Moral Stories in Hindi :
जैसा कि अभी तक आप सबने पढ़ा कि नरेशजी भुवेशजी के यहां अपने बड़े बेटे उमेश के लिये शुभ्रा को देखने आयें हुए हैं… सब कुछ अच्छा चल रहा था पर अचानक से बन्नो बुआ के धमाके से घर में हलचल मच गयी क्यूँकि लड़का उमेश नरेशजी वीना जी का सगा बेटा नहीं था… वह अनाथ था ज़िसे इन्होने पाला था… लड़के पक्ष की इस बात पर सफाई सुनने के बाद दादा नारायण जी कहते हैं हम 15 मिनट में आपस में बातचीत कर फैसला लेकर आतें हैं..नहीं तो सबको राम राम…इधर उमेश और समीर की धड़कने बढ़ी हुई हैं…
अब आगे….
बन्नो बुआ कहती हैं सब पीछे आंगन में चलो… वहीं फैसला होवे हैं…
ठीक हैं बन्नो…ए रे बबलू मुझे पकड़…नारायण जी लाठी लिए हुए बबलू का सहारा ले आंगन में इकठ्ठा होते हैं… तभी नारायण जी चारपाई पर बैठ ज़ाते हैं और कहते हैं…. सब लोग अपनी अपनी बात रखो… तुम लोगों की क्या राय हैं इस पर ??
तभी हमारी बड़बोली बुआ फिर बोली… सौ बात की एक बात बाऊजी… चाहे छोरे वाले कछु कहे पर सौतेला बेटा सौतेला ही होवे हैं… ब्याह तक तो कोई बदलाव ना आवे घर में … पर ब्याह होते ही दो आँख देखने लगे हैं छोरे वाले इस छोरे कूँ… मोये तो सही ना लागे ये रिश्ता….
तभी बुआ की बात में अपनी बात रखते हुए शुभ्रा के ताऊजी बोले… वैसे बन्नो सही कह रही हैं… हम क्या जाने कि जे बड़े छोरे को जमीन जायदाद में कछु देंगे भी य़ा नाये ….
भाई साहब सही बोले… छोटा छोरा का नाम हैं उसका समीर… वो तो बड़ा छिछोरा और बातूनी लागे हैं… लगता नहीं कि उसका दीदा पढ़ाई में लगता होगा… उसकी नौकरी भी नहीं हैं अभी कोई… बड़ा छोरा फौजी हैं… छोरे वालों का मन पसीज जावे कहीं जे देखकर और सब कुछ छोटे छोरे के नाम कर देवे तो .. छोटी बुआ शन्नो बोली…
बात तो सही हैं… फिर बेचारी लाली का ना तो खुद का घर होगा ना ही जमीन जायदाद… घर से निकाल दिया कहीं ये कहके कि तुझे पालपोष दिया…..ब्याह भी कर दिया…..अब अपना खुद देख.. ….तब ना तो छोरा छोरी घर के रह जावे ना घाट के… घर की बड़ी बहू घूंघट से बोली…
इतना सुन नारायण जी बोले… बोले तो सही तुम लोग.. अब तू बता बबिता (शुभ्रा की माँ)…. तेरा क्या कहना हैं इस पर .. तेरी लाली के जीवन की बात है जे,,अपनी भी बात रख…
थोड़ा सकुचाते हुए घूंघट की ओट से बबिता जी बोली… पिता जी… वैसे तो आप सब बड़े हो घर के … जो फैसला लेंगे आप लोग वो सही ही होगा… पर एक बात कहना चाहूँ कि जीवन छोरी का छोरे से ही कटे हैं…. छोरा नौकरी वाला हैं….. हमाई लाली भी पढ़ी लिखी हैं कुछ ना कुछ आमदनी वो भी कर लेवेगी …. अगर छोरे वाले कछु ना भी देवे तो भी कोई दिक्कत ना आवे… छोरा मुझे बहुत ही समझदार , अच्छे व्यवहार का लागे हैं…
माँ के मुंह से यह बात सुन शुभ्रा के चेहरे पर मुस्कान आ गयी.. ज़िसे पिता भुवेश जी भी देख रहे थे और सहमत थे…
नारायण जी बोले.. बबिता ने भी खरी बात कहीं …
