सुमन जी और उनके पति शैलेंद्र जी अपनी नई बहू के साथ एक नये दौर की शुरुआत कर रहे थे। बहू के घर में कदम रखते ही एक अलग सी रौनक आ गई थी, एक नई उमंग, नई ऊर्जा। पहले दिन जब बहू ने पहली बार उनके लिए खाना बनाया, तो सुमन जी ने देखा कि रोटियाँ गोल नहीं थीं; टेढ़ी-मेढ़ी सी थीं। लेकिन उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा, बल्कि उन्होंने इसे अपने बेटे के साथ बड़े ही प्यार से खाया।
शाम के समय, जब सुमन जी और शैलेंद्र जी भोजन करने बैठे, तो शैलेंद्र जी की नजर रोटियों पर गई और वे मुस्कुराते हुए बोले, “अरे सुमन, यह तो टेढ़ी-मेढ़ी रोटियाँ हैं। देखो तो, बिल्कुल गोल भी नहीं बनीं। तुम्हें याद है, अम्मा जी की बातें? कैसे तुम्हें गोल रोटी ना बनने पर कितनी बातें सुनाया करती थीं?”
सुमन जी शैलेंद्र जी की इस बात को सुनकर मुस्कुराईं। एक पल के लिए उनकी आंखों में बीते दिनों की तस्वीरें घूमने लगीं, जब वे खुद इस घर में नई-नई बहू बनकर आई थीं। अम्मा जी उन्हें अक्सर गोल रोटी बनाने के लिए डांट दिया करती थीं। कई बार उन्होंने उन बातों को अनसुना करने की कोशिश की थी, लेकिन फिर भी अम्मा जी के कहने का असर उन पर पड़ा। एक नये घर में खुद को ढालना, सबके हिसाब से खाना बनाना, हर रोज़ घर के हर छोटे-बड़े काम में खुद को बेहतर साबित करना—ये सब उनके लिए आसान नहीं था। उन्होंने कभी-कभी खुद को कमजोर महसूस किया था, और अम्मा जी की एक भी फटकार उनके मन में गहरे तक उतर जाती थी।
सुमन जी शैलेंद्र से बोलीं, “हां, मुझे याद है कि अम्मा जी कैसे मुझे गोल रोटियां बनाने को लेकर बातें सुनाती थीं। पर शायद वह भी अपनी सास से ही यह सब सीखी थीं। उन्होंने भी वही देखा और वही अपनाया। शायद वो इस बात को अपनी जिम्मेदारी समझती थीं कि मुझे बेहतर बनाना है। पर उन बातों से मैं कितनी आहत होती थी, यह वो नहीं समझ पाती थीं।”
सुमन जी ने फिर मुस्कुराते हुए कहा, “लेकिन मैं अम्मा जी नहीं बनना चाहती। मुझे तो अपनी बहू की टेढ़ी-मेढ़ी रोटियाँ भी पसंद हैं। क्यों बच्ची का दिल दुखाना? नई-नई आई है, सब धीरे-धीरे सीख जाएगी। और वैसे भी, खाने का असली स्वाद उसकी मेहनत और प्यार में है, ना कि उसके आकार में।”
शैलेंद्र जी चुपचाप सुमन जी की बातों को सुनते रहे। उन्हें सुमन जी का यह बदलता हुआ रवैया अच्छा लगा। वे सुमन की इस सोच से प्रभावित हुए। जब भी वे घर में कोई नयी चीज लेकर आते थे, सुमन हमेशा सबका ध्यान रखतीं। उन्हें इस बात का गर्व महसूस होने लगा कि उनकी पत्नी कितनी समझदार और स्नेहमयी हैं।
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रसोई में खड़ी बहू ने सास-ससुर की बातें सुन ली थीं। उसकी आंखों में हल्की सी नमी आ गई थी, लेकिन होठों पर मुस्कान भी थी। पहली बार उसे महसूस हुआ कि यह घर उसका है। सास की ओर से किसी फटकार या टोकाटाकी की जगह उसे अपनापन और समझदारी मिली। उसे यह अहसास हुआ कि सासू मां ने उसकी छोटी-छोटी कमियों को न केवल सहन किया, बल्कि प्यार से उसे स्वीकार किया। उसे सास की बातों से बहुत प्रेरणा मिली।
