सुनते हैं जी ….रात के 9:00 बज गए हैं अभी तक पूर्वांश लौटा नहीं है…. मुझे बहुत चिंता हो रही है ….कांता ने पति मनोहर से कहा …….आ जाएगा …मार्च का महीना है काम ज्यादा होगा….. मनोहर ने भी कारण बताकर कांता को आश्वस्त करना चाहा…।
ये गतिविधि लगभग रोज का ही हो गया था…. कभी-कभी पूर्वांश जल्दी आ जाता तो कांता की सारी चिंताएं दूर हो जाती थी …..पूर्वांश भी माँ की कलम भावनाओं का कद्र करता था …ऑफिस में देर होने की स्थिति में फोन या मैसेज करके माँ को अवगत जरूर करा देता था….।
कांता बहुत खुश रहती थी ….बेटे का माता-पिता के साथ रहकर नौकरी करने का निर्णय… उसे गर्व महसूस कराते थे ….कांता भी बेटे के खाना-पीना , नाश्ता हर चीज का ध्यान बड़ी खुशी से रखती थी ….ऑफिस जाते वक्त छोड़ने जाना व लौटते वक्त दरवाजे पर इंतजार करना …..ये उसके दिनचर्या का हिस्सा बन गया था…. ।
मनोहर के समझाने के बाद भी कांता कहां धैर्य रखने वाली थी ….हर 10 मिनट बाद उसकी नजर घड़ी की ओर जाती …..फिर बाहर गेट के पास दूर से आते हर बाइक को ऐसे निहारती जैसे उसमें पूर्वांश ही हो….. गाड़ी दरवाजे को पार करती आगे निकल जाती….. फिर कांता की नजरें सूनी सड़कों पर अगली गाड़ी के इंतजार में लगी रहतीं…..
इसी कशमकश के मध्य यदि पूर्वांश आ जाता तो… कांता की आंखों में गजब की चमक आ जाती थी… लंबी सांस लेकर मुस्कुराती हुई भगवान को धन्यवाद देती.. आखिर बेटा दफ्तर से काम करके जो लौटा है ….।
इसी बीच पूर्वांश की शादी हो गई ….संयोगिता ( बहू ) के आने के बाद भी कांता ने रसोई पहले जैसे ही संभाली थी …..कांता सोचती जब तक मैं काम करने में समर्थ हूं… तब तक बहू को थोड़ा आराम मिल जाए या बहु बेटे के साथ थोड़ा ज्यादा समय बिता सकें …तो इसमें हर्ज ही क्या है …….दरअसल संयोगिता भी नौकरी पेशा वाली थी और उसकी पोस्टिंग दूसरे शहर में थी तो कुछ दिनों के लिए ही ससुराल आ पाती थी…. इसीलिए कांता चाहती थी संयोगिता ज्यादा से ज्यादा समय पूर्वांश के साथ ही बिताए ….।
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यद्यपि संयोगिता रसोई में आकर पूछती थी… मम्मी जी क्या कर रही हैं…..?? क्या बनेगा सब्जी …? काट दूं ….? लहसुन छील दूं ….? ऐसे कई काम करने को उत्सुक रहती थी संयोगिता…..! कांता खाना बनाती और ऊपरी सहायता संयोगिता से ले लेती थी….।
कांता ने स्वयं कभी भी संयोगिता से ये नहीं कहा कि बहू आज से तुम खाना बनाओ ….मैं तुम्हारी सहायता कर दिया करूंगी ……और ना ही संयोगिता ने कभी ये कहा कि मम्मी जी आप छोड़िए खाना मैं बना लेती हूं…..।
बहरहाल सब कुछ सामान्य चलता रहा… हालांकि कांता कभी-कभी काम की अधिकता की वजह से थक भी जाती थी …..वैसे तो बहू द्वारा थोड़ी सी भी सहायता से बहुत राहत महसूस करती थी….।
संयोगिता की छुट्टी खत्म …. उसे अपनी नौकरी की निरंतरता को बनाए रखने के लिए ससुराल से जाना पड़ा….।