तभी बात काटते हुए फिर बन्नो बुआ बोली… भाभी अच्छी लागे चाहे बुरी… पर मैं तो कहूँगी .. आखिर मैं भी बुआ ठहरी लाली की … ऐसी का कमी हैं लाली में जो बिन माँ बाप के छोरे से ब्याह करना पड़े हैं… जे नहीं तो और कोई मिलेगो…. मैं तो पहले भी कह रही मेरी चचिया सास का छोरा पटवारी हैं… उनकी कोई मांग भी ना हैं… बस छोरी को दो जोड़ी कपड़े में ले जावेंगे … वहीं कर दो बाऊ जी… राज करेगी छोरी… दूध, दही , मठ्ठा की कोई कमी ना रहेगी… 5 भैंस , दो गाय हैं उनके… और जमीन तो इतनी कि नाप भी ना पावे कोई…
बुआ जी कि यह बात सुन शुभ्रा आग बबूला हो चुकी थी.. वो कुछ कहने ही वाली थी तभी पिता भुवेश जी ने उसको इशारा करके चुप रहने को कहा …
भुवेश जी अपनी लाठी संभालते हुए बोले… बन्नो… तू उस पटवारी छोरे की बात करें हैं जो मेरी शुभ्रा से 10 साल बड़ा हैं… मोटा तो हाथी के बराबर हैं… और तो और बिल्कुल गाम में रहवे हैं वो.. छोरी पढ़ी लिखी हैं इनके घर शहर में रहवेगी…. चूल्हा चौका ना करना पड़ेगा छोरी को खुले में…गांव में खूब बड़ो मकान हैं इनका… शहर का घर तो ऐसा हैं बाऊ जी कि विक्की (शुभ्रा का भाई ) बता रहा उसे पैर रखने में भी संकोच लग रहा उनके घर में … वो जमीन का कहवे हैं मकरानों पत्थर की बनी हैं… उसमें तो अपना चेहरा देख लेवे इंसान… हर चीज देखने लायक हैं…. मेरी शुभ्रा अगर ऐसे घर पहुँच जावे तो मेरा जीवन सफल हो जावे…. भुवेश जी भावुक हो गए… हर माँ बाप चाहते हैं उनकी बेटी जिस भी घर जाए,,राज करें ….
तभी घर की इतनी बड़ाई सुन शुभ्रा की ताई मन ही मन सोची फिर तो सही पसंद किया मेई लाली ने छोटे छोरे समीर को… वो तो सगा बेटा हैं उनका… उसका ही होगा सब आगे जाके … बस शुभ्रा लाली का ब्याह वहां हो जावे…
सभी की बात सुन नारायण जी बोले… अब बस शुभ्रा रह गयी हैं… तू बता मेरी लाली… तूने तो छोरे से बात करी हैं… तेरा क्या फैसला हैं… आखिर जीवन तो तुझे बिताना हैं उसके साथ…
शुभ्रा बोली… बाबा… मैं आपकी लाडली रही हूँ और पापा की भी… छोरे को देख बस एक ही बात मन में आयी आप लोगों से कम ख्याल नहीं रखेगा मेरा… और कौन सा ये घर मकान मुझे अपने साथ ऊपर लेकर जाना हैं.. बस ख़ुशी ख़ुशी जीवन बीतें … मैं अपने पैरों पर खड़ी हो ही जाऊंगी फिर तो ऐसे दस घर बनवा लूँगी….
वाह… सौ टके की बात कही तूने लाली..जे होती हैं पढ़ी लिखी सोच…नारायण जी खुश होते हुए बोले….
तभी फिर आयी बन्नो बुआ बीच में… जे सब फिल्मन में ही अच्छा लागे बाऊ जी… रिश्तेदारी में कितनी नाक कट जावेगी जब सब जानेंगे कि एक बिन माँ बाप के अनाथ लड़के से शादी कर दी छोरी की… ज़िसकी जात पात माँ बाप का कछू नहीं पता … सब सोचेंगे कि क्या छोरी से कुछ ऊँच नीच हो गयी जो ऐसे घर में जल्दी जल्दी ब्याह दिया…
शुभ्रा अपने दांतों को पीसती रही पर भुवेश जी और माँ के आँख दिखाने पर कुछ कह ना पायी… उसका बस चलता तो कह देती कि आपका छोरा तो किसी विधवा औरत को भगा लाया हैं… उसका क्यूँ नहीं कहती आप….
तभी नारायण जी बोले … जे बात तो मैने सोची ही नाये… मैने फैसला ले लिया हैं… अब ज्यादा बखत ना लेते हुए चलो सब बैठक में… फैसला सुनाता हूँ….
आगे की कहानी कल…. तब तक के लिए जीवन का आनन्द ले… खुद ज़िये ,, दूसरों को जीने दे 😁😁
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा
2 thoughts on “लड़के वाले (भाग -12) – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi”