आज तो हद हो गई…आज जो कुछ भी घर में हुआ मेरी सहनशक्ति अब समाप्त हो गई है..
अर्पिता रोते हुए सोच रही थी,…अभी तक तो उसके पति और सास-ससुर ने ही उसके अपमान का जिम्मा ले रखा था..
आज तो उसके जेठ भी शुरु हो गए ।अर्पिता एक शिक्षित एवं समझदार स्त्री है..उसकी शादी को 15 साल हो गए हैं।
उसके दो बच्चे रूही तेरह साल और रुद्र दस साल हैं
उसके पति कोई काम नही करते, ससुर की पेंशन से घर चलता है….अर्पिता, खुद शिक्षिका के साक्षात्कार तक पहुंच, चुकी है..
.बस खराब किस्मत कि उसका चयन नहीं हुआ.. उसका और उसके बच्चों का खर्च उठा कर हमेशा अहसान जताया जाता है।
पति अमित घमंडी और कामचोर है।.हमेशा उसको और उसके मायके वालों को अपमानित किया जाता है।
यहां तक कि बच्चों के खाने पीने पर भी नजर. रखी जाती है..आज उसके जेठ ने कहा… तुम्हारी औकात ही क्या है
जाओ 2-4 हजार की नौकरी कर लो ।छोटी- छोटी पर, तुम्हारे माँ-बाप के पास है ही क्या….
का ताना मारा जाता है..तुम करती ही क्या हो..मन कर रहा है कि बच्चों को मौत की नींद सुलाकर स्वयं भी सो जाऊँ।
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सारे घर का काम, सास- ससुर की सेवा ,बच्चों का स्कूल उनकी पढाई सब मैं ही तो देखती हूं….
उसकी बेटी रूही ने कहा. …कि तुम परेशान ना हो मम्मी मैं तुम्हारे इस अपमान का बदला अवश्य लुंगी…
बस थोड़ा धैर्य बनाए रखो। दिन रात रूही पढ़ाई में लग गई…अब उसके जीवन का बस एक ही लक्ष्य था प्रशासनिक सेवा में चयन।
धीरे-धीरे समय बीतता गया और साथ -साथ बढ़ती गई रूही की मेहनत।एक दिन उसका प्रयास रंग लाया और उसका चयन अधिकारी के पद पर हो गया।
उसके शहर में भव्य रूप से उसके सम्मान की तैयारी हुई। नियत समय पर वो अपने पूरे परिवार के साथ वहाँ पहुंची।
सभी का जोरदार स्वागत हुआ…उसने कहा आज मैं जो कुछ भी हूं अपनी माँ के कारण हूं..मेरी माँ जो मेरी गुरू भी है..
ये गुरुदक्षिणा उनके लिए है। मेरी माँ ने हम दोनों भाई- बहन के लिए बहुत मेहनत की…मेरा भाई भी नौकरी के लिए प्रयासरत है..
एक दिन वो भी सफल होगा। मैंने अपनी माँ से वादा किया था मैं उन्हें टूटने नही दूंगी… आज मैंने अपना वादा पूरा किया।
वर्तिका दुबे