लोग भूल रहे हैं सिंदूर का महत्व – सीमा प्रियदर्शिनी सहाय  : Moral Stories in Hindi

सामने तलाक के पन्ने फड़फड़ा रहे थे। ऊपर सिर पर चलता हुआ पंखा अपनी तीव्र गति से चल रहा था।

पन्ने तो पन्ने ही थे, हवाओं संग झूमने वाले लेकिन उन पन्नों पर जो लिखा था उससे सुधा की पूरी जिंदगी में भूचाल सा आ गया था।

उसके दामाद शरद ने तलाक का कागज भिजवाया था और शुभ्रा से कहा था कि उसपर हस्ताक्षर कर दे। वह अब कोई समझौता नहीं करना चाहता है।

तलाक के बदले में जितनी भी एलेमनी चाहिए वह देने को तैयार था बस उसे शुभ्रा के साथ नहीं रहना था।

मुश्किल से ढाई साल हुए थे शुभ्रा और शरद  की शादी के।

मेडिकल कॉलेज में ही उसने अपने लिए एक लड़का पसंद कर लिया था। 

सुधा और उसके पति अविनाश शुभ्रा को समझाते रहे इस समय उसे प्रेम नहीं, अपने करियर पर ध्यान देना चाहिए।

इतनी मेहनत से उसने मेडिकल की पढ़ाई की है लेकिन शुभ्रा के ऊपर प्रेम का भूत चढ़ा हुआ था।

वह जिद पकड़ ली थी, अपने सहपाठी शरद के साथ शादी करने के लिए।

कुछ दिनों तक अविनाश और सुधा उसे समझाते रहे।

“हर किसी का बैकग्राउंड एक नहीं होता, लाइफ स्टाइल एक नहीं होता बेटा, तुम जिस तरह से रही हो जरूरी नहीं कि शरद भी वैसा ही हो।

घर बार और हैसियत देख सुनकर ही शादी करनी चाहिए।”

“पापा मैंने तय कर लिया है कि मैं शरद से ही शादी करुंगी। मैं शरद  से प्यार करती हूं तो शादी करने में क्या दिक्कत है?”

उसके बचपने भरी हुई बातें सुनकर अविनाश जी बोले 

“शुभ्रा प्यार और शादी में बहुत अंतर है बेटा! शादी को निभाना पड़ता है।”

अविनाश अपने अनुभवी आंखों से भविष्य पढ़ लिया था।

शुभ्रा यह जानती थी कि अविनाश जी को शरद पसंद नहीं है फिर भी वह समझने को ही तैयार नहीं थी। 

नहीं चाहते हुए अविनाश को हां करना पड़ा। 

शुभ्रा और शरद की शादी हो गई।

अविनाश जी एक बहुत ही ऊंचे ओहदे पर थे।

उनकी एक अपनी सोसाइटी थी। वह नहीं चाहते थे कि उनकी बदनामी हो।

शादी के बाद उन्होंने शुभ्रा से कहा” बिटिया अब तुम्हारी शादी हो गई है।अपनी शादी, सिंदूर और पति तीनों की जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है।

मेरे और अपने दोनों के रिश्तों का सम्मान करना।”

शादी के बाद शुभ्रा को खुश देखकर  सुधा और अविनाश जी दोनाें खुश थे लेकिन शुभ्रा की यह खुशी ज्यादा दिन तक नहीं चली।

साल पूरते हुए चंद दिन भी नहीं बीते थे कि दोनों के बीच लड़ाई झगड़े शुरू हो गए।

कई बार सुधा उन दोनों की सुलह करवाती थीं कभी शरद के परिवार वाले।

शुभ्रा अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। 

अविनाश जी शहर की एक जाने-माने  बिजनेसमैन थे। 

पैसे की कोई कमी नहीं थी। जिसके कारण शुभ्रा को आरामतलबी की आदत थी। अपने पिता के पैसों के दम पर ही उसने मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पा लिया था। कहने को तो समय के साथ वह डॉक्टर बन गई थी लेकिन उसके पास गंभिरता की कमी थी।

इसके विपरीत शरद के परिवार वाले एक सामान्य स्तर के थे।शरद पढ़ने में तेज था। उसने बहुत ही अच्छे पोजीशन में नीट क्लियर किया था, जिसके कारण उसका नामांकन इस कॉलेज में हो गया था।

वह यथार्थवादी इंसान था और शुभ्रा के सपने आसमान में रहते थे।

वह चाहता था कि शुभ्रा उसकी कमाई में खुश रहे।

लेकिन शुभ्रा आएदिन अपने पिता से नए-नए सामानों की डिमांड करती रहती थी। दबे हुए स्वर में शरद उससे कई बार मना करता लेकिन शुभ्रा सुनने का नाम नहीं लेती थी ।

शरद पढ़ने में तेज था जिसके कारण उसके डायग्नोसिस बहुत ही अच्छे होते थे। जिसके कारण उसे बहुत ही जल्दी अस्पताल में  प्रमोशन मिल गया था। 

प्रमोशन के बाद वह भी पहले की तरह नहीं रहा था। अब  दोनों के बीच आए दिन तकरार होते रहते थे। 

कई बार वह अपने पति से लड़कर मायके पहुंच जाती थी।

लेकिन इस बार न जाने ऐसा क्या हुआ कि बात तलाक तक पहुंच गई।

शरद से झगड़ा कर शुभ्रा उनकी दहलीज पर आकर खड़ी हो गई तो सुधा को कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि जिस नाज नवौल से उसकी बेटी पली थी उसने कभी एडजस्ट करना सीखा ही नहीं था।

शुभ्रा का मूड बहुत ही ज्यादा ऑफ था इसलिए सुधा और अविनाश जी ने सोचा कि एक-दो दिन के बाद ही वह शरद से बातें करेंगे और दोनों को बैठ कर समझाएंगे।

यह तलाक क्या मजाक हो गया है? आजकल के बच्चों को कोई समझा ही नहीं सकता!

पैसों की गर्मी इन्हीं जमीन पर रहने नहीं देती किसी चीज का कोई वैल्यू नहीं! सिंदूर भी मजाक बन गया है!

बेटी का कन्यादान करना कितना मुश्किल होता है यह मां-बाप ही समझ सकते हैं। 

समाज में उनकी कितनी बदनामी होगी। 

यह सोचकर सुधा जी बहुत परेशान थीं।

वह अपने ख्यालों में गुम थीं तभी 

उनके मोबाइल की घंटी बजी तो वह होश में आईं 

अविनाश जी का फोन था। वह घर आ रहे थे।

उन्होंने कहा था शुभ्रा को शांति से ड्राइंग रूम में बैठा कर रखना।

“वह ड्राइंग रूम में ही है!” सुधा जी ने कहा।

शुभ्रा के चेहरे पर ना कोई तनाव था, ना कोई परेशानी ।

वह मस्ती में अपने फोन पर व्यस्त थी। 

थोड़ी देर में अविनाश जी घर आए।

हाथ मुंह धोकर वह आकर ड्राइंग रूम में बैठे।

सुधा जी भी उनके साथ बैठ गई।

“ शुभ्रा बेटा,अविनाश जी ने बात शुरू की आखिर तुम दोनों में ऐसा क्या हो गया की बात तलाक तक पहुंच गई?”

“पापा, मुझे उसके साथ नहीं रहना बस !”शुभ्रा मोबाइल को देखते हुए गुस्से में  बोली।

“ क्यों नहीं रहना है ?”

“बस मैं उसके साथ नहीं रह सकती! अब मैं उसे अलग होना चाहती हूं।”

“ फिर शादी क्यों की थी? मैंने तो तुमसे कहा था कि वह तुम्हारे लायक नहीं है फिर तुम्हारी ज़िद थी ना कि तुम उससे ही शादी करोगी?

अब ऐसा क्या हो गया?”

“ पापा वह मुझसे कहता है तुम चाय बनाओ, घर देखो, घर में जो गेस्ट और उसके फैमिली के लोग आ जा रहे हैं उसे देखो,, मैं यही करूंगी!!”

