बचपन से ही महेश का मन पढ़ाई में नहीं लगता था। स्कूल के दिनों से ही उसे अपने शिक्षक और दोस्तों की लल्लो-चप्पो करने की आदत लग चुकी थी। दोस्तों की नोट्स की नकल और खुशामद करते -करते उसने किसी तरह ग्रेजुएशन पूरी कर ली।
महेश के पिता सुरेन्द्र जी सरकारी अधिकारी थे। उन्होंने भी अपने वरिष्ठ अधिकारियों की लल्लो-चप्पो कर महेश को नौकरी दिलवा दी। आरंभ से ही महेश मेहनत करने से जी चुराता था।उसे खुशामद कर अपने काम निकलवाने की आदत लग चुकी थी,इस कारण वह काम छोड़कर अपने वरिष्ठ अधिकारियों की लल्लो-चप्पो में लगा रहता था।उसकी इन आदतों से परेशान होकर एक दिन उसके बाॅस ने उसे चेतावनी देते हुए कहा -“महेश! लल्लो-चप्पो करने से ज़िन्दगी नहीं चलती है!कुछ काम सीखा करो।”
महेश ने बाॅस की बातों को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दिया।उसे लगता था कि खुशामद करने से ही उसकी जिंदगी की गाड़ी चलती रहेगी।एक दिन उसके गैर जिम्मेदाराना रवैया से तंग आकर बाॅस ने उसे नौकरी से निलंबित कर दिया। महेश हाथों में निलंबन -पत्र लेकर निरीह होकर बाॅस की खुशामद करता रहा, परन्तु बाॅस ने रुखाई के साथ कहा -“महेश!मेरे दफ्तर में मेहनती आदमी चाहिए, तुम्हारे जैसा लल्लो-चप्पो करनेवाला नहीं!”
महेश अपना-सा मुॅंह लेकर घर पहुॅंच गया।सारी बातें जानकर उसके पिता ने कहा -“बेटा!ग़लती तुम्हारी नहीं,मेरी है।अगर तुम्हें अपनी मेहनत से नौकरी मिलती,तो तुम उसकी कद्र करते!अब तुम इस गुमान में कभी नहीं रहना कि मैं फिर से तुम्हारी नौकरी के लिए किसी की लल्लो-चप्पो करुॅंगा!”
महेश ऑंखों में ऑंसू भरकर अपनी गलत आदतों से छुटकारा पाने का संकल्प मन-ही-मन दुहराने लगा।
समाप्त।
लेखिका -डाॅ संजु झा (स्वरचित)
मुहावरा व कहावतों की लघु-कथा प्रतियोगिता