*लौटता वजूद* – बालेश्वर गुप्ता  : Moral Stories in Hindi

  सच कहूं सुचि, मैं शादी करना ही नही चाहती।मेरे मन मे हमेशा एक डर सा बैठा रहता है, मैं भयभीत रहती हूं।

       शालू कैसी बहकी बहकी बाते कर रही हो।तुम्हे किस बात का डर?अरे शादी तो एक दिन सभी को करनी ही होती है।

       सुचि की बात सुनकर शालू चुप हो गयी।वो अपने मन की बात सुचि से भी शेयर नही कर सकती थी।उसने आज तक अपने  भय के विषय मे किसी से भी बात कभी की ही नही थी।कुछ देर बाद सुचि चली गयी।रह गयी अकेली शालू,अपनी यादों का घरौंदा संभाले।

       बचपन मे ही माँ-पिता को एक दुर्घटना में खो देने वाली शालू का पालन उसके चाचा भानु प्रताप और चाची अनुप्रिया ने ही किया।चाची अनुप्रिया का स्वभाव प्रारम्भ से ही कटु रहा।

बात बात में  शालू को डांटना, उस पर कभी ही ताना कस देना कि वह अपने माँ बाप को खा गयी।छोटी सी शालू अपने चाचा से पूछती चाचा एक बात तो बताओ क्या मैंने सचमुच अपने पापा और मम्मी को खा लिया है?क्या बच्चे ऐसा कर सकते हैं?ऐसे मासूम से सवाल सुन भानुप्रताप शालू को अपने सीने से लगा कर भींच लेते,

और भीगी आंखों से कहते अरे कौन ऐसा कहता है,वह झूठा है।अरे मेरी बच्ची वे तो भगवान के बुलावे पर गये हैं।असल मे चाची के कहर भरे वातावरण में कुछ प्यार और स्नेह की छाया चाचा से ही प्राप्त होती।

      धीरे धीरे समय बीतता जा रहा था।शालू को चाची के कटु वचन और घर के कामकाज की आदत बन गयी थी,चाचा के स्नेह से वह चाची के व्यवहार को भूल जाती,वैसे भी वह क्या करती,कहाँ जाती?शालू के मन मे एक अनजाना सा भय बैठ गया था,वह कोई काम ठीक नही कर सकती,वह मनहूस है,अपने माँ बाप को खा गयी,

ऐसा ही वह बचपन से ही चाची से सुनती आयी थी।बड़ी होने पर चाची के व्यंग्य बाणों के स्वरूप बदल गये थे,पर अंतर्मन को चीर देने वाली भाषा वही थी।अब चाची उसे महारानी कह संबोधित करने लगी थी।यदि उसे जरा भी किसी काम मे देरी हो जाती तो चाची मौका नही गवाती और बोल देती महारानी जी अब ऊपर से जेठानी जी तो आयेंगी नही काम करने।

      चाचा भी चाची को समझाते समझाते हार गये थे।उस दिन शालू ने अपने कानो से सुना चाचा  कह रहे थे अरे भागवान इस किस्मत की मारी पर कुछ तो रहम किया कर,घर का काम भी करती है,अपनी पढ़ाई भी करती है,क्यो हमेशा उसे जली कटी ही सुनाती रहती है।पर चाची माने तब ना,बोल दिया मेरी तो जुबान ही ऐसी है।क्या चाहते हो उसे सिर पर बैठा कर रखूं?

        इससे आगे शालू सुन न सकी,वहां से हट गयी।उसकी आंखें छलछला गयी।उसे लगा अब उसकी खैर नही।आज चाची उस पर पूरा कहर ढाएंगी।इसी प्रकार का डर शालू के मन मे बैठ गया था।चाचा भानुप्रताप ने शालू के लिये एक होनहार लड़का देखा और उससे शालू की शादी करने का निश्चय किया। रामगोपाल जी और देवकी का इकलौता बेटा था

देवांश।अपनी योग्यता से एक बड़ी कंपनी में मैनेजर पद पर था।लाखो रुपये का वेतन था,सबसे बड़ी बात थी उसका सौम्य व्यवहार,सरल स्वभाव,घमंड नाम मात्र को नही।एक ही क्षण में भानुप्रताप को लगा कि उनकी शालू के लिये देवांश बिल्कुल उपयुक्त है।देवांश के माता पिता भी सरल स्वभाव के थे।

       अपनी शादी की बात सुन शालू के हाथ पांव फूल गये।उसका भय उस पर सवार हो गया था।उसे लग रहा था कि नये घर मे  वह कैसे एडजस्ट कर पायेगी।यहां तो चाची की आदत पड़ गयी है

