क्या माता-पिता का दिल भी पत्थर हो सकता है। – गीतू महाजन : Moral Stories in Hindi

घर लौटने पर आज फिर राजेश को घर का वातावरण थोड़ा बोझिल लगा।ऐसा लगा जैसा अजीब सा सन्नाटा पसरा हो।बाहर बरामदे में भैया के बच्चों के साथ उसकी बेटी रिया खेलती नज़र नहीं आई।भैया के बच्चे आशु और अवनी उसे देखते ही उसकी तरफ लपके और साथ ही अपने ननिहाल से आए खिलौनों को दिखाने लगे।

पल भर में राजेश को घर का ऐसा वातावरण और रिया का नज़र ना आना समझ आ गया।बच्चों को पुचकारकर कर वह अपने कमरे में आया तो देखा रिया ड्राइंग बनाने में व्यस्त थी पर चेहरे पर साफ नज़र आ रहा था कि कुछ देर पहले ही रो चुकी थी।

ज़ाहिर था पत्नी प्रज्ञा ने ही उसे डांटा होगा और डांट का कारण भी राजेश को साफ पता था पर मन ही मन वह प्रार्थना कर रहा था कि जो वह सोच रहा है वह कारण ना हो।

बेटी के सिर पर हाथ फेर वह जूते उतार कपड़े बदल हाथ मुंह धोने चला गया..पत्नी की शिकायत भरी आंखें लगातार उसका पीछा कर रही थी।आखिर वह शिकायत करे भी तो किस से।राजेश सब जानता था पर हर बार वह पत्नी को ही समझाने की कोशिश करता..आखिर क्या था इस सब के पीछे।

राजेश दिल्ली शहर में अपने माता-पिता और बड़े भैया भाभी के साथ संयुक्त परिवार में रहता था।घर की माली हालत काफी अच्छी थी पिता मनोहर जी का अच्छा खासा व्यापार था और बड़े भैया आशीष उन्हीं के साथ व्यापार करते थे।राजेश पढ़ाई में अच्छा था इसीलिए शुरू से ही नौकरी की तरफ उसका रुझान था।

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एमबीए करने के बाद मल्टीनेशनल कंपनी में उसको अच्छी प्लेसमेंट मिल गई थी।आशीष का विवाह एक व्यापारी घर में ही हुआ था जो कि अच्छा खासा समृद्ध परिवार था।भाभी अमृता दिल की अच्छी थी और घर में सबसे  बनाकर रखती थी।मां बाबूजी इतने अच्छे और समृद्ध घर की लड़की को बहू बनाकर बहुत खुश थे और ऊपर से बहू का व्यवहार भी बहुत अच्छा था।

अब उन्हें राजेश के ब्याह की चिंता थी पर राजेश ने उन्हें एक दिन यह कहकर चौंका दिया कि वह कॉलेज में अपने साथ पढ़ने वाली लड़की प्रज्ञा से विवाह करना चाहता था।घर वालों के लिए यह बहुत अप्रत्याशित था क्योंकि राजेश ने इतने सालों में कभी भी प्रज्ञा के बारे में घर में किसी से बात नहीं की थी।

मां रत्ना जी के पूछने पर उसने प्रज्ञा के बारे में बताया तो पता चला कि वो एक निम्न मध्यवर्गीय घर की लड़की थी जो कि पढ़ाई में अच्छी होने पर स्कॉलरशिप से पढ़ती आई थी और अब एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर रही थी। उसके पिता एक फैक्ट्री में काम करते थे और उसकी मां घर से सिलाई का काम करती थी और छोटा भाई अभी पढ़ाई कर रहा था। 

राजेश की बात सुनकर मनोहर जी और रत्ना जी ने आपस में एक दूसरे की तरफ देखा और पति का इशारा पाते ही रत्ना जी ने बेटे को समझाने की कोशिश की,”देख बेटा, रिश्ता हमेशा बराबर वालों में करना चाहिए..वह लड़की हमारे घर में बिल्कुल फिट नहीं बैठ पाएगी।समाज में भी रहना पड़ता है और तू तो जानता ही है कि हमारा कैसे लोगों के साथ उठना बैठना है”।

“मां, जब हमारे घर में आएगी तो हमारी हो जाएगी और समाज का इससे क्या लेना देना कि वह किस घर से आती है..बाकी प्रज्ञा बहुत समझदार है आपको कभी शिकायत का मौका नहीं देगी और धीरे-धीरे सब सीख जाएगी”।

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“देख बेटा,तुम्हारी भाभी कितने समृद्ध खानदान से हैं तो घर की छोटी बहू निम्न मध्यमवर्गीय घर से लाना.. मुझे कुछ ठीक नहीं लगा”,मां ने अगला तर्क रखा। 

“मां, मैं तो फैसला कर चुका हूं  कि अगर मैं शादी करूंगा तो प्रज्ञा से ही और समृद्ध और मध्यमवर्गीय घर के होने की बात कहां से आ गई।आपको तो एक अच्छी बहू की कामना है ना और मैं वादा करता हूं आपसे कि प्रज्ञा बहुत अच्छी बहू साबित होगी और मैं इसकी ज़िम्मेदारी भी लेता हूं”। 