बहू ने अपनी रोटियों में और भी प्यार मिला दिया। उसने सोचा कि अब वह दिन दूर नहीं जब उसकी रोटियाँ भी गोल बनेंगी, और वो सास-ससुर को और भी खुश कर सकेगी। उसे अब यह जिम्मेदारी महसूस होने लगी कि वो अपने इस नये घर को सच्चे दिल से अपनाए और यहां के हर काम को बड़े प्यार और सम्मान के साथ करे।
वक्त बीतता गया, और सुमन जी ने धीरे-धीरे बहू को किचन की छोटी-बड़ी बातों में मदद करनी शुरू की। वे उसे हर काम को करने का सही तरीका सिखातीं, लेकिन हर बार अपने शब्दों में नरमी रखतीं। वे समझती थीं कि नया माहौल और नए लोग किसी भी लड़की के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं, और इसलिए वे हर संभव कोशिश करतीं कि बहू को सहज महसूस हो।
अब बहू के मन में सासू माँ के प्रति आदर और बढ़ गया था। वो सोचने लगी कि कैसे सासू माँ अपने अनुभव और समझ से उसकी हर कमी को अपनाते हुए उसे धीरे-धीरे सीखने का मौका दे रही हैं। बहू के दिल में भी इस घर को अपना मानने की भावना बढ़ती गई। उसने धीरे-धीरे अपने सभी कर्तव्यों को समझकर निभाना शुरू किया। वह जानती थी कि सासू माँ के बिना इस नये माहौल में खुद को ढाल पाना मुश्किल होता।
एक दिन बहू ने खुद सासू माँ से आकर कहा, “माँ जी, मैं जानती हूँ कि मेरी रोटियाँ पहले ठीक से नहीं बनती थीं, और फिर भी आपने मुझे कभी डांटा नहीं, बल्कि हर बार प्यार से सिखाया। मैं वादा करती हूँ कि अब मैं हर काम को आपके जैसे ही प्यार और मेहनत से करने की कोशिश करूंगी।”
सुमन जी के चेहरे पर संतोष की एक मुस्कान खिल गई। उन्हें गर्व महसूस हुआ कि उनकी बहू ने उनके द्वारा दी गई शिक्षा को समझा। सुमन जी ने उसे गले लगाते हुए कहा, “बेटा, बस इसी तरह प्यार और समझदारी से काम करना। यह घर तुम्हारा है और तुम हमेशा इसका मान रखोगी।”
इस तरह एक सास और बहू के बीच एक अद्भुत और मजबूत रिश्ता बन गया। उन्होंने एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए एक ऐसा माहौल बनाया, जिसमें प्यार और समझ थी। अब बहू की रोटियाँ भी गोल बनने लगी थीं, लेकिन सुमन जी के लिए यह फर्क कभी मायने नहीं रखता था। उनके लिए असली मायने उस प्यार और अपनापन का था, जो उन्होंने अपने रिश्तों में पिरोया था।
इस कहानी में हमें यह सीखने को मिलता है कि रिश्ते छोटी-छोटी कमियों को नजरअंदाज कर प्यार और समझदारी से बनाए जा सकते हैं। सुमन जी ने जिस तरह से अपनी बहू को बिना किसी दबाव के, सिर्फ प्यार और समझ के माध्यम से समझाया, वह आज के समाज के लिए एक मिसाल है। रिश्तों को सुदृढ़ बनाने का यही तरीका है कि हम एक-दूसरे की भावनाओं को समझें और हर कमी को प्रेम से स्वीकारें।
मौलिक रचना
गीतु महाजन