पर उसका दुःख दर्द समझने को यहां चाचा तो हैं, वहां कौन उसे समझेगा,किसे वह मन का दुखड़ा सुनायेगी?ऐसे ही सोचते सोचते शालू सिहर जाती।कुछ कर न सकने की स्थिति को समझते हुए शालू ने सब कुछ भगवान पर छोड़ दिया।

      संयोगवश देवांश सहित उसके माता पिता को शालू भा गयी।शालू ने एक बार ही नजरे उठा कर देवांश को देखा, तो उसको अपनी ओर देखता पाया,तो वह झेंप गयी।आज मन मे जो भावनाये शालू ने महसूस  की,वह उसने पहले कभी नही की थी।उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा था।

         देवांश और शालू की शादी हो ही गयी।विदा समय शालू को पहली बार चाची ने अपनी छाती से चिपका कर आंसुओ के साथ विदा किया।भानुप्रताप जी के तो आंसू रुक ही नही पा रहे थे।

शालू चली गयी।भानुप्रताप जी और अनुप्रिया दोनो रह गये अकेले अपने घर मे। अनुप्रिया अकेली घर मे डोल रही थी,इधर से उधर,आज कोई शालू घर मे नही थी जिसे वह अपनी जली कटी सुना सके।अपने भाव वह अपने पति से कहने से भी कतरा रही थी,सच बात तो यह थी अनुप्रिया को शालू की बहुत याद आ रही थी। उनकी अपनी तो औलाद ईश्वर ने प्रदान की नही थी।

       देवांश, शालू को हनीमून के लिये गोवा लेकर गया,वहां वे पूरे सात दी रहे।शालू के लिये ये बिल्कुल ही नया अनुभव था,उसे पहली बार लग रहा था कि वह भी किसी के लिये खास है,अपने देवांश के लिये।अभी तक उपेक्षा की शिकार रही शालू को देवांश का प्यार रुला रुला जाता।

      सात दिन बाद देवांश और शालू घर लौट आये।घर आते ही अपनी सास देवकी को देख उसे अपनी चाची की याद आ गयी।क्या उसका भाग्य बदल गया?वहां चाची थी तो यहां सासु मां।शालू विगत में पहुंच कर फिर सहम गयी, उसे लग रहा था,बस पात्र बदले है चाची के स्थान पर सासु मां आ गयी हैं, पर उनकी पटकथा और किरदार एक से है।

डरी डरी शालू अजनबी की तरह घर मे घुसी तो सामने सासु माँ ही पड़ी।उन्होंने शालू और देवांश को आशीर्वाद दे आराम करने को बोला,सफर से आये हो आराम कर लो।

       अगले दिन शालू अपनी दिनचर्या के निर्धारण के लिये सहमती सी सासू माँ के कमरे में पहुंची,जैसे वह कभी चाची के पास जाती थी,सकुचाई सी,डरती सी,आंखे झुकाये।अरे बिटिया शालू ,आ मेरे पास आ बैठ।मैं तो तुझे ठीक से न देख पायी और न बात कर पायी।इधर आ न उधर ऐसे क्यों खड़ी है?

शालू के लिये यह अप्रत्याशित व्यवहार था।फिर भी वह धीरे धीरे सासू माँ की ओर बढ़ गयी।देवकी ने शालू के सिर पर हाथ फिरा कर आशीर्वाद दिया और बोली देख शालू बेटा अब मुझसे घर की देखभाल नही होती,अब तू जाने।आज से यह घर तेरे जिम्मे।बेटा खाना बनाने वाली,सफाई करने वाली आती है,आज से तू ही उनको बताना उन्हें कैसे काम करना है।बेटा और हां ये रही घर की चाबियां, तू ही संभाल।

      आश्चर्य से शालू सासू माँ की आवाज भी सुन रही थी और उनके स्नेहनिल चेहरे को भी देख रही थी।शालू को अभी तक अपनी माँ की धुंधली सी तस्वीर ध्यान थी,जब माँ स्वर्ग सिधारी थी तब वह बहुत छोटी थी,आज देवकी को देख लगा साक्षात मां सामने आके खड़ी हो गयी है।बचपन से लेकर अब तक मन मे पली ग्रंथी एक क्षण में खत्म हो गयी थी।

उसे लग रहा था उसका समाप्त होता वजूद लौट आया है।आंखे आज भी छलकी पर एक आत्मविश्वास को लौटते हुए महसूस करते हुए,सासू माँ नही नही माँ को सामने देख कर।शालू ने आगे बढ़ देवकी के चरण छू लिये।

बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

मौलिक एवं अप्रकाशित।

*#बहु आँखो में आंसू भर कर अपनी सास के पावँ पर झुक गई*

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