ले लाडो ..
ले आया तेरे लिए साइकिल …
इतने दिनों से तू साइकिल की जिद कर रही थी…
तो इस महीने की तनख्वाह से तेरी साइकिल ही ले आया..
लाल रंग की चमकती हुई साइकिल को देखकर 14 साल की लाडो की आंखों में चमक आ गई…
ए बापू..
तुम तो बड़े प्यारे हो …
तुम मेरे लिए साइकिल ले आए …
अब तो मैं कल ही साइकिल से जाऊंगी स्कूल…
चलानी तो मुझे पहले से ही आती है …
वह बिट्टू की साइकिल से मैंने सीख ली थी…
हां हां बिटिया…
कल से ही ले जाना…
लाडो की मां बोली…
हां हां री …
तेरे लिए ही तो आई है…
ले जाना कल से…
बापू बोला…
आज तो पूरी रात लाडो को नींद नहीं आ रही थी …
उसे अगले दिन साइकिल जो स्कूल लेकर जानी थी…
सुबह जल्दी ही उठकर उसने अपनी साइकिल पर कपड़ा मारा …
और मां पिता का आशीर्वाद लेकर वह स्कूल की ओर चल दी…
रास्ते में जितनी भी उसकी सहेलियां मिल रही थी…
सभी उसकी तरफ देखती…
और बोलती..
ओ लाडो…
तेरी नई साइकिल…
हां हां…
मेरे बापू लेकर आए हैं ..
लाडो इतराती हुई चली जा रही थी …
स्कूल आ गया था….
आज उसका स्कूल में भी पढ़ने में मन नहीं लग रहा था…
उसका साइकिल की ओर ध्यान ज्यादा था..
कि स्कूल के बच्चों को भी अपनी साइकिल लंच में दिखाऊंगी…
सभी को साइकिल दिखाई उसने ..
जब छुट्टी का समय हुआ तो वापस लौट रही थी …
कि तभी सहेलियां कहने लगी …
चल कंपट खरीदते हैं चाचा की दुकान से …
लाडो ने साइकिल लगा दी वहीं स्टैंड पर …
और वह सब कंपट और बाकी चीज खाने में व्यस्त हो गए …
जैसे ही पलट कर लाडो ने देखा…
उसकी साइकिल वहां नहीं थी …
उसकी सारी खुशी एक पल में गम में बदल गई…
अरे मेरी साइकिल…
सायकिल कहां गई…
वह जोर-जोर से रोने लगी….
उसकी सहेली कविता बोली..
लगता है लाडो..
तेरी साइकिल कोई चुरा ले गया …
तेरी साइकिल को नजर लग गई …
सभी सहेलियों उसे हिम्मत बंधा रही थी…
लेकिन लाडो रोई जा रही थी…
लाडो कल ही तो तेरे बापू अपनी तनख्वाह से लेकर के आए थे….
तुझे बहुत मारेंगे वो…
अब तू क्या करेगी…
लाडो बहुत डर रही थी…
क्या करूं मैं …
तभी उसकी सहेली मीना बोली…
ऐसा कर लाडो …
तू ना मर जा …
जो नहर है ना…
उसमें जाकर कूद जा…
यह क्या बोल रही है तू …
हां ..
सही कह रही हूं…
तुझे आज बहुत मार पड़ेगी घर पर …
तुझे तो ऐसे ही तेरे बापू मार देंगे…
इससे अच्छा तो खुद मर जा ,तो ज्यादा सही है…
तूने देखा नहीं था वह जो गांव का राकेश था,,वह भी तो मर गया था…
जब उसने गलती की थी….
लाडो के मन में तरह-तरह के सवाल आ रहे थे…
कि कह तो सही रही है मीना …कि पापा तो सच में मुझे मार डालेंगे …
छोटी सी उम्र की लाडो अपने पिता के बारे में जानती ही क्या थी…
तो क्या सोचा तूने लाडो…
कुछ नहीं …
अभी मैं चलती हूं….
बिना कुछ बोले वहां से लाडो चल दी….
लाडो धीरे-धीरे कदम बढ़ा रही थी…
रास्ते में नहर पड़ी…
उसका मन तो हुआ कि वह नहर में कूद जाए …
उसने देखा भी कि कितनी गहरी है …
लेकिन पता नहीं उसकी हिम्मत नहीं हुई…
धीरे-धीरे कदमों से आगे की ओर बढ़ रही थी ….
फिर दूसरी नहर पड़ी…
अब की बार लाडो की हिम्मत बढ़ रही थी…
वह नहर की ओर बढ़ रही थी…
कि तभी उसे अपने बापू की आवाज सुनाई दी …
लाडो कहां जा रही है तू ..??
बापू तुम ..??
हां तेरी मैया ने कहा…
कि अभी तक आई नहीं है लाडो….
देखकर तो आओ…
चल घर…
तेरी साइकिल कहां गई लाडो …??
बापू बोला …
साइकिल का नाम सुनकर तो लाडो का डर और ज्यादा बढ़ गया…
वो बापू …
हां बता…
क्या हुआ..??
साइकिल स्कूल में ही छोड़ आई क्या …??
भूल गयी..??
नहीं नहीं बापू…
वो मेरी साइकिल चोरी हो गई…
हम सब सहेलियां कंपट खाने लगे थे …
तभी पता नहीं कौन उठा ले गया …
लाडो ने अपनी आंखें बंद कर ली…
अब तो पक्का मार पड़ेगी…
और पता नहीं कितना मारेंगे ….
क्या हो गया ..
साइकिल चोरी हो गई…
कोई बात ना लाडो …
चल घर…
क्या बापू…??
तुम मुझे मारोगे नहीं…??
मैंने नयी साइकिल खो दी …
मारूंगा क्यों…??
तूने कोई जानबूझकर तो नहीं खोयी ..
कोई बात नहीं बेटा…
जो कुछ होता है ऊपर वाले की मर्जी से होता है ….
चल तू …
मुझे पता है तू कितनी दुखी होगी…
इसलिए लगता है…
तू समय से घर नहीं आई…
मन ही मन लाडो सोची…
आज अगर मैं खुद की जान दे देती …
तो मां-बापू पर क्या गुजरती …
तू बस खुश रह…
और हमेशा आगे बढ़ती रहे ..
मन लगाकर पढ़ाई कर…
इससे बड़ी धन दौलत मेरे लिए कुछ भी नहीं है…
फिर धीरे-धीरे पैसा जोड़कर तेरे लिए साइकिल ले आऊंगा….
बापू का यह आशीर्वाद लाडो के लिए अमृत समान साबित हुआ….
बड़ी होकर लाडो एक बड़ी अधिकारी बन गई थी …
जो खुद स्कूल की बच्चियों को उनकी तरक्की पर साइकिल इनाम में देती थी…
सच कहा गया है …
मां-बाप की दुआएं भगवान के आशीर्वाद से भी बड़ी होती हैं….
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा