लड़के वाले सीजन -2 (भाग -14) – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : जैसा कि आप सबने अभी तक पढ़ा कि शुभ्रा के दादा जी गुसलखाने में गिर गए हैँ… वो आँखें नहीं खोल रहे हैँ… उमेश के पिता नरेशजी और भाई समीर ने दादा नारायणजी को अपनी चार पहिया गाड़ी से अस्पताल पहुँचा दिया हैँ… इधर समीर अपने भाई उमेश को दादा जी के बारें में बताता हैँ… और शुभ्रा से बात करके उसे तसल्ली देने को बोलता हैँ… उमेश शुभ्रा को फ़ोन लगाता हैँ…..ताईजी की अनुमति मिलने पर शुभ्रा कमरें में उमेश से बात करने आती हैँ… वो फ़ोन उठाती हैँ… उमेश कहता हैँ… हेलो… शुभ्रा… सुनो…. शुभ्रा कुछ नहीं बोलती बस फफ़ककर रोने लगती हैँ…

अब आगे….

अरे तुम तो रोने लगी… परेशान मत हो शुभ्रा… तुम्हारे दादाजी को कुछ नहीं होगा… वो तो कितने तन्दरुस्त और अच्छे से खाते पीते खुशमिजाज स्वभाव के हैँ… तुम्हारे घर की जान हैँ दादाजी…उन्हे कुछ हो ही नहीं सकता… इतने लोगों की दुआयें जो उनके साथ हैँ… गिर गए हैँ इसलिये थोड़ी चोट हैँ उन्हे … घबरा गए इसलिये बेहोश हो गए वो… डॉक्टर दवाई दे देंगे… पट्टी कर देंगे…. ठीक हो ज़ायेंगे… उमेश शुभ्रा को समझाने की पूरी कोशिश कर रहा था कि वो परेशान ना हो….

जी… आपको कैसे पता कि दादा जी को थोड़ी ही चोट आयी हैँ?? वो तो हाथ भी नहीं हिला पा रहे थे… शुभ्रा सिस्कियां भरती हैँ…

मेरी अभी समीर से बात हुई हैँ…. वो बता रहा था… डॉक्टर देख रहे हैँ उन्हे … मुझे तो लगा था मेरी शुभ्रा बहुत हिम्मती हैँ तभी एक फौजी लड़के से शादी कर रही हैँ… तुम तो बहुत कमज़ोर हो दिल की… कोई ऐसे रोता हैँ क्या भला… तुम्हे तो घर में सबकी हिम्मत बंधानी चाहिए… फौज में मैं कभी शहीद हो गया तो तुम कैसे सामना करोगी इस दुख का?? उमेश शुभ्रा की हिम्मत बंधाने के लिए जो मन में आ रहा था बोले जा रहा था कि बस किसी तरह उसकी शुभ्रा चुप हो जायें ….

ये कैसी बातें कर रहे हैँ आप… आपको कुछ हो उससे पहले भगवान मुझे अपने पास बुला ले…. अब फौज पहले जैसी नहीं रही… पापा, कहते हैँ… अब इतना खतरा नहीं हैँ ना ?? कहिये मैं सही बोल रही हूँ ना ?? शुभ्रा मन ही मन उमेश की बात से घबरा गयी थी…

उमेश शुभ्रा को और परेशान नहीं करना चाहता था जबकि वो जानता था फौज में कुछ नहीं बदला हैँ… पहले भी कई फौजी शहीद होते थे अब भी हो रहे हैँ…

उमेश बोला…

हां सही कहां तुम्हारे पापा ने… मैं तो बस ऐसे ही कह रहा था… अच्छा तुम मुझसे इतना प्यार करने लगी हो … अपने उमेश को खोने का इतना डर ….

जी…. आपकी होने वाली पत्नी हूँ…. आपसे प्यार नहीं होगा तो किससे होगा…. मैं भी कैसी पागल हूँ…अभी पत्नी बनी भी नहीं हूँ आपकी हक दिखाने लगी हूँ…

तुम तो मेरी उसी दिन हो गयी शुभ्रा जिस दिन मैने तुम्हे पहली बार देखा… अगर शादी नहीं हो पायी हमारी तो इस जन्म में तो किसी और को दिल में बसा नहीं पाऊंगा….

जी दादा जी को हमारी शादी का बहुत अरमान हैँ… नींद में भी बड़बड़ाते रहते हैँ… कल्लू से कह दियों रसगुल्ला में बताशे डारनो ना भूल जावें…. पांडाल के नीचे सब सामान लाली के ब्याह को पहुँच गयो य़ा नाये…. और भी पता नहीं क्या क्या बोलते रहते हैँ… शुभ्रा के चेहरे पर दादाजी की बातें बताते हुए एक मुस्कान तैर आयी थी….

अच्छा तुम प्रोमिस करो मुझसे अब रोओगी बिल्कुल नहीं…मेरी शुभ्रा रोयेगी तो मेरा भी यहां किसी काम में मन नहीं लगेगा… नौकरी से और निकाल दिया जाऊंगा… मुझे पता हैँ मेरी शुभ्रा ऐसा तो बिल्कुल नहीं चाहेगी…

जी ठीक हैँ… शुभ्रा अपने आंसू दुपट्टे से पोंछ लेती हैँ…

ठीक हैँ शुभ्रा…. समीर का फ़ोन आ रहा हैँ…. जो भी खबर मिलती हैँ दादा जी की बताता हूँ…

जी ठीक हैँ… अपना ख्याल रखियेगा….

उमेश समीर का फ़ोन उठाता हैँ…. बोल छोटे … अब दादा जी की हालत कैसी हैँ ??

भाई क्या बताऊँ .. कोई रिस्पोन्स नहीं दे रहे हैँ दादा जी… सांस भी उखड़ रही हैँ… वेंटीलेटर पर लेना पड़ेगा अब उन्हे …. इस होस्पिटल में ये फैसिलिटी हैँ नहीं… ऊपर से एक दो होस्पिटल में बात कि वहां खाली नहीं हैँ… ठीक हैँ भाई बाद में बात करता हूँ पापा बुला रहे हैँ ज़रा….

ठीक हैँ छोटे… जल्दी ही खबर देना… उमेश भी घबराया हुआ हैँ…

समीर.. ताऊजी को फ़ोन लगा … अपना संतोष (ताऊ रमेश जी का बेटा) वो सहारा होस्पिटल में हैँ ना ?? उससे बात करते हैँ नारायणजी को एडमिट करने की… शुभ्रा के घर वाले बस रोये जा रहे हैँ….

हां पापा… लीजिये … संतोष भईया का ही नंबर लगा दे रहा हूँ… तब तक नरेश जी के बड़े भाई साहब रमेशजी भी आ चुके हैँ…

संतोष से बात करने जा रहा हूँ भाई साहब…. नारायण जी को वेंटिलेटर की ज़रूरत हैँ….

पूछ क्यूँ रहा हैँ तू उससे … ऐसे ही पढ़ा लिखाकर डॉक्टर बनाया हैँ उसे… अपनो के भी काम नहीं आयेगा तो किसके आयेगा… अबेर मत कर … जल्दी ले चलो नारायण जी को…. बुढ़ऊँ की जान इतनी सस्ती नहीं कि ऐसे ही जाने दे उसे… रमेश जी की भी आँखों में आंसू थे उन्हे वो समय याद आ रहा था कैसे जबरन खाना खिला रहे थे दादा नारायण जी उन्हे …. जब वो अपने उमेश के लिए शुभ्रा को देखने गए थे… कैसी अच्छी खातिर की थी उन्होने…

शुभ्रा के ताऊ बबलू , भाई विक्की , समीर स्ट्रेचर के साथ साथ चल रहे हैँ… नारायण जी को एंबुलेंस में लिटा दिया गया हैँ….

वो सहारा होस्पिटल पहुँच चुके हैँ… रमेश जी के एक फ़ोन पर उनका बेटा संतोष जो मरीजों को देख रहा हैँ उन्हे नर्स को सुई लगाने का बोल भागता हुआ बाहर आता है … नारायण जी की हालत जानने के बाद वह अपने सिनियर को फ़ोन करता हैँ… तुरंत नारायण जी को वेंटिलेटर पर लिया जाता हैँ… चारों तरफ बस सभी लोग नारायण जी की सलामती की दुआ मांग रहे हैँ ….

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