अगले कुछ दिनों में भी मनोहर जी और रत्ना जी ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की.. आशीष और अमृता से भी कहलवाया पर राजेश मानने के लिए तैयार नहीं हुआ।हार कर उन्हें प्रज्ञा के घर रिश्ता लेकर जाना पड़ा और फिर एक दिन प्रज्ञा उनके घर बहू बनकर आ गई।प्रज्ञा अपनी तरफ से खूब कोशिश करती अपने ससुराल में सबका मन जीतने की।

जेठानी अमृता का व्यवहार उसके प्रति अच्छा था।वह उनके दोनों बच्चों को भी खूब प्यार करती।धीरे-धीरे प्रज्ञा का मन भी घर में रम गया था। रत्ना जी प्रत्यक्ष रूप से तो कुछ नहीं कहती थी पर फिर भी प्रज्ञा से उखड़ी उखड़ी रहती।राजेश समझ नहीं पाता कि मां पिताजी का दिल कैसे जीत जाए। 

घर में कोई दावत होती या रिश्तेदारी में जाना होता तो मां भाभी को ही आगे करती और सबसे मिलाती।नई नवेली बहू प्रज्ञा सब के पीछे  सिर झुका कर खड़ी रहती पर मां कभी उसे सबसे मिलाने की चेष्टा ना करती।

धीरे-धीरे प्रज्ञा भी अपने में सिमटती जा रही थी। कभी कोई दिन त्यौहार आता तो भाभी के घर से तोहफों का अंबार लग जाता..मां फूली न समाती लेकिन प्रज्ञा के घर से उन्हें ऐसी कोई उम्मीद नहीं होती और ना ही वह उम्मीद पूरी कर पाते इसीलिए त्योहारों के दिनों में प्रज्ञा बहुत गुमसुम रहती।

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राजेश लाख कोशिश करता पर फिर भी उसकी मुस्कुराहट वापस ना लिया पाता।हां..भैया भाभी बिल्कुल सामान्य रहते।भाई भाभी के मायके वाले भी प्रज्ञा से खूब प्यार से मिलते पर फिर भी प्रज्ञा हीन भावना की शिकार होती जा रही थी या यूं कहो कि उसके सास ससुर उसे हीन भावना का शिकार महसूस करवा रहे थे। 

समय अपनी गति से बीत रहा था। राजेश और प्रज्ञा के एक बेटी हुई जिसका नाम रिया रखा गया।प्रज्ञा का अब सारा दिन उसकी देखभाल में निकल जाता।अब उसने अपनी स्कूल की नौकरी भी छोड़ दी थी ताकि बेटी को समय दे पाए।

राजेश को लगता कि पोती के आने से अब उसके माता-पिता का मन थोड़ा बदल जाएगा पर वह कहां जानता था कि उसके माता-पिता इतने समृद्ध होने के बावजूद लालच के पर्दे के पीछे पत्थर दिल हो चुके थे।एक मासूम बच्ची भी उनके पत्थर दिल को नहीं पिघला सकी थी।

रिया नन्हे नन्हे कदमों से डगमगाती हुई जब दादी का पल्लू पकड़ती तो दादी कभी भी पुचकार कर उसे गोद में ना उठाती।यह सब देखकर प्रज्ञा के दिल में एक हूक सी उठती और वह सोचती क्या चंद तोहफे एक दादी के लिए उसकी पोती के प्यार से बढ़कर हैं..

घर में हर सुख सुविधा थी।प्रज्ञा को वैसे किसी बात की कमी नहीं थी.. ना ही कोई रोक-टोक और ना हीं कहीं आने जाने पर पाबंदी पर फिर भी जो प्यार उसे और उसकी बच्ची को मिलना चाहिए था वह कहीं नहीं था। 

भैया भाभी ज़रूर रिया को गोद में उठाकर घूमते पर दादी दादी  के लिए तो दौलत की चमक के आगे पोती की आंखों की चमक फीकी पड़ गई थी।रिया भी अब बड़ी हो रही थी धीरे-धीरे शायद उसे भी समझ आ रहा था

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इसीलिए वह अब दादू दादी के पास नहीं जाती।घर में कभी कोई आए तब भी वह मां या ताई के साथ ही चिपक के बैठती।राजेश ने इतने सालों में कभी अपने माता-पिता को अपनी पत्नी और बेटी को प्यार से बात करते नहीं देखा था।वह कभी समझ ही नहीं पाया कि बाहर इतना उदार दिखने वाले उसके माता-पिता इतनी संकीर्ण विचार के हैं कि अपनी बहू और पोती से ही दूर हो चुके हैं। 

दिवाली आने वाली थी और राजेश जानता था कि जब भी ऐसे त्यौहार आते तो अमृता भाभी के घर से खूब सामान आता और तब उसकी मां प्रज्ञा को ताने देने से बाज़ नहीं आती

पर आज ऐसा क्या हुआ कि प्रज्ञा ने रिया को बाहर बच्चों के साथ खेलने भी नहीं भेजा और अंदर अपने कमरे में रोती हुए बच्ची को ड्राइंग बुक पकड़ा दी थी। कुछ देर बाद रिया उसे अपनी ड्राइंग दिखाने आई और बोली,”पापा, क्या मेरे मामा और नानू गंदे हैं”?

