माँ भी तो सास है – विभा गुप्ता   : Moral Stories in Hindi

   ” अरे यार…आज तो मैं मुक्त हो गई…सास नाम की घंटी से अभी ही पीछा छुड़ाकर आई हूँ।चल..’ओरियेंट माॅल ‘ में चलकर पार्टी करते हैं…।” रीमा अपनी सहेलियों से सोफ़े पर बैठकर फ़ोन पर बातें करती जा रही थी।पास बैठा राहुल लैपटाॅप पर अपना काम कर रहा था लेकिन उसका ध्यान रीमा की बातों पर था।तो आज वो माँ को ‘ओल्ड एज होम ‘ छोड़ ही आई और वो कुछ न कर सका।

     अपने माता-पिता की सहमति से राहुल और रीमा ने प्रेम विवाह किया था।विवाह से पहले राहुल ने रीमा से कहा था कि तुम तो बड़े बिजनेसमैन की बेटी हो…मेरे परिवार में कैसे…।तब रीमा उसके मुँह पर अपना हाथ रखते हुए बोली थी,” जब तुम्हें पसंद किया है तो तुम्हारा परिवार तुमसे अलग थोड़े ही है।” सुनकर राहुल ने भावावेश में उसके मस्तक पर अपना चुंबन अंकित कर दिया था।

      विवाह के बाद जब भी समय मिलता राहुल रीमा के साथ अपने माता-पिता से मिलने चला जाता था।वो भी बेटे-बहू से मिलने चले आते थे।राहुल की दोनों बड़ी बहनों के साथ भी रीमा अच्छे-से घुल-मिल गई थी।

         कुछ महीनों बाद राहुल के पिता रिटायर हो गये।अब वो पत्नी संग आराम का जीवन व्यतीत करना चाहते थें लेकिन तभी उन पर अस्थमा का अटैक हुआ।साथ ही कुछ अन्य बीमारियों ने भी उनके शरीर में अपना बसेरा बना लिया।राहुल ने उनके इलाज़ में कोई कसर नहीं छोड़ी थी लेकिन ईश्वर की मर्ज़ी के आगे तो किसी का वश चलता नहीं।

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     पिता के देहांत के बाद राहुल माँ को अपने साथ ले आया।रीमा अपनी सास का पूरा ख्याल रखती थी।वह पूरी कोशिश करती थी कि उनको किसी प्रकार की तकलीफ़ न हो।

        एक दिन रीमा के घर पर किटी पार्टी चल रही थी।सहेलियों के संग वो हाउजी खेलने में मगन थी कि तभी उसकी सास को ज़ोर-से खाँसी उठी।उनकी खाँसने की आवाज़ ड्राइंग रूम में आने लगी तब उसकी सहेली दीपिका बोली,” यार रीमा..तू कब तक सास नाम की इस घंटी को अपने गले में बाँधे रहोगी।मैंने तो महीने भर बाद ही आउट….।”कहकर वह हँसने लगी।फिर तो नैना, श्वेता और मिसेज़ धारीवाल ने भी दीपिका की बात का समर्थन किया।

     उस रात रीमा करवटें ही बदलती रही।रह-रहकर उसके कानों में दीपिका की बात सुनाई दे रही थी।इंसान का स्वभाव होता है कि गलत बात की तरफ़ वह ज़ल्दी खिंचा जाता है।रीमा के साथ भी यही हुआ।उस दिन के बाद से उसे सास एक काँटा नज़र आने लगी।वह न तो उनसे बात करती और न ही उनके पास बैठती।

उसकी सास ने बहू के बदले स्वभाव को नोटिस किया और राहुल ने भी।राहुल ने जब रीमा को समझाना चाहा तो वह उस पर ही बिफ़र पड़ी थी।रक्षाबंधन पर आई दोनों ननदों के साथ भी उसने अच्छा व्यवहार नहीं किया था।

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      एक दिन रीमा ने राहुल से माँ को ओल्ड एज होम भेजने की बात कही।सुनकर वह भड़क उठा था।तब वह चुप रही लेकिन वह सास को परेशान करने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी। शांत स्वभाव का होने का कारण राहुल में बहुत धैर्य था।वह यही सोचता था कि कुछ दिनों में रीमा को रिश्तों का महत्व समझ में आने लगेगा परन्तु ऐसा नहीं हुआ। आज तो वह माँ को ओल्ड एज छोड़ ही आई।

