“तुम रोना बंद करो, जरूरत पड़ी तो मां को हमारे घर ले आयेंगे” कपिल ने छवि को तसल्ली देते हुए कहा।
“पापा के जाने के बाद भाई भाभी इतना बदल जायेंगे ऐसा कभी सपने में नहीं सोचा था। मां को कितना समझाया था किसी भी कागजात पर हस्ताक्षर करने से पहले पढ़ना सोच समझ कर कोई फैसला लेना। (छवि सुबक सुबक कर) पापा के इलाज में खर्च से कर्जा हो गया बोलकर पुश्तैनी घर बेच दिया। मां का कोई हिस्सा ना रख, दो फ्लैट लेकर….मां को दर बदर कर दिया।
कपिल छवि को पानी दे चुप करवाता है
“क्या हम बूढ़े नहीं होंगे, क्या हमारे बच्चे नहीं देख रहे कि हम अपने बुजुर्गों के साथ कैसा व्यवहार कर रहे। हम क्यों भूल जाते है समय का पहिया घूमेगा और हमारा किया ही सामने आएगा। कल तक घर की मालकिन का आज ये हश्र हो गया कि वो आशा भरी नजरों से सिर्फ अपने बच्चो की तरफ देख रही। जब तब बच्चे न खाले मां के हलक से निवाला नहीं उतरता और आज बच्चे एक दूसरे की शक्ल दे रहे कि मां को दो वक्त खाना कौन खिलाएगा।”
छवि के पिता के कोरोना में अचानक जाने के गम से अभी उबरी तक न थी कि मां के असुरक्षा के भय न उसे घेर लिया था। सारी रात उसकी करवटों में निकलती
छवि के बड़े भाई के बच्चे बड़े हो गए थे सो मां से उसका स्वार्थ खत्म हो चुका था छोटे भाई की बच्ची छोटी थी सो उसने मां को अपने साथ रख लिया था।
दो तीन महीने बाद छवि का मायके जाना हुआ तो देखा मां रसोई में बर्तनों को ढेर मांज रही थी।
“ये क्या है मां “
“क्या हो गया बेटा,अपने घर का काम करने में कैसी शर्म, तेरी भाभी ने नया जॉब ज्वाइन कर लिया है उसका बच्चा भी छोटा है सो दिक्कत होती है मुझे मदद करनी पड़ती है।”
“मां, तुम्हारे घुटनो में तकलीफ है बैठने वाले काम कर दो, खड़े रहने से तकलीफ बढ़ जाएगी”
छबि अपनी मां शकुंतला जी को समझा रही है।
“मां तुम्हे कोई भी परेशानी हो तो खुल कर बताओ। तुम्हे कड़वे घूंट पीने की जरूरत नहीं तुम्हारी बेटी और बेटे जैसा जवाई बैठा है। हमारे साथ चल कर रहो ” छवि जिद करने लगी।
“बिल्कुल नहीं बिटिया ऐसा कभी मत बोलना, बेटी हमेशा ससुराल में और मां हमेशा बेटो के साथ ही सुहाती है। जीवन में सुख दुख तो लगे रहते हैं।”
“मां मेरा होम बेकर का बिजनेस अच्छा चल पड़ा है। यहां भाई भाभियों की मोहताजी से मेरे साथ मिलकर काम करो। मेरी असिस्टेंट की तरह , मैं आपको सैलरी भी दूंगी ताकि आप अपने आपको बोझ न समझो, आत्म निर्भर बन जाओ।”
“बोहरा गई हो तुम, यहां देवरानी को जॉब करता देख जेठानी को भी नौकरी का शौक लगा है , कल तक मुझे साथ कौन रखेगा इस बात को झगड़े हो रहे थे अब मेरे को साथ रखने के लिए झगड़ा हो रहा। देर से सही मेरी कदर तो जानी”
“मां, कितनी भोली हो तुम ,ये झगड़ा तुम्हारे लिए नहीं हो रहा , उनको अपने बच्चो के लिए केयर टेकर चाहिए तुम उनके बच्चो का ध्यान रखो उनके घर का काम करो । इसीलिए तुम्हे साथ रखना चाहते। एक उम्र के बाद जब तुम्हारे शरीर से काम नहीं निकलेगा या भगवान ना करे कोई बीमारी हो गई तब फिर से ये लोग रंग बदल लेंगे। एक बार वो आपके विश्वास को तोड़ चुके है दुबारा विश्वास मत करो”