हर रोज की तरह उस दिन भी इंतजार करते-करते 9:00 बज गए …..पूर्वांश के आने में जैसे-जैसे देर हो रही थी ….कांता की बेचैनी बढ़ती जा रही थी …..दरवाजा खुलने की आवाज के साथ ही कांता बाहर निकली …पूर्वांश को देखते ही बोली…. बहुत देर हो गया बेटा ……आज तू कॉल या मैसेज भी नहीं किया…. कम से कम एक मैसेज ही कर दिया होता….. मुझे बहुत चिंता होती है…. अपने मन की व्यथा को कांता ने बेटे से बताना चाहा….।
अरे मम्मी संयोगिता को बताया तो था… वो तुझे नहीं बताई क्या….? क्या है ना मम्मी …..हर किसी को अलग अलग फोन थोड़ी ना करते रहूंगा ….खीझते हुए पूर्वांश ने कहा… ।
पूर्वांश और संयोगिता की थोड़ी थोड़ी देर में फोन पर बात होती रहती थी ….शायद पूर्वांश ने संयोगिता को देर से आने वाली बात …मम्मी को बताने के लिए बोली थी …..और संयोगिता भूल गई थी….।
अब कांता पूर्वांश को कैसे बताती कि संयोगिता का भूलना उसके लिए वो 3 घंटे कितने परेशान करने वाले थे….. !
मम्मी अब आप बूढ़ी हो गई हैं…… इतना टेंशन लेने की जरूरत नहीं है ……. संयोगिता के भूलने की बातों में मरहम लगाते हुए पूर्वांश ने कहा…..
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……..” अब तुझे कैसे बताऊं बेटा …माँ बूढ़ी हो सकती है पर प्यार परवाह कभी बुढ़ा नहीं होता “……
इस धोखे में मत रहना बेटा ….कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ बच्चों के लिए प्यार या चिंता कम हो जाती है….हाँ कभी-कभी परिस्थितियां ऐसी रहती है …शायद चाह कर भी माँ दर्शा नहीं पाती….।
पूरी बात जानने के बाद संयोगिता को भी अपने भूल का एहसास हो रहा था ….उस दिन पूर्वांश और संयोगिता ने एक फैसला किया…. जब भी कहीं से आने में किसी को भी देर होगी ….माँ के मोबाइल पर एक मैसेज या फोन जरूर करना होगा….।
पूरी शिद्दत से ये फैसला अभी तक निभाया जा रहा है यदि पुर्वांश कभी मैसेज या फ़ोन नहीं कर पाता तो संयोगिता मम्मी को मैसेज कर बता देती है…..।
एक दिन शाम को संयोगिता का फोन आया ….मम्मी पूर्वांश आ गए क्या ऑफिस से …..? नहीं बेटा अभी नहीं पहुंचा है… रास्ते में है…. बस पहुंचने वाला है …कांता ने बताया ……।
आपने फोन किया था ना मम्मी पूर्वांश को…? नहीं बेटा …आज पूर्वांश ने स्वयं फोन करके मुझे बताया था….।
क्या बात है संयोगिता …? तुम्हारी बात पूर्वांश से नहीं हुई क्या….? कांता को समझते देर न लगी कि…. लगता है आज दोनों पति पत्नी में कुछ अनबन हुई है …तभी तो संयोगिता को पता नहीं है कि पूर्वांश ऑफिस से निकले हैं या नहीं…. एक दूसरे को…. एक दूसरे की खबर नहीं है…।
नहीं मम्मी…. वो मैं ऑफिस में थोड़ा व्यस्त थी… हां बेटा …ठीक है… कांता ने भी मुस्कुरा कर बात टाल दी….
कांता को इस बात से खुशी थी कि….. कहीं ना कहीं पूर्वांश और संयोगिता को एक दूसरे की परवाह और चिंता तो है ही…… माँ भी उन दोनों के मध्य सेतु का काम कर रही है….। माँ का प्यार परवाह चिंता ने बहु बेटे दोनों की सारी चिंताए और मनमुटाव दूर कर दीं….।
(स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित रचना)
संध्या त्रिपाठी
VM