लस्सी – हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : अम्मा की जीभ लपलपा रही है, आज घर में लस्सी बनी है। उनके पोते कुशाग्र का तीसरा जन्मदिन है, बहू के मायके से सभी जने आए हैं, आज भगोना भर के लस्सी बनी है, पूरे घर में लस्सी की खुशबू आ रही है, उनके मुंह में भी पानी आ रहा है,भरी जून का महीना है, पर यह क्या.. एक घंटा, दो घंटा, तीन घंटा बीत गए, अम्मा जी के पास लस्सी नहीं आई। अम्मा जी की चमकीली आंखें लस्सी के इंतजार में निर्जीव सी होने लगी। 

अम्मा की बचपन से कमजोरी थी लस्सी। संपन्न घर की बेटी और संपन्न घर की ही बहू थी, किंतु 5 साल पहले लालाजी के निधन  पर जो रसोई से बाहर निकली, आज तक उनकी हिम्मत अपने घर की रसोई में से ही कुछ भी लेकर खाने की नहीं हो पाइ। जब घर में सभी सो जाते अम्मा जी चुपचाप बिना आवाज किए रसोई में जाती और एक गिलास मलाई वाला दूध गटागट पीकर गिलास को कर धोकर ऐसे रखती किसी को पता ही नहीं चलता।

उन्हें बचपन से ही लस्सी पीने का बड़ा शौक था, घर में जहां सभी छाछ रायता या दही खाते वह  दही की लस्सी बनाकर उसमें थोड़ा सा लाल शरबत डालकर आनंद मगन होकर पीती और जब तक उनके पति जिंदा थे उन्हें कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं हुई, किंतु 5 साल से उन्होंने कभी लस्सी नहीं पी।

बहु अलका घर के हर सदस्य की फरमाईश भाग-भाकर पूरी करती किंतु अम्मा की कभी कुछ खाने की फरमाइश भी होती, पूरे घर में बवाल मत जाता।  तभी से जो खाने में मिल जाता चुपचाप भगवान का ध्यान कर खा लेती, किंतु लस्सी जब घर में बनती उसे ताकती रहती की क्या पता बहू या बेटा या पोता पोती कोई एक गिलास लस्सी का उन्हें भी दे जाए।

क्या उनके एक गिलास रस्सी पीने से ही घर में गरीबी आ जाएगी। पर कोई उस बुढ़िया के मन की बात नहीं समझता। उस दिन लस्सी का इंतजार करते-करते अम्मा का मन बहुत दुखी हुआ। लस्सी नहीं आनी थी नहीं आई। दोपहर 2:00 बजे पकवानों से भरी थाली अम्मा के पास लाई गई किंतु तब तक अम्मा जी के प्राण अपने लाला जी के यहां पहुंच गए थे। 

 आज अम्मा का दिल सभी ने छलनी कर  डाला था। लस्सी के इंतजार में अम्मा जी के प्राण पखेरू उड़ गए थे।

  हेमलता गुप्ता स्वरचित

 मुहावरा प्रतियोगिता छलनी कर डालना

1 thought on “लस्सी – हेमलता गुप्ता : Moral Stories in Hindi”

  1. क्या हिंदुस्तानी मां का पात्र वाकई में इतना छोटा है कि जो एक गिलास लस्सी के लिए अपने प्राण त्याग दे, न ही हिंदुस्तानी (नाम से हिंदू ही लग रहे हैं) बच्चों के संस्कार इतने ही तंगदिल है कि संपन्न घर परिवार में पिता की मृत्यु के पांच साल बाद भी मां को एक बार भी लस्सी न मिले। कृपया हिंदुस्तान का ऐसा रूप न दिखाएं

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