सुधीर जी और सुनीता जी के लिए आज बहुत बड़ा दिन था।जिस दिन का वे बहुत बेसब्री से कितने महीनों से इंतज़ार कर रहे थे आखिर वह दिन आज आ ही गया था। पिछले कितने महीनों की तैयारियों के बाद आज उनकी बेटी विशाखा की शादी थी। सुधीर जी और सुनीता जी के लिए आज का दिन मिश्रित भावों से भरा हुआ दिन था… मिश्रित इसलिए क्योंकि आज के दिन वे खुश भी थे, उदास भी और चिंतित भी।खुश इसलिए कि आज उनकी लाड़ली बेटी जीवन की एक नई डगर पर चलने जा रही थी और उदास इसलिए कि उन्हें अपनी लाड़ली बेटी के बिछड़ने का गम था और चिंतित इसलिए कि अन्य माता-पिता की तरह उन्हें भी चिंता थी कि आज के दिन उनकी बेटी का विवाह अच्छी तरह से निपट जाए।
सुधीर जी एक सरकारी कार्यालय में अफसर थे और सुनीता जी एक सरकारी स्कूल में अध्यापिका थी। उनके दो बच्चे थे बेटी विशाखा और बेटा सुधांशु। दोनों ने अपने बच्चों को बहुत ही अच्छे संस्कारों से पाला था।विशाखा एम बी ए कर एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत थी और बेटा सुधांशु इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष में था।विशाखा के लिए अखिलेश का चुनाव विशाखा के चाचा जी ने किया था जो कि उन्हीं के किसी जानकार का बेटा था।
सुधीर जी और सुनीता जी को अखिलेश हर मायने में अपनी बेटी के लिए अच्छा वर लगा था।अखिलेश के पिता अविनाश जी व्यापारी थे और माताजी गृहिणी।अखिलेश की बड़ी बहन थी जो दूसरे शहर में ब्याही हुई थी और अखिलेश खुद भी एक मल्टीनेशनल कंपनी में ही काम करता था।दोनों बच्चों ने भी एक दूसरे को पसंद किया था और दोनों की सहमति से ही रिश्ता पक्का किया गया था।
आज से लगभग 4 महीने पहले दोनों की सगाई हो चुकी थी और इन 4 महीनों में दोनों ही आपस में मिल भी चुके थे और फोन पर बातें भी करते रहते थे। इन 4 महीनों में सुनीता जी और उनकी देवरानी माला ने मिलकर शादी की सारी तैयारियां की थी और आखिर आज के दिन ऐसा लग रहा था जैसे उनका इम्तिहान ही हो।
खैर दो दिन पहले ही माता की चौंकी रखी गई थी और एक दिन पहले लेडीज़ संगीत का कार्यक्रम था।कुछ रिश्तेदार तो परसों से ही आ गए थे और कुछ आज सुबह ही पहुंचे थे ।आज सुबह बाकी सारी रस्में भी निभाई जा चुकी थी।विशाखा जब तैयार होकर शाम को पार्लर से आई तो सुधीर जी की आंखों में आंसू आ गए।
बेटी को दुल्हन के रूप में देखकर उन्हें यकीन ही नहीं हुआ कि उनकी गोद में खेलने वाली उनकी लाड़ो रानी आज दुल्हन के रूप में उनके सामने खड़ी है।विशाखा दुल्हन बन बहुत सुंदर लग रही थी।सुनीता जी ने आगे बढ़कर उसकी नज़र उतारी और सब बरात आने का इंतज़ार करने लगे।
कुछ समय बाद बारात आई तो बारातियों के स्वागत के लिए खड़े हुए सुधीर जी और उनके घर वालों ने आगे बढ़कर बारात का स्वागत किया।सुधीर जी ने अपने सामर्थ्य अनुसार बारात के स्वागत की बहुत अच्छी तैयारी की थी।सजावट और खाने-पीने की व्यवस्था बहुत बढ़िया थी…कोई चाहकर भी उसमें से कमी नहीं निकाल सकता था।
खैर सुनीता जी ने आगे बढ़कर अखिलेश की आरती उतारी और सब को सम्मान पूर्वक अंदर बिठाया। सुधीर जी खुद ही सारे बारातियों से जाकर खाने पीने का आग्रह कर रहे थे और यह भी ध्यान रख रहे थे कि किसी को कोई कमी महसूस ना हो।
“सारा इंतज़ाम ठीक तो है ना अविनाश जी”, सुधीर जी ने अखिलेश के पिता यानी अपने समधी जी से पूछा।
“हां हां..बहुत बढ़िया..आखिर आपकी तरफ से कोई कमी हो सकती है सुधीर जी,आप निश्चिंत रहिए”, अविनाश जी बोले।
अपने समधी जी से यह बात सुनकर सुधीर जी थोड़े निश्चिंत से हो गए और उनके चेहरे पर जो थोड़ी बहुत चिंता की लकीरें थी वह भी मिट गई।
“सुधीर जी, यह कौन से खानसामा से खाना बनवाया है आपने…बिल्कुल भी स्वाद नहीं है इसमें”, अखिलेश के फूफाजी ने कुछ देर बाद सुधीर जी को कहा।
सुधीर जी के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई ..उन्होंने आर उनके भाई ने खुद ही खाने की सारी व्यवस्था देखी थी और खाना चखा भी था…उन्हें तो खाने में कोई कमी नज़र नहीं आई थी लेकिन फिर फूफा जी ऐसे क्यों बोल रहे थे सुधीर जी को समझ नहीं आ रहा था।
सुधीर जी ने उनसे माफी मांगते हुए कहा,” माफ़ कीजिएगा, अगर आपको खाना पसंद नहीं आया..आप बताएं आपको किसी और चीज़ की ज़रूरत है तो मैं अभी आपके लिए मंगवा देता हूं”।
“अरे, ऐसी बात नहीं है सुधीर जी, हमें कुछ नहीं चाहिए मैं तो बस वैसे ही आपको कह रहा था”, अखिलेश के फूफा जी बोले।
खैर कुछ देर बाद मिलनी की रस्म हुई और सुधीर जी की तरफ से वर पक्ष के लोगों को तोहफे दिए गए।
“यह क्या सुधीर जी ,यह कंबल तो बहुत ही हल्का सा लग रहा है जो आपने हमें दिया है”, अखिलेश के मामा जी ने कहा… “बाजार में तो इससे भी बढ़िया बढ़िया कंबल मिलते हैं..पिछले महीने मेरे ससुराल में एक और शादी थी.. क्या तोहफे दिए थे उन्होंने..देख कर जी खुश हो गया था”, उनकी बातें सुन सुधीर जी के माथे पर पसीने की बूंदें छलक आई। उन्हें लगा जैसे भरे बाज़ार में किसी ने उन्हें बहुत अपमानित कर दिया हो।
आज तक उन्होंने कभी भी कोई ऊपर की कमाई नहीं की थी ।हमेशा ईमानदारी और निष्ठा से ही अपनी नौकरी की थी और जितना बन पड़ा था अपने सामर्थ्य से ही सारे तोहफे खरीदे गए थे और सच मायने में तोहफे बहुत अच्छे और अच्छी क्वालिटी के थे… फिर भी ना जाने क्यों वर पक्ष के लोगों को यह तोहफे पसंद नहीं आए..ऐसा सोचकर सुधीर जी परेशानी में पड़ गए।
खैर जयमाला की रस्म हुई… सुधीर जी का चेहरा देखकर विशाखा को थोड़ा सा शक हुआ लेकिन बेटी को कुछ शक ना हो इसलिए सुधीर जी ने अपने चेहरे पर नकली मुस्कान का आवरण ओढ़ लिया और तो और पत्नी सुनीता और अपने भाई भाभी से भी कुछ नहीं कहा।
फेरों के समय भी ऐसी छुटपुट बातें हुई। सुधीर जी की परेशानी बढ़ रही थी उन्हें लग रहा था कि बेटी आराम से विदा हो जाए पर और अगर वहां जाकर बेटी को किसी ने ताने दिए तो वह अपना अपमान तो सह लेंगे लेकिन बेटी का अपमान कोई करे वह कैसे सह पाएंगे और खुद विशाखा भी उनका अपमान कैसे सहेगी..यही सोच सोच कर सुधीर जी चिंतित हुए जा रहे थे।एक तरफ से बेटी की विदाई का समय भी आ गया था…भावुकता और चिंता में उनकी परेशानी देखने वाली थी।