शकुंतला जी ने छवि की एक न सुनी।
“मेरे बेटों के साथ रहने में ही मेरा मान है अब वो जैसा भी रखें “
छवि की आंखों से आसूं टपकने लगे। जिस मां ने इतनी दुनिया देखी है आज वो क्यों सच अनदेखा कर रही? क्यों नही स्वीकार कर पा रही कि उसके बच्चो का मां से खून का रिश्ता नहीं अब सिर्फ स्वार्थ का रिश्ता है।
तीन महीने बाद छवि के घर एक निमंत्रण पत्र आया जिसमे फुलवारी क्रेच एंड प्ले स्कूल के इनॉग्रेशन था। छवि निमंत्रण पत्र को सीने से लगा रोने लगी।
सासू मां दौड़ती आई।
“क्या हुआ बहु सब ठीक तो है।क्या आया कोरियर में”
“मां जी, मेरी मां ने मेरे भाइयों वाली बिल्डिंग में ही एक फ्लैट में क्रेच खोला है अब मेरी मां अब मोहताज नहीं , आत्म निर्भर है।”
छवि की खुशी आसमान पर थी। वो कपिल को फोन करने लगी इतने में शंकुंतला जी बेटी के ससुराल आ गई।
छवि ने मां को सीने से लगा लिया और बहुत रोई।
” ये सब कैसे मां… तुम्हारे बेटे तो ऐसा सोचने से रहे तुम्हारे दिमाग में ये कैसे आया??”
“बिटिया , अपने पोते पोतियों का ध्यान तो मैं रखती ही थी तो सोसायटी में ही किसी ने सलाह दी माताजी बिल्डिंग के सभी लोग वर्किंग है आप क्यों नहीं क्रेच खोल लेती। आपके बच्चो के ध्यान के साथ दूसरे बच्चो का ध्यान भी रख लीजिएगा। खाने और बच्चो के पोटी सुसु के लिए एक एक मेड रख लीजिएगा।”
“वाह!! सलाह देने वाला साक्षात भगवान ही था।” छवि की आंखों में चमक आ गई।
“फिर तेरे पापा की बात ध्यान आ गई भाग्यवान जब तक शरीर चल रहा तब तक सब अपने है तो शरीर को चलता रखे ताकि चलते चलते ही दुनिया से विदा हो जाए।” शकुंतला जी आंखे नम हो गई।
“मां …फ्लैट लेना,मेड अप्वाइंट करना उनकी सैलरी, इन्विटेशन कार्ड, इतना कुछ तुमने अकेले…”
छबि हैरानी से प्रश्न करती जा रही थी क्योंकि वो जानती थी उसकी मां बहुत सीधी है इतनी प्लानिंग उनके बस की नहीं..
“ये सब दामाद जी और समधन जी का किया धरा है। नही तो मैं बाहरवी पास कहां इतना दिमाग लगा पाती । ये सब इन्हीं का एहसान है”
“मां पहले ही आपने हमारे यहां के लिए ना कह कर जता दिया था कि आपके दो बेटे है मैं कुछ नहीं… अब जो कुछ कर पाया हूं उसे भी एहसान बता रहे हो। मैंने तो जो किया अपनी पत्नी के लिए किया।अब ये सुकून से सो पाएगी।”कपिल पत्नी को छेड़ते हुए
“बिटिया अब तू मेरी चिंता छोड़, तेरे पिता के जाने के बाद मैं खुद को असुरक्षित महसूस करने लगी थी। बच्चों का साथ मेरे लिए मायने रखता था। लेकिन तूने मुझे एहसास करवाया कि जैसे मुझे उनकी जरूरत है वैसे ही उन लोगो को मेरी जरूरत है। बच्चों से उपर अब मेरा आत्म सम्मान है। अब तेरी मां किसी को अपना इस्तेमाल नहीं करने देगी।”
शकुंतला जी की बातों में आत्म विश्वास था।
छबि आत्म विभोर हो गई आंखो में खुशी के आसूं थे। अपनी मां की बदली सोच और अपने पति, सास पर उसे बहुत गर्व हो रहा था।
धन्यवाद दोस्तो
आपकी दोस्त
आरती खुराना (आसवानी)