“क्यों, ऐसा क्यों पूछ रही हो बेटा”? 

“दादी कह रही थी.. कभी अपने नानू और मामा को भी बोला कर कोई ढंग की चीज़ लाने के लिए हमेशा आशु भैया और अवनी दीदी के नानी के घर से आए खिलौनों से खेलती रहती है””। 

“पापा, क्या मैं नानू को फोन कर कर बोल दूं कि इस बार मुझे एक बड़ा सा डॉल हाउस लाकर दें ताकि मैं भी अवनी दीदी के साथ डॉल हाउस खेल सकूं और दादी को दिखा दूं कि मेरे नानू कितने अच्छे हैं..मुझे कितना प्यार करते हैं।जब भी मैं उनके घर जाती हूं तो घोड़ा बन मुझे कितना घूमाते हैं और मामू तो हमेशा मेरी मनपसंद चीज़ें लेकर आता है.. फिर दादी ऐसा क्यों बोलती है.. बताओ ना पापा”। 

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छोटी से बच्ची के यह सवाल राजेश को अंदर तक हिला गए थे।पत्नी और बच्ची का तिरस्कार तो वह बड़े देर से सहता आया था और शायद  नज़र अंदाज़ भी कर रहा था पर इस बार जो मां ने किया था वह ठीक नहीं था।एक छोटी सी बच्ची के निर्मल मन में ऐसी बातें बिठाना अच्छी बात नहीं थी।क्या कमी थी इस घर में सब कुछ तो था..

पैसा, शोहरत ,समाज में इज़्ज़त..बेटों बहुओं के बीच में किसी बात को लेकर झगड़ा नहीं। सारी रिश्तेदारी में भी नाम था फिर किस बात की चाहत पूरा करना चाहते थी उसके माता-पिता.. क्या उसके ससुराल के कुछ तोहफे उनके अहम् को संतुष्टि पहुंचा सकते थे।

क्या करेंगे वह इन तोहफों को लेकर भगवान ने जो पोती के रूप में उन्हें तोहफा दिया है उसके आगे उन बाज़ार से लाए हुए सामान‌ की क्या कीमत हो सकती है भला।

 राजेश जानता था कि वह यह सब बातें अपने पत्थर दिल मां-बाप को नहीं समझा सकता।हां..पत्थर दिल.. उनके दिल सच में पत्थर के हो चुके थे क्योंकि उनके दिलों पर लालच की परत चढ़ चुकी थी या यूं कहो कि बस अपने झूठे अहम् के लिए वह यह सब कर रहे थे।

राजेश अब मन ही मन कुछ फैसला कर चुका था कुछ दिन बीते तो राजेश ने घर में कह दिया कि वह अपनी बीवी और बच्चे के साथ अलग हो रहा है।उसने किराए पर एक फ्लैट  ले लिया है और जल्दी अपना घर भी ले लेगा।

उसके इस फैसले से मनोहर जी और रत्ना जी को लगा कि उनके संयुक्त परिवार की जो मिसाल दी जाती है वह तो अब खत्म हो जाएगी इसलिए बेटे को समझाने के लिए प्रयत्न करने लगे ।

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राजेश इस बार ठान चुका था कि वह अपने माता-पिता  की नफ़रत को अपनी बेटी के मासूम दिल पर असर नहीं करने देगा इसलिए कुछ दिनों में वह प्रज्ञा और रिया के साथ अपने फ्लैट में शिफ्ट हो गया।

इस बात को कई साल बीत चुके हैं। राजेश ने अपना खुद का एक बड़ा सा फ्लैट खरीद लिया है।रिया अपने माता-पिता के साथ दादू दादी से मिलने आती रहती है। अब वह बड़ी और समझदार हो चुकी है। भैया भाभी का प्यार वैसे ही बना हुआ है।

रत्ना जी और मनोहर जी की अब उम्र हो चली है।अपने किए पर उन्हें पछतावा है.. अपने लालच की वजह से जो उन्होंने अपनी बहू और पोती के तरफ अपना दिल पत्थर कर दिया था आज वही पत्थर दिल यह अफसोस करता है कि काश!! वह समय रहते संभल जाते और अपने परिवार को  टूटने से बचा लेते। 

दोस्तों, ऐसी कहानी बहुत सारे घरों में देखी जा सकती हैं जहां लालच की वजह से परिवारों को टूटते देखा गया है।लालच, अहंकार, इर्ष्या को अगर पीछे रखा जाए तो दिलों को पत्थर होने से बचाया जा सकता है और इन्हीं दलों में संवेदना और भावनाओं का संचार हो सकता है। कृपया अपने विचारों से मुझे अवगत कराएं। धन्यवाद🙏

#स्वरचितएवंमौलिक 

#अप्रकाशित

गीतू महाजन, 

नई दिल्ली

#पत्थर दिल

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