मेरी पढ़ाई लखनऊ में नवयुग डिग्री कॉलेज की है। जब हम पढ़ते थे तो वहां अधिकतर प्रोफेसर्स अविवाहित थे। उनको देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता था। मुझे उनसे खूब पढ़ाई करने की प्रेरणा मिलती थी। मैंने तो सोच भी लिया था कि खूब पढूंगी और अपनी मैडम जैसी ही प्रोफेसर बनूंगी। जिंदगी बढ़ती गई और मेरी पढ़ाई पूरी हो गई। अब शादी की बारी थी लेकिन मुझे शादी में कोई रुचि नहीं थी क्योंकि मैं अपने टीचर्स को बहुत खुश देखती थी और मेरे मन में भी ये बात घर कर गई थी शादी जरूरी नहीं है। मैने अपनी मम्मी से मना कर दिया…”मुझे शादी नहीं करनी है, कभी नहीं।”
कुछ दिन तो सब सही चलता था, लेकिन फिर वही रट… शादी … शादी…शादी…. हुआ वही जिसका डर था… शादी की ज़िद।
मन करता था कि क्या करें??? कहीं भाग जाएं। लेकिन भारतीय परिवेश में ये संभव भी नहीं था।
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें??
घर में पूछा जाता अगर कोई पसंद हो तो बता दो। पर ऐसा कुछ था ही नहीं तो क्या बताते।
दिन बीतते गए और मेरी ज़िद भी धीरे धीरे मेरे घरवालों के आगे दम तोड़ने लगी।
आखिर वो दिन आया जब मैंने अपने जीवन का सबसे गलत फैसला अपनी मां के कहने पर ले लिया। मेरी मां की भी कोई गलती नहीं क्योंकि रिश्ता उनके भाई यानि मेरे मामा ने बताया तो मेरी मां ने उन पर अंधविश्वास किया और मेरी एक भी न सुनी।
और मेरी शादी कर दी गई। मां अपने फर्ज से मुक्त हो गईं और मैं फर्ज में बंध गई।
वर्तमान समय में मैं जी तो रही हूं लेकिन सिर्फ अपनी मां की खुशी के कारण। मैं सपने में भी अपनी मां को कष्ट नहीं दे सकती।
पर कभी—कभी मन कचोटता है… क्यों अपने लिए ना सोचा ….अपनी मां के बारे में ही सोचा?
लेकिन फिर मन जवाब देता है.…. हम जिससे प्यार करते हैं उसके लिए कुछ भी करते हैं जैसे मैंने अपनी मां के लिए किया।
लेकिन अगर आज कोई मुझे पूछे कि “क्या शादी जरूरी है” तो मेरा जवाब “नहीं” ही होगा क्योंकि खुशियों को पाने के लिए खुश रहना जरूरी है ना कि शादी करना?
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“खुशी बंद कमरे में भी मिल जाती है मेरे दोस्त.….
भीड़ की जरूरत नहीं होती…..
गर हौसला हो जीने का ए—मेरे दोस्त।
तो अकेले भी जिंदगी जी जाती है।।
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मैं आपसे प्रश्न करना चाहती हूं कि खुशियां पाने के लिए क्या शादी करना जरूरी है?