचित मौलिक और अप्रकाशित कहानी आपको पसंद आएगी और आपके नजरिए को बदलने का प्रयास करेगी |

  पूजा अरोड़ा

 

 

 

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