क्यों हो जाते हैं लोग इतने स्वार्थी – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

अपने आप बिस्तर से न उठ पाने की स्थिति में नर्मदा जी की बार बेटे को और पति को आवाज दे चुकी थी बाथरूम जाने के लिए लेकिन कोई सुन ही न रहा था । अपनी बेबसी पर खीज जाती नर्मदा जी और कह उठती है भगवान उठा क्यों नहीं लेता मुझे , बुला क्यों नहीं लेता अपने पास ।थक गई हूं तुम्हारी इस दी हुई जिंदगी से ।

कितना स्वार्थी संसार है जब तक आप सबका करते हो , अपने परिवार के लिए एक पैर पर खड़े रहते हो ,सबके सुख दुख में सबका ख्याल रखते हो तभी तक साथ रहता है। लेकिन जब खुद असहाय हो जाते हैं ,अपना शरीर साथ छोड़ देता है तो कोई साथ नहीं देता है।सब स्वार्थी संसार है , चाहे अपना पति हो, बेटा हो , बेटी हो बहू हो सब मतलब के साथी है ।

              आज से चालीस बरस पहले जब नर्मदा दुल्हन बनकर इस घर में आईं थीं अपनी पुरानी दुनिया में खो गई नर्मदा।दो जेठ जेठानी थे बूढी सास और तीन ननदें थी । पहले सबका एक साथ रहना था साथ ही सबका खाना पीना होता था। ननदें बड़ी थी तो उनकी शादी हो चुकी थी। नर्मदा और दिनेश घर में सबसे छोटे थे।

जब दिनेश की शादी नर्मदा के साथ हुई तो घर में अलग कोई कमरा नहीं था तो बड़ी जेठानी ने अलग किराए का मकान ले लिया था ।अब बड़ी ने अलग मकान ले लिया था तो छोटी जेठानी क्यों पीछे हटते उन्होंने ने भी ये कहकर अलग मकान ले लिया कि मेरे बेटे को पढ़ने के लिए एक अलग से कमरा चाहे और घर में है नहीं इसलिए अलग ले रहे हैं ।

सबने सास की ज़िम्मेदारी तो से पल्ला झाड़ कर अलग हो गए।घर में ज्यादा पैसा था नहीं दिनेश एक छोटी सी नौकरी करते थे। नर्मदा काफी सुघड़ और समझदार थी उसने घर की और सास की ज़िम्मेदारी को अच्छे से संभाल लिया। इसी बीच नर्मदा दो बच्चों की मां भी बन गई ।घर गृहस्थी और सांस की देखरेख में नर्मदा ने अपने आपको झोंक दिया। चूंकि दिनेश की आमदनी कम थी तो हर काम अपने हाथ से करती जिससे कुछ पैसे बच जाए।

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         इसी तरह मेहनत करते करते बच्चे बड़े हो रहे थे । दिनेश बहुत गर्म मिजाज इंसान थे। बात बात में गर्म हो जाना चिल्लाने लगना उनकी आदत थी। शादी के तीस साल हो रहे थे दिनेश को इसी तरह बहुत सी बीमारियों ने घेर रखा था दिनेश जी को किसी न किसी का इलाज चलता ही रहता था। छोटी छोटी बीमारियों के साथ साथ कुछ बड़ी बीमारियां भी लगी थी जिनका आपरेशन होना होता था। नर्मदा का बचा खुचा पैसा सब इलाज में लग जाता।सास का भी देहांत हो चुका था।

            अब बेटा दीपक ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर ली थी।और अभी अभी नौकरी पर लगा था नर्मदा जी ने सोचा चलो अब बेटे से ही कुछ सहारा मिलेगा अब तो कुछ आराम मिले बहुत कर लिया काम । जीवन की आपाधापी में नर्मदा जी कभी अपने मन की न कर पाईं। कभी कोई साडी कपडा या जेवर या कोई मनपसंद चीज देखती थी तो मन मसोस कर ही रह जाती थी कभी ले न पाईं।

अब बेटे की नौकरी लग गई थी तो नर्मदा जी ने सोचा चलो कुछ पैसे बेटा देगा तो कोई चीज अपने मन की भी करूंगी। नर्मदा जी को घूमने फिरने का भी बड़ा शौक था सोचा चलो बेटे से कहूंगी कि एक बार वैष्णो देवी ले चल। कभी झूठ में ही पति दिनेश से कह देती थी कि कहीं घूमने का मन करता है तो वो नर्मदा पर चिल्ला पड़ते यहां इतने खर्चें है

और मैडम को घूमने की पड़ी है ।बेटी एम बीए कर रही थी ।अब पढ़ाई लिखाई की जिम्मेदारी यां खत्म हो रही थी तो शादी ब्याह की जिम्मेदारी आ रही थी। बड़ा खर्चा था उसके लिए भी अच्छा खासा पैसा चाहिए। सभी बेटे से उम्मीद लगाए बैठे थे कि अब बेटा नौकरी करने लगा है तो वो करेगा । लेकिन बेटा भी कितना करेगा ।घर से बाहर रहता है तो उसका भी तो खर्चा है । फिर बड़े शहरों में बड़ा खर्चा होता है । कितना ही घर पर दे पाएगा। फिर शुरू शुरू में नौकरी में बहुत मिलता भी नहीं है ।  ।

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                     इधर दिनेश जी भी रिटायर होने के करीब आ गए थे तीन साल बाकी थे। इसी बीच उनकी तबियत खराब रहने लगीं । सांस फूलने लगी और शरीर में सूजन आने लगी , वीपी भी हाई रहने लगा। डाक्टर को दिखाया तो कहने लगे साइलेंट हार्ट अटैक के संकेत हैं इन्हें कुछ भी हो सकता है दिल्ली ले जाएं। फिर बड़े भाई और बेटे दोनों मिलकर दिल्ली ले गए ।

वहां डाक्टरों ने चैकअप किया तो हार्ट में कुछ प्राब्लम बताई और पांच लाख का खर्च भी बताया। नर्मदा ने कुछ पैसे अपने भाइयों से लिया कुछ पैसे दिनेश के भाइयों ने लगाया और बेटे ने दोस्तों से मदद ली और छोटा सा मेडिकल इंश्योरेंस था तो कुछ पैसे उससे निकाल कर किसी तरह आपरेशन कराया गया।

          आपरेशन के एक हफ्ते बाद घर आए तो ज्यादा देखभाल की जरूरत थी।तब भी बात बात पर दिनेश नर्मदा पर चिल्ला पड़ते थे ।सारे अरमानो को पीछे धकेल कर नर्मदा ने जी जान से सेवा की ।अब नर्मदा की भी उम्र हो रही थी वो सोंच रही थी सारी उम्र ही तो काम किया है अब सोंच रही थी कि एक बर्तन मांजने वाली लगा लूं कब तक हाथ घिसती रहूंगी

कुछ हमें भी तो आराम मिले लेकिन नहीं मेरी किस्मत में तो है ही नहीं कुछ।ये सुनते ही दिनेश जी नर्मदा पर चिल्ला पड़े इधर हमारी तबियत ठीक नहीं है इतना पैसा खर्च हो रहा है उधर तुम्हें अपने आराम की पड़ी है ।

करती क्या हो सारा दिन। नर्मदा सोचने लगी हां करती क्या हूं सारा दिन सिर्फ घर के काम,सबकी देखभाल। पैसे बचाने के लिए सारा काम खुद ही करती हूं मैं करती क्या हूं । एक दिन घर में काम न करूं तो कोई काम नहीं होता ,एक दिन सुबह जल्दी न उठों तो सबेरा ही न हो करती क्या हो ,इस बात से इतना चिढ़ जाती नर्मदा की करती क्या हो ।

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           वैसे तो छोटी मोटी परेशानी में नर्मदा जी कभी किसी से कुछ कहती न थी उन्हें पता था कि कोई तवज्जो नहीं देगा मुझको फिर भी एक दिन नर्मदा जी को बुखार आ गया हाथ पैरों में दर्द था बहुत तो वो दिनेश जी से बोली आज तबियत ठीक नहीं है बुखार है और हाथ पैर में दर्द हो रहा है खाना बनाने का भी मन नहीं कर रहा है लगता है आराम करूं।

अरे तो करना क्या है खाना बना कर रख दो आराम करो फिर ।काम ही क्या है घर में तुम लोगों को तो जरा सा बुखार क्या हुआ बस नखरें दिखाने लगी ।काम से जी चुराना है बस । नर्मदा जी का मन ब बहुत आहत हुआ सोचने लगी कितनी स्वार्थी दुनिया है सबको अपना ही दुख दर्द दिखता है दूसरों का नहीं।