सुधीर जी हाथ जोड़कर अपने समधियों के सामने खड़े हो गए। अविनाश जी ने आगे बढ़कर उन्हें गले लगाया और सब को संबोधित करते हुए बोले,”आज मैं आप सब से एक बात कहना चाहता हूं…सुधीर जी और उनके परिवार ने हमारी आवभगत में कोई कमी नहीं छोड़ी।मैंने आज तक इतने आदर पूर्वक और सम्मान से बरात का स्वागत करते हुए किसी को भी नहीं देखा।आज मेरा मन गर्व से भर उठा है कि मेरे समधी ऐसे हैं पर साथ ही साथ मैंने थोड़ी-थोड़ी छुटपुट बातें भी सुनी है जो कि सुधीर जी को उनके इंतज़ाम और तोहफों के बारे में सुनाई गई हैं।
मुझसे कुछ छुपा नहीं लेकिन..मैं पूछना चाहता हूं कि क्या एक बेटी का पिता कभी अपनी तरफ से किसी भी तरह की कोई कमी रखने की कोशिश करेगा और अगर कहीं कोई कमी रह भी जाती है तो वर पक्ष के लोगों को यह हक किसने दिया है कि वह वधू पक्ष के लोगों का अपमान करें।क्या वर पक्ष की यह ज़िम्मेदारी नहीं बनती कि जब रिश्ता जुड़ गया है तो दोनों पक्ष एक दूसरे की कमियों और खूबियों को अपनाएं और दिल से यह रिश्ता निभाएं।
आज मैं सुधीर जी की दिल से तारीफ करता हूं कि उनके संस्कार बहुत अच्छे हैं और मैं यह बात भलीभांति समझ गया हूं कि मेरी बहू विशाखा ने भी अपने पिता से ही वैसे ही संस्कार पाए होंगे। इतनी बातें सुनने के बाद भी सिर्फ एक बेटी के पिता होने के नाते वह कुछ बोल नहीं पाए। लेकिन मैं आज दिल से सुधीर जी को अपनी आवभगत के लिए और अपनी संस्कारी बेटी देने के लिए दिल से शुक्रिया अदा करना चाहता हूं” और उन्होंने आगे बढ़कर सुधीर जी को फिर से गले लगा लिया।
सुधीर जी की आंखों में आंसू आ गए। वहां बैठे सभी लोग भावुकता से भर गए और और सबकी आंखें आंसुओं से भीग गई।सुनीता जी को तो कुछ भी नहीं पता था और ना ही सुधीर जी के भाई भाभी को भी..वे लोग हैरान परेशान से अविनाश जी की और सुधीर जी की और देख रहे थे। विशाखा और अखिलेश भी मन ही मन अविनाश जी की तारीफ कर रहे थे और सुधीर जी के धैर्य की प्रशंसा और वो रिश्तेदार जिन्होंने सुधीर जी को बातें सुनाई थी और जिन्हें अविनाश जी ने किसी ना किसी बहाने से अभी तक रोक रखा था चुपचाप सिर झुकाए खड़े थे और सच में इस बात को सोच रहे थे कि किस ने वर पक्ष के लोगों को यह अधिकार दिया है कि वधू पक्ष के लोगों का अपमान किया जाए।
सुधीर जी अपनी बेटी को इतने अच्छे घर में ब्याहने से बहुत खुश थे और अब उनकी चिंता की सारी लकीरें दूर हो गई थी।उनके मुख मंडल पर एक नई आभा आ गई थी और संतुष्टि झलक रही थी कि उनकी बेटी सही हाथों में जा रही है।
#स्वरचित
#अपमान
गीतू महाजन।
लड़के वाले ये क्यों भुल जाते है की एक बेटी का पिता कभी भी अपनी तरफ से विवाह में कोई कमी नही रखता है बारातियों का क्या है उनको पता ही नही होता की बेटी के पिता को कितनी मुश्किल से सारी तैयारी करनी पड़ती है उनको तो बस कमी निकलनी होती है जब संबंध ठीक हो जाता है तो दोनो की इज्जत बराबर होनी चाहिए