       अपनी कायरता पर राहुल को बहुत गुस्सा आ रहा था।माँ के बिना उसे घर सूना-सा लगने लगा था।वह माँ से मिलने जाता तो उनकी गोद में अपना सिर रखकर बहुत रोता था।

        इसी बीच रीमा के पिता का देहांत हो गया।उसे माँ की फिक्र होने लगी तब भाभी ने उसे आश्वासन दिया कि मैं हूँ ना।महीने भर बाद ही उसे महसूस होने लगा कि भाभी पहले जैसी नहीं रही।माँ के साथ उनका व्यवहार अच्छा नहीं है तब उसने अपनी भाभी को टोका तो वो तपाक-से बोली,” अपनी सास को घर से बेदखल करके मुझे ज्ञान तो मत ही दो।” वह अपना-सा मुँह लेकर लौट आई थी।

      फिर एक दिन रीमा के पास फ़ोन आया कि आपकी माताजी ओल्ड एज होम में हैं और बीमार हैं।सुनकर वह चकित रह गई।दो दिन पहले ही तो माँ से मिल कर आई थी और अब ये सब…।वह तुरंत वहाँ पहुँची तो वहाँ का दृश्य देखकर स्तब्ध रह गई।हाॅल के कोने वाले बेड पर उसकी माँ निश्चेष्ट अवस्था में पड़ी हुईं थीं

और सिरहाने बैठी उसकी सास हौले-हौले अपनी समधन का माथा सहला रहीं थीं।एक स्टाफ़ ने उसे बताया कि कल शाम को ही इसी अवस्था में आपकी माताजी को एक महिला छोड़ गईं थीं और तब से सिरहाने बैठी माताजी उनके साथ हैं।

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        रीमा की रुलाई फूट पड़ी।वह अपनी सास से आँखें नहीं मिला पा रही थी।सास ने बहू की मनोदशा को पढ़ लिया था।मुस्कराते हुए बोली,” रीमा…आओ बेटी..अपनी माताजी के पास बैठो…।” सास के मुख से मधुर वचन सुनकर बहू आँखों में आँसू भर अपनी सास के पाँव पर झुक गई और अपने आँसुओं से उनके चरण धोती हुई बोली,

” मुझे माफ़ कर दीजिये माँजी…मैंने आपके साथ इतना बुरा बर्ताव किया..फिर भी आपने मेरी माँ…।मैं यह कैसे भूल गई कि मेरी माँ भी तो किसी की सास है…।” सास बहू को अपने हृदय से लगाते हुए बोली,” बहू…बुराई को अच्छाई से ही दूर किया जा सकता है…और मैंने तो सिर्फ़ अपना फ़र्ज़ निभाया है।” 

        अगले दिन ओल्ड एज होम के उस कमरे का दृश्य बदल चुका था।रीमा अपनी सास को ले जाने के लिये उनका सामान पैक रही थी और दूसरे बेड पर रीमा की भाभी अश्रुपूरित आँखों से अपनी सास के पाँव पर झुक कर कह रही थी,” मम्मी जी, मुझे माफ़ कर दीजिये…अपने घर चलिये।” राहुल और रीमा का भाई वहाँ की औपचारिकताएँ पूरी करने लगे।

        सास-बहू के मिलन को देखकर वहाँ उपस्थित सभी की आँखें खुशी-से भर आईं थीं।दूर खड़ी संचालिका जी का मन भी भावुक हो उठा था।उन्होंने एक नज़र वहाँ की वृद्धाओं पर डाली,” ईश्वर करे…इनकी जिंदगी में भी ये सुअवसर आये..इनके अपने आकर इन्हें घर ले जायें।”

                               विभा गुप्ता

                          स्वरचित, बैंगलुरु 

# बहू आँखों में आँसू भर अपनी सास के पाँव पर झुक गई

1 thought on “माँ भी तो सास है – विभा गुप्ता   : Moral Stories in Hindi”

  1. राधे राधे जी राधे राधे बहुत ही अच्छी पोस्ट के लिए सादर धन्यवाद जय हिंद जय श्रीराम

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