          हार्ट के आपरेशन के पांच साल बाद दिनेश जी के घुटनों में प्राब्लम हो गई ।चलना फिरना दुश्वार हो गया अब फिर डाक्टर को दिखाया तो वहीं आपरेशन । फिलहाल आपरेशन कराया गया ।अब उनको बाथरूम  ले जाना नहलाना धुलाना सबकुछ करना पड़ता था ।हर वक्त उनके साथ एक व्यक्ति होना चाहिए । बच्चे तो बाहर थे बेटा बेटी नौकरी पर अब नर्मदा ही साथ रहेंगी।

एक घंटे टहलना टहलते समय भी कोई साथ हो ।छै महीने तक कर करके नर्मदा परेशान हो गई । फिर वही बात तुम नहीं करोगी तो कौन करेगा ।घर बाहर सबकुछ नरबदा को ही देखना । फिर भी दिनेश जी हर वक्त नर्मदा पर चिल्ला पड़ते । नर्मदा जी को कुछ हो जाता तो कहते नखरें दिखा रही है। नर्मदा को सहानुभूति के दो शब्द न बोलते बस दिनभर अपना ही दुखड़ा सुनाते रहते।

             अब नर्मदा की उम्र भी 65 की हो रही थी ऐसे ही एक दिन बाथरूम में पैर फिसला गया और नर्मदा गिर पड़ी कूल्हे की हड्डी टूट गई ‌‌‌‌‌अब

ब सबका तो नर्मदा जी ने किया अब उनका कौन करे ।     बेटा भी स्वभाव से दिनेश के ऊपर ही गया था। बात बात में वो भी झल्ला पड़ता था।अब दिनेश और नर्मदा जी जब दोनों बीमार रहने लगे तो कौन देखरेख करें तो यहां का पुश्तैनी घर बेचकर बेटे ने फरीदाबाद में फ्लैट ले लिया और वहीं पर मम्मी पापा को भी ले गया।अब कूल्हे के आपरेशन के बाद कुछ काम्पलीकेशन ऐसी आ गई कि नर्मदा जी खड़  ही न हो पाती थी । कुछ समय बाद वाकर के सहारे खड़ी होने लगी थी लेकिन किसी के सहारा देने पर । अकेले नहीं हो पाता था।

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              अब जिसने इतना कुछ किया खास तौर पर दिनेश का वो भी नर्मदा जी को नजरंदाज करते रहते थे । नर्मदा जी अकेले कमरे में पड़ी रहती थी लेकिन कोई सुनता नहीं था।जो भी मिलता खा पी लिया । बेटे को भी कई बार आवाज देती वैसे तो वो आफिस निकल जाता था जब घर में होता तो वो भी झल्ला पड़ता अब कितनी बार बाथरूम जाना होता है आपको। दिनेश जी दूसरे कमरे में बैठे बस टी वी    देखा करते थे। इतना दौड़ दौड़ कर सबके लिए करने वाली नर्मदा जी आज बेबस और लाचार पड़ी थी । पत्नी से एक बार हाल चाल भी न पूछते दिनेश जी।

       आज नर्मदा जी सोच रही थी कितनी स्वार्थी हैं ये दुनिया और ये अपने लोग हैं जिसके लिए दिन-रात काम किया।जब तक आप कर सकते हो सबके लिए तब तक ही दुनिया पूछती है नहीं तो बस यही हाल होता है ।जब आप लाचार हो जाते हैं तो अपने भी मुंह मोड़ लेते हैं ।हे भगवान उठा लो मुझको तेरी दी हुई जिंदगी से मन भर गया है अब जिआ नहीं जाता ‌। मुझको या तो इतनी हिम्मत दे दे कि मैं अपना काम खुद कर पाऊं । यही सोचते सोचते नर्मदा जी की आंख लग गई और वो सपने में देखा रही है कि दोनों पैरो पर खड़ी है और फिर से सबकी सेवा कर रही है। कितना सुखद अहसास था। लेकिन जब आंख खुली तो फिर वही बेबसी और लाचारी  थी नर्मदा जी के सामने।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

30 अप्रैल     

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