कुटील चाल (भाग-2) – अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi

भरे हुए मन से अरविंद अपने घर पहुंचता है, वह गुस्से से माँ की तऱफ नफ़रत भरी निगाह से देख रहा था, उसने ऑफिस से घर आकर शाम की चाय भी नहीं पी,अनमने ढंग से खाना खाकर अरविंद एक पलँग पर लेट गया, वह परेशान सा एक टक कमरे की छत को देख रहा था, उसे परेशान देख कर उसकी माँ उसके पास आकर बोली क्या हुआ बेटा, आज बहुत परेशान हो, ऑफिस में कुछ हुआ क्या?

अरविंद ने चिढ़कर माँ से कहा,  आपकी जवानी कि भूल का प्रायश्चित अब मुझे करना पड़ेगा, सच बताइए आपके और उस धीरेन्द्र पाटिल नेता के बीच क्या संबंध था।  अरविंद की इतनी ओछी बात सुनकर सुलक्षणा ने गुस्से से अरविंद को एक झापड़ रसीद दिया और कहा कि इतनी बदतमीजी से बात करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई।

सुलक्षणा क्षोभ से फफक कर रो पड़ी, और भास्कर राव त्रिवेदी जी के साथ उनके कमरे में चली गई, अपनी पत्नी की बात सुनकर त्रिवेदी जी को भी बेटे अरविंद पर बहुत क्रोध आया, परन्तु यह सोच कर कि इस विषय में वो सुबह अरविंद से बात करेंगे, दोनों बिस्तर पर लेट जाते है, दुख के कारण उनकी नींद गायब थी , इधर अरविंद भी गुस्से से रात भर सो नहीं पाया।

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सुबह अरविंद ऑफिस जाने के लिए निकला तो माँ को हिदायत देकर बोला कि, मैंने आपसे कल जो सवाल किया था, उसका जवाब मुझे जब तक नहीं मिलता मेरा यहां रहना सही नहीं है, मै अब अपने सरकारी आवास में शिफ्ट हो रहा हूं, यह कहकर तेज कदमों से अपना बैग लेकर घर से निकल गया , त्रिवेदी जी और सुलक्षणा भरी आँखों से अपने लाडले बेटे में हुए बदलाव को देख रहे थे।

धीरेन्द्र पाटिल की चली “कुटिल चाल” ने भास्कर राव त्रिवेदी जी के हंसते खेलते घर में चुटकी में आग लगा दी थी।

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      शाम को जब अरविंद कि कार आती दिखी, तो माँ को उम्मीद लगी की शायद बेटे का गुस्सा शांत हो गया हो, इसलिए लपकर दरवाजे पर आयी, तो देखा कि दरवाजे पर अरविंद का अधीनस्थ, अरविंद द्वारा मंगाए गए सामान की लिस्ट लेकर आया था, उसने कहा कि साहेब ने यह सामान मंगाया है अब वह सरकारी बंगले में शिफ्ट हो रहे है। सुलक्षणा ने उसका सारा सामान लिस्ट के हिसाब से भिजवा दिया, दो चार दिन यही सिलसिला चला।

त्रिवेदी जी एवम् सुलक्षणा की रात बेटे के बारे में ही सोच सोच कर कट रही थी, कि अरविंद को क्या हो गया है, किसने उसे भड़का दिया। एक दिन त्रिवेदी जी ने निश्चय किया कि वह और सुलक्षणा आज शाम को अरविंद से बात करके इस विषय को समाप्त करेंगे।

जब वह अरविंद से मिलने उसके सरकारी आवास गए, तो उन्हे अरविंद बदला बदला सा नज़र आता है, न तो उसने अपने माता पिता का कोई अभिवादन किया औऱ न ही उन्हें बैठने को कहा, उल्टे उनके आते ही बोल दिया, कि अगर आप कहते हो कि मै आपका बेटा हूँ, तो आपको इस बात को “डीएनए टेस्ट” में पास होकर साबित करना पड़ेगा, नहीं तो मै यही समझूंगा की मै धीरेन्द्र पाटिल का ही बेटा हूं, इतना सुनते ही त्रिवेदी जी का ख़ून खौल गया , उन्होंने भी एक हाथ अरविंद पर जड़ दिया, और कहा कि अब तक तो तू हमारा बेटा था, पर आज से तू हमारे लिए मर गया है। तुझे इसी दिन के लिए इतना पढ़ा लिखाकर बड़ा किया कि तू हमसे ही बदतमीजी से बात करेगा?

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भास्कर राव त्रिवेदी और अरविंद के इस तीखे नोंक झोंक को वहां उपस्थित एक प्रतिष्ठित मीडिया पत्रकार भी सुन रहा था, उसने अगले ही दिन ” डिप्टी कलेक्टर को अपने ही वास्तविक पिता के पिता होने पर शक ?”  हेडलाइन्स में और मिर्च मसाला लगाकर न्यूज पेपर में छाप दिया ।

जिस बात को त्रिवेदी जी और अरविंद दबाना चाह रहे थे, अब न्यूज पेपर पे छप जाने से सारे मित्रों, रिश्तेदारों एवं शुभ चिंतक लोगों के सामने उजागर हो चुकी थीं, जिससे उन दोनों कि ही अच्छी खासी किरकिरी हो रही थी, उनकी बनी बनाई इज्जत मिट्टी में मिल चुकी थी। पर इन सबसे एक ही व्यक्ति खुश था वह ‘धीरेन्द्र पाटिल”, उसने अपनी दुश्मनी का बदला बहुत अच्छे से ले लिया था।

