कुछ तो लोग कहेंगे… – प्रियंका सक्सेना : Moral Stories in Hindi

रविवार की छुट्टी  के बाद सोमवार के दिन यूँ तो मन अलसाया रहता है लेकिन काम तो आखिर करने ही होते हैं।  गौतम के ऑफिस जाने के बाद माला जी और दीपा ने नाश्ता किया। तभी ऑटोमेटिक मशीन ने कपड़े धुलने का सिग्नल दिया। बाल्टी में कपड़े निकालकर दीपा छत पर कपड़े फैलाने चली गई और माला जी अपने रूम में आकर कुछ खोजने लगी।

थोड़ी देर बाद माