लड़के वाले (भाग -11) – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : जैसा कि आप सबने अभी तक पढ़ा कि नरेशजी अपने बेटे उमेश के लिए लड़की शुभ्रा को देखने भुवेश जी के यहां परिवार सहित आ चुके हैं… चाय, नाश्ता , खाना पीना सब हो चुका हैं… लड़की शुभ्रा, लड़के वालों को पसंद आ चुकी हैं… पर उमेश एक बार शुभ्रा से कुछ बात करना चाहता था… दादा नारायण जी ने दस मिनट का कह बुआ बन्नो के साथ दोनों को छत पर बात करने के लिए भेज दिया हैं.. उमेश शुभ्रा को अपने अनाथ होने के बारे में बताता हैं … ये बात बड़बोली बन्नों बुआ सुन लेती हैं… वो चिल्लाते हुए नीचे ज़ाती हैं…. अरे बाऊ जी,, छोरा तो…. तभी बुआ जी को देख उमेश और शुभ्रा भी उनके पीछे पीछे आ ज़ाते हैं…

अब आगे…

बुआ बन्नो हांफती हुई नीचे आती हैं…

क्या हुआ… बांदर आ गए का छत पे… मैने पहले ही कहां लाठी लेकर जा छत पर …. दादा नारायण जी गुस्साते हुए बोले…

अरे नाये बाऊ जी…

फिर ऐसी का बात हैं गयी… मेरा बीपी बढ़ जावे बता री बन्नो ….

बाऊ जी,ऐसी खबर लायी हूँ ज़िसको सुन तुम सबके कान सुन्न हो जावे….पतो हैं… छोरा तो बिन माँ बाप के हैं … जे जो बैठे हैं जे असली मईया बाप ना हैं…

यह सुन शुभ्रा के सारे घर वाले एक आवाज में कहते हैं… क्या …….

रमेश जी, नरेश जी, सभी लड़के वाले भी एक दूसरे की तरफ देखते हैं कि ऐसी भी क्या बात हुई कि सब ऐसा बर्ताव कर रहे हैं… समीर का मन तो हुआ कि कह दे आपके घर में भी ऐसा क्या हैं जो ऐसी एँठ दिखाने लगे हैं सब… वो अपने दोनों हाथों की मुट्ठी को बंद कर मुक्का बनाकर ऐसे बैठा कि उसका बस चलता तो बन्नों बुआ के मुंह पर ही…. खैर ये सब तो मन की बातें हैं,, ऐसा करता कौन है ….

तभी नारायण जी उठे और बोले… जे तो शरासर गल्त बात हैं आप लोगों की… पहले क्यूँ ना बतायी कि जे आपका जना बच्चा ना हैं…

इसमें ऐसी कोई बताने वाली बात हमें तो लगी नहीं नारायण जी…. क्युंकि मेरे नरेश और वीना ने कभी ऐसा महसूस ही नहीं होने दिया ,,ना तो उमेश को,,ना ही समाज में किसी को कि ये इनकी खुद की संतान नहीं हैं… भाई साहब रमेश जी बड़ी गंभीरता से बोले…

जी,, भाई साहब ने बिल्कुल सही कहा … हमारा उमेश तो हमारी जान हैं… हमें कभी लगा ही नहीं कि ये हमारा बेटा नहीं.. ये भी हमें अपने सगे माँ बाप से भी ज्यादा प्यार करता हैं… नरेशजी थोड़ा भावुक होते हुए बोले…

जी,, मैने और ना ही हमारे घर में किसी ने कभी उमेश और समीर में कभी भेदभाव किया…. बड़े होने के नाते हर फैसले में इसकी रजामंदी लेते हैं… वीना जी बोली…

तभी बीच में समीर पर भी ना रहा गया उसने भी अपनी बात रखी… जानते हैं कोई चीज घर में आती हैं सबसे पहले भाई को दी ज़ाती हैं… मेरी कही किसी चीज की मना भले ही कर दे पापा पर भाई के मुंह से निकलने से पहले वो चीज हाज़िर हो जाती हैं… भाई मुझे तो इतना प्यार करता हैं.. कितनी ही बार मेरी गलतियों पर पर्दा डाला हैं भाई ने … बोलते हुए समीर थोड़ा ईमोशनल हो गया…

वो लड़की जो समीर को देख देख शर्मा रही थी वो समीर को उदास देख रोने लगी.. अपनी नाक और आंसू अपने दुपट्टे से पोंछने लगी… उसके बगल में खड़ी उसकी माँ ने अपनी लाली को घूरकर देखा कि इसे क्या हुआ जो टेसुएं बहाये जा रही हैं….

तभी उमेश भी बोला… जी… मैने शुभ्रा को भी बता दिया हैं… मैने अपने माँ बाप को तो बचपन में ही खो दिया… मेरे माँ बाप से भी बढ़कर हैं ये मेरे लिए…. यहीं मेरे सब कुछ हैं… बाकी आपकी बेटी हैं उसके लिए जो सही य़ा गलत होगा वो आप अच्छे से समझते हैं.. बस इतना कहूंगा .. आपकी बेटी को इतना प्यार करने वाला परिवार शायद ही मिले… जिसने एक अनाथ को इतना प्यार दिया कि ज़िसे कभी नहीं चुका सकता मैं …

तभी ताऊ रमेश जी बोले.. उमेश ने बिल्कुल ठीक कहा … आप लोग जैसा चाहे वैसा फैसला ले सकते हैं… जहां शिष्टा होती हैं ब्याह वहीं होता हैं… हम और आप चाहने वाले कोई नहीं होते… वैसे भी हमारे उमेश के लिए रिश्तों की कोई कमी नहीं हैं… कल भी एक काफी अच्छा रिश्ता आया था शहर के जाने माने व्यापारी हैं वो… लड़की भी पढ़ी लिखी हैं,, सरकारी नौकरी में हैं… यहां देखने के बाद कल उन्ही के यहां जाने वाले हैं… जैसा सभी लड़के वाले अपना रूतबा दिखाते हुए बोलते हैं… तो रमेश जी कहने में कौन सा चूकते …

परदे के पीछे खड़ी शुभ्रा रमेशजी के मुंह से उमेश के लिए दूसरी सरकारी नौकरी की लड़की की बात सुन बेचैंन हो गयी… वहीं परदे को खींचने लगी…जैसे अभी से उमेश को अपना मान चुकी हो… उसके मन में जलन आ गयी…शायद उमेश की नजर भी शुभ्रा पर चली गयी थी … दोनों की नजरें मिलते ही शुभ्रा ने अपनी आँखें झुका ली….

शुभ्रा के पिता भुवेशजी को इस रिश्ते से कोई समस्या नहीं थी पर पिता जी के आगे घर में किसी का क्या बस जो कुछ बोल सके….

नारायण जी बोले… वो सब तो ठीक हैं पर हम जल्दबाजी में कोई फैसला ना लेवे…. हमें 15 मिनट दीजिये .. तब तक बबलू इन्हे अपने पेड़ों की जमुनी (जामुन ) खिला,,कारो नमक डालके … तब तक हम फैसला लेकर आयें… जो होगा अभी बस कुछ बखत में हो जावें हैं… नहीं तो राम राम सबको…

ये राम राम सुन बाकी कोई नहीं पर समीर थोड़ा बुझ गया कि भाई को शुभ्रा पसंद हैं… अगर मना किया इन लोगों ने तो बोलेंगे तो कुछ नहीं पर अन्दर ही अन्दर घुट ज़ायेंगे … भाई को दुखी तो समीर देख ही नहीं सकता.. बेचारा उमेश भी बहुत दुखी हैं कि पता नहीं ये बन्नो बुआ शुभ्रा को उसका होने देंगी कि नहीं….

आगे की कहानी कल…. तब तक के लिए जवान फिल्म देख आईये…

और हां आप सबके लिए प्रश्न … इस कहानी के पात्रों के नाम बताईये… देखते हैं कितने लोगों ने कहानी ध्यान से पढ़ी

मीनाक्षी सिंह की कलम से

आगरा

लड़के वाले (भाग -10)

लड़के वाले (भाग -12)

2 thoughts on “लड़के वाले (भाग -11) – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi”

  1. Umesh:- ladka jiske liye ghar wale dulhan dekhne aaye h… (Main character)
    Ramesh ji:- ladke ke bade papa….. Naresh ji:- Umesh ke papa….. Veena ji:- Umesh ki mummy….. Sameer:- Umesh ka chota bhai….. Subhra:- Jise ladke wale dekhne ke liye aaye h… (Female lead)….. Bhuvesh ji:- ladki ke pita…. Banno ji:- Subhra ki badboli bua…. Narayan ji:- ladki ke dada….

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