त्रिवेदी जी और उनके बेटे अरविंद के बीच अनकही दीवार खड़ी हो चुकी थी, पहले लंच टाइम में अरविंद कम से कम एक बार माँ से फ़ोन पर हालचाल तो पूछ ही लिया करता था, अब तो वह सिलसिला भी बंद हो चुका था। भास्कर राव त्रिवेदी और सुलक्षणा अपने घर में गंभीर डिप्रेशन में जी रहे थे।

उधर अरविंद भी अपने क्वाटर में खोया खोया सा रहने लगा उसने ग़म मिटाने के लिए शराब का भी सहारा लेना शुरू कर दिया था। ऐसा लग रहा था कि उन तीनों की जिंदगी में “अमावस की काली” रात आ चुकी है, जो शायद ही कभी ख़तम हो।

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कहते हैं न कि हर अंधेरी रात कि भी एक सुनहरी सुबह होती है, त्रिवेदी जी और सुलक्षणा के जीवन में भी नया मोड़ आता है….

त्रिवेदी जी के एक मित्र थे वीरेश्वर मिश्रा जो कि उनके ही तरह पूर्व जज रह चुके थे, और लखनऊ में रहते थे, वीरेश्वर मिश्रा एक दिन त्रिवेदी जी को फ़ोन पर अपनी पुत्री अनुराधा अपने आईएएस अधिकारी के इंटरव्यू राउंड का फाइनल एग्जाम देने के लिए उनके शहर नोयडा में आने कि सूचना देते हैं ।

अगले ही दिन अनुराधा त्रिवेदी जी के यहां आ जाती है, नोयडा से लगभग 30 किलोमीटर दूर दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थान में लगभग 15 दिन की कोचिंग,त्रिवेदी जी के अनुभव और अनुराधा के तीक्ष्ण बुद्धि के कारण उसने आईएएस का इंटरव्यू राउंड भी क्लियर कर लिया। अनुराधा न केवल बुद्धिमान थी, बल्कि सुंदर व समझदार संस्कारी लड़की भी थी, इतना होने के बाद भी उसमे घमंड नाममात्र का भी नहीं था।

अगर सारी परिस्थितियां सामान्य होती तो त्रिवेदी जी निश्चित ही उसे अपने पुत्र अरविंद के लिए पसंद करते, परन्तु इस बात को उन्होंने अपने मन ही मे दबाए रखा, अनुराधा उनके यहां करीब महीना भर रही थी उसने बातों ही बातों में अरविंद की घटना भी सुलक्षणा से पूछ ली थी उसे भी इस घटना का बहुत दुख हुआ, परन्तु वह कर भी क्या सकती थी।

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एक दिन त्रिवेदी जी को वीरेश्वर मिश्रा का फ़ोन आया, और उसने उन दोनों को कुछ दिन के लिए अपने यहां रहने को बुलाया, वैसे भी त्रिवेदी जी और उनकी पत्नी को अब अपना ही घर काटने को दौड़ता था, उन्होंने बिना ज्यादा ना नुकुर किये वीरेश्वर मिश्रा के यहां जाने को हामी भर दी, अनुराधा के साथ वो दोनो भी लखनऊ के लिए निकल पड़े।

वीरेश्वर मिश्रा की पत्नी का दो वर्ष पूर्व ही निधन हो गया था, उनके बड़े से बंगले में उनके और अनुराधा के अलावा दो नौकर भी थे जो खाना बनाने से लेकर घर सारा काम किया करते थे।

वीरेश्वर मिश्रा अपने मित्र के आने से बहुत ज्यादा ही खुश थे, खाना बनाने की जिम्मेदारी सुलक्षणा और अनुराधा ने के रखी थी, वो दोनो रोज लज़ीज़ खाना खाते, दिन भर शतरंज खेलते, टेलीविज़न देखते और राजनीति की चर्चा में, मजेदार जोक्स में और पुरानी बाते करने में वक्त बहुत तेज़ी से निकल रहा था। इसके अलावा वीरेश्वर मिश्रा ने अपनी स्वर्गीय पत्नी के नाम से एक स्वयंसेवी संस्था ” ओल्ड होम्स” खोल रखी थी, जिसमें वो ऐसे वृद्धजनों को रखते थे जिनको उनके परिवार ने तिरस्कृत करके निकाल दिया हो।

त्रिवेदी जी को वीरेश्वर मिश्रा के साथ दो चार बार उस संस्था में जाने का मौका मिला, वहां रहने वाले वृद्धजनों से मिलकर त्रिवेदी जी को बहुत अपनापन का अहसास हुआ, उन्हे लगा कि हर किसी की कहानी मेरे ही जैसी है, बस उस कहानी में किरदार थोड़े अलग है, उनका अपना बेटा अरविंद भी तो सक्षम होने के बाद भी तो उन्हें नहीं पूछता तो उनमें और वहां मौजूद बाकी लोगों में क्या फर्क है।

त्रिवेदी जी के मन में अंतर्द्वंद्व चल ही रहा था, कि सुलक्षणा ने  याद दिलाया कि उन्हें आए लगभग 15 दिन हो चुके है इसलिए अब उनको अपने शहर नोयडा वापस जाना चाहिए।

त्रिवेदी जी की इच्छा तो नहीं थी, फिर भी वो दोस्त के घर कब तक रहते इसलिए उन्होंने निश्चय किया कि वो दूसरे दिन वीरेश्वर से बात करके अपने घर वापस जाने की इजाज़त मांग लेंगे।

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