Moral Stories in Hindi :
जैसा कि आप सबने अभी तक पढ़ा कि उमेश और शुभ्रा की शादी तय हो चुकी हैँ… सगाई हो गयी हैँ… दोनों का प्यार धीरे धीरे परवान चढ़ रहा हैँ… पर शायद दोनों की शादी होना इतना आसान नहीं… शुभ्रा के घर पर उमेश के ताऊ रमेशजी और पिता नरेश जी आयें हुए हैँ…. वो दादा नारायण जी से बोलते हैँ… गाड़ी का क्या सोचा हैँ आपने…. नारायण जी बोले वो तो आप लोग खुद ले रहे हैँ ना …. ऐसी बात कब हुई…. आप तो कह रहे थे….
अब आगे….
रमेश जी बोले…. ऐसी बात कब हुई…. आप तो कह रहे थे कि इतना इंतजाम तो हैँ कि अपनी लाली को दे सकूँ…..
समधी जी तुम …. बात पलट रहे…. मैने शादी के मेरिज होम और खाने पीने के खच्च उठायेबे की बात करी …. नारायण जी थोड़ा रोष में बोले….
ह्मबे बाऊजी …. जेई बात भई … आप शायद समझ ना पायें भाई साहब … शुभ्रा के ताऊ बबलू बोले….
तभी शुभ्रा के पिता भुवेश जी भी लाठी टेकते हांफते हुए आयें….
कछु व्यवस्था भई य़ा नाये पइसन की लाला…. नारायण जी अपने थके हारे बेटे से बोले…
का बताऊँ बाऊ जी… खेत लेने को तो सबरे तैयार बैठे हैँ… पर नगद पैसा काऊँ पे ना हैँ देने कूँ ….
अरे समधी जी आप…. राम राम…. आप लोगों को तो देख ही ना पाया…. भुवेश जी दोनों समधियों को देख कहते हैँ….
चाय पानी ली या नहीं…. ओ री बबिता… चाय नाश्ता तो लै आ….
नहीं नहीं… चाय रहने दीजिये …. आप बैठिये भुवेश जी…. नरेशजी ने हाथ पकड़ भुवेश जी को बैठाया….
लाला…. मामला नेक गंभीर हैँ…. जे छोरी के ससुरार वारे कह रहे कि गाड़ी के पईसा हम देवेंगे … ऐसी बात भई का … ऊपर ते तू बताये रहो कि गाम में ऊँ व्यवस्था ना हैँ पायी…. बता अब आगे का करो जायें…
माफ कीजियेगा नरेश जी…. पर शादी के बाकी खरचों की बात की हामी भरी हमने ना कि गाड़ी की…. भुवेश जी बोलते हैँ…
ऐसी बात है भुवेश जी कि धनतेरस आ रही हैँ तो सोच रहे हैँ गाड़ी निकलवा ले… वैसे भी ब्याह में दिन ही कितने बचे हैँ…. बड़ी गाड़ी निकाल रहे हैँ क्यूँकि हमारे उमेश की लम्बाई काफी हैँ…. तो छोटी गाड़ी में दिक्कत होगी…. कुछ पैसा तो दीजिये गाड़ी के लिये … थोड़ा हम करेंगे… आखिर उसमें बैठेंगे तो बहू बेटे ही ज्यादा …. ताऊ रमेशजी बोले….
जे छोरा को ताऊ कछु ज्यादा ना बोल रहो बबिता….. काये कूँ टांग अड़ाये रहो बीच में…. जब छोरी कूँ देखने आयें तो बड़े पैसे वारे बन रहे… अब का है गयो….गाड़ी घोड़ा तुम्हे चहिये ना कि हमने हामी भरी….शुभ्रा की ताई अपनी देवरानी बबिता जी से बोली….
सही कह रही ज़िज्जी आप…. पतो नाये अब कैसे ब्याह होगो मेई लाली को…. बबिता जी चिंता में पड़ गयी…. चलो ज़िज्जी. . . चाय दै आऊँ….
ठीक हैँ दै आ…. मन तो कर रहो कि ताऊ की चाय में मिच्च मिलाये दूँ…. कछु बोल ही ना पायेगो फिर ….
अरे नाये ज़िज्जी. … ज्यादा गुस्सा ना करो … ठाकुर जी पे भरोसा करो ….. सब ठीक से हैँ जायेगो ..
नरेशजी अपने भाई साहब रमेश जी की तरफ देख कर उन्हे इशारा कर रहे कि मत कहिये कुछ….
तो कहिये….. आप लोग कितना दे सकते हैँ??अगर अभी व्यवस्था नहीं हैँ आप पर तो शादी की डेट थोड़ा आगे बढ़ा देते हैँ….पर अपने बेटे उमेश के ब्याह में हमें कोई कमी नहीं चाहिए….भले ही थोड़ा लेट हो जायें…घर के पहले बेटे की शादी हैँ आखिर…..रमेश जी एक लड़के के ताऊ के हक से तांव में बोले……
भाई साहब …. थोड़ा बाहर आईये… आपसे कुछ बात करनी हैँ….. नरेशजी धीरे से भाई साहब से बोले….
ठीक हैँ नरेश …. चलो बाहर…..दोनों भाई बाहर आतें हैँ…..
हां बोल…. क्या बोल रहा हैँ नरेश ….
भाई साहब …. रहने दीजिये … देख रहे हैँ आप भी कैसे कैसे व्यवस्था कर रहे हैँ ये लोग…. हम खुद ही ले लेंगे गाड़ी… और नारायण जी सही कह रहे हैँ…. गाड़ी के पैसों की कोई बात नहीं हुई थी इनकी तरफ से…..
बहुत ही मध्यम वर्गीय परिवार से ब्याह रहा हैँ तू उमेश को…. क्या कमी हैँ हमारे यहां…. एक से एक रिश्ते लगे हैँ लाइन में अपने उमेश के लिए…. बिरादरी में हमारी कोई रेपोटेशन हैँ… उसका तो ख्याल रख…. सरकारी नौकरी के लड़कों के लिए लड़की वाले सब करने को तैयार रहते हैँ….
भाई साहब … उमेश को पसंद हैँ शुभ्रा…. बस हमें तो लड़के की ख़ुशी देखनी चाहिए …. बाकी पैसे रूपयों की तो कोई कमी नहीं हैँ…. कुछ कमी बेसी हुई तो इनकी तरफ से तो हम देख लेंगे….
पर देखा तो उस जगह जाता हैँ नरेश जहां कोई कमी हो लड़के में य़ा उसके परिवार में… वो 15 हैँ और हम बीस ही बैठेंगे उनके आगे…. बाकी तुझे जैसा ठीक लगे… बस अपने उमेश की वजह से मान जा रहा हूँ… पर अपने समीर के ब्याह में नहीं सुनूँगा तेरी….
ठीक हैँ भाई साहब …. अब चलिये अंदर …. संभालिये चलकर … जो रायता फैला हैँ….
अंदर बैठक का नजारा ही कुछ और हैँ…. नारायणजी अपनी दाढ़ी पर हाथ रखते हुए कुछ सोच विचार में लगे हैँ….. बबलूजी और भुवेशजी लाचार और उम्मीद भरी निगाहों से नरेशजी और रमेश जी की तरफ देख रहे हैँ…
घर की सभी औरतें घूंघट किये वहीं खड़ी हुई हैँ…. सभी के मन में चल रहा हैँ कि पता नहीं अब तय तिथि पर शुभ्रा और उमेश का ब्याह हो भी पायेगा य़ा नहीं….
इधर दोपहर के टाइम लंच करने उमेश मेस की तरफ आ रहा हैँ…. उसने सोचा क्यूँ ना तब तक शुभ्रा से ही बात कर ली जायें …
उमेश फ़ोन लगाता हैँ…. शुभ्रा पहली ही रिंग पर फ़ोन उठा लेती हैँ….
हेलो शुभ्रा…. कैसी हो ….घर में सब कैसे हैँ??
जी ठीक हूँ…. आपके पापा और ताऊ जी घर आयें हुए हैँ…. बोलते हुए शुभ्रा रोने लगी….
उसकी सिस्कती हुई आवाज सुन उमेश बोला…
शुभ्रा…. अब ऐसा क्या कहा मैने… तुम रो क्यूँ रो रही हो ??
जी…शायद अब हमारी शादी नहीं हो पायेगी… आपके ताऊ जी गाड़ी के पैसे देने को बोल रहे हैँ… आप लोग ले भी बड़ी गाड़ी रहे हो….मेरे पापा, बाबा पर इतने पैसे कहां हैँ……इतना बड़ा परिवार हैँ… कहां से लायेंगे…. मेरे आगे भी और बेटी हैँ उनकी….
आप कहीं और शादी कर लीजियेगा …. आपका और मेरा साथ यहीं तक था… बोलते हुए शुभ्रा जोर जोर से रोने लगी….
ये क्या बोल रही हो शुभ्रा…. ऐसा मत बोलो…. तुम परेशान मत हो….. मैं पापा और ताऊ जी से बात करूँगा …. तुम सिर्फ मेरी हो और मैं तुम्हारा. …. समझी … शादी तो तुमसे ही करूँगा … नहीं तो मर जाऊंगा ….
ऐसी बातें मत करिये … ये सब फिल्मों में ही अच्छा लगता हैँ…. सच तो ये हैँ कि एक मिडिल क्लास फैमिली की लड़की एक राज कुमार के सपने नहीं संजो सकती…. अच्छा बाद में य़ा फिर पता नहीं कब बात करती हूँ आपसे… य़ा शायद अब हमारी बात हो ही ना पायें …. माँ बुला रही हैँ….
क्या हैँ शुभ्रा…. ऐसे मत बोलो यार…. मैं परेशान हो जाऊंगा…. बात करना बंद मत कर देना…. अब तो तुमसे बात करने की आदत सी हो गयी हैँ… मुझसे दूर मत जाना… मैं बात करता हूँ पापा से…. शादी तो तुमसे ही होगी मेरी…. वैसे मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि पापा ऐसे पैसों के बारें में कह सकते हैँ….
ठीक हैँ जाओ….. शुभ्रा….. हां ये बात कान खोलकर सुन लो दुबारा कभी मत कहना कि कहीं और शादी कर लो…. समझी ….
जी…. बाय…. शुभ्रा फ़ोन काट देती हैँ…
उमेश की आँखों में भी आंसू आ गए हैँ…. वो सामने से आतें राहुल को देख आंसू पोंछ लेता हैँ….
इधर दादा नारायण जी कहते हैँ… तो फिर ठीक हैँ…. लग ना रई कि हम जे ब्याह कर पावेंगे…. तो फैसलो जे हैं कि सगाई तो हैं गई पर अब…..
आगे की कहानी कल…. तब तक के लिए चक्रधारी मुरली मनोहर की जय….
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा
लड़के वाले सीजन -2 (भाग -1) – मीनाक्षी सिंह