“ तो और क्या करोगी?तुम्हारी मां क्या कर रही है! मेरे पास कितने रुपए हैं !कितने नौकर चाकर है फिर भी तुम्हारी मां घर बाहर सारी जिम्मेदारी देख रही है ना! क्यों देख रही है क्योंकि वह मेरी पत्नी है। उसने मेरे लगाए हुए सिंदूर का सम्मान किया। इस रिश्ते का सम्मान किया ।

तुम्हारे विदाई से पहले ही मैं तुमसे कहा था अपने सिंदूर का,अपने रिश्ते का और मेरे रिश्ते का सम्मान करोगी ।

तुम्हारी जिद पर मैंने तुम्हारी शादी करवा दिया।

समाज में मेरी इज्जत का ठेका बज गया अब तुम वापस आ गई हो,अगर यह तलाक हो गया तो बाकी इज्जत भी मिट्टी में मिल जाएगी!

अगर कोई और बात है तो मुझसे कहो?”

“ नहीं पापा और तो कोई बात नहीं!”

 शुभ्रा के पैरों तले जमीन खिसक गई।

अविनाश जी ने शरद को फोन किया और घर बुलाया।

शरद उस समय अस्पताल में था। उसने कहा “मैं रात को ही आ सकता हूं ।”

रात में खाने के टेबल पर बैठकर अविनाश जी ने शरद को भी समझाया “बेटा तुम दोनों आधुनिक जमाने के हो। आज के जमाने में मोरैलिटी तो बिल्कुल ही खत्म हो गया है। तुम लोगों को समझ में नहीं आता कि पति पत्नी का रिश्ता क्या होता है?

एक दूसरे को सम्मान देना, इज्जत देना, स्पेस देना बहुत जरूरी होता है।

सिंदूर एक विवाहित स्त्री का सौंदर्य होता है उसकी मर्यादा का मान रखना बहुत जरूरी है। 

अगर इसका सम्मान करोगे तो समाज में तुम्हारी इज्जत बनेगी और इसकी उपेक्षा करोगे तो संस्कार और परंपरा नष्ट हो जाएंगे।

तुम दोनों खुद ही सोचो अगर तुम दोनों ने दूसरे को छोड़ दिया, किसी से तो शादी करोगे !

अपने आने वाले बच्चों से क्या कहोगे कि तुम दोनों ने अपने घमंड में एक दूसरे को गंवा दिया!

मैं यह बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करूंगा कि तुम दोनों तलाक लो।

तुम दोनों ने अपनी मर्जी से शादी की है तो शादी को निभाना तुम दोनों का कर्तव्य है।”

शुभ्रा को अपनी गलती का एहसास हो रहा था।

उसे अभी लग रहा था कि अब उसके पिता का दरवाजा पहले की तरह नहीं खुलने वाला।

उसके माता-पिता उसके इस कदम से पहले से ही नाराज थे, इस घर में उसे शरण नहीं मिलने वाली,!

वह बेबसी में रो पड़ी।शरद उठकर उसके बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया और फिर अपने हाथों से उसके आंसू पोंछे और कहा “शुभ्रा,गलती मेरी है। 

मुझे तुम्हारी सारी कमजोरियों के बारे में पता था पर फिर भी मैं तुमपर नाराज हुआ।

अब मैं अपनी गलती मानता हूं और उसे दूर करना चाहता हूं।तुम्हारा घर तुम्हारा इंतजार कर रहा है!”

“नहीं शरद गलती मेरी है। मैंने तुमसे प्यार किया था तो इस प्यार को निभाना मेरा कर्तव्य था ।मैं तुम्हारे साथ चलना चाहती हूं।” 

शरद ने अपने दोनों बाहें फैला दिया। 

शुभ्रा उन बाहों में सिमट गई ।

तभी अविनाश जी और सुधा जी जोर-जोर से खंखारने लगे।

शुभ्रा और शरद दोनों में शर्मा कर अलग हो गए ।

माहौल फिर से सुखमय हो गया था। अविनाश जी और सुधा जी की बुद्धिमानी ने एक घर को टूटने से बचा लिया था। 

प्रेषिका -सीमा प्रियदर्शिनी सहाय 

नई दिल्ली 

#सिंदूर

पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित रचना बेटियां के साप्ताहिक विषय #सिंदूर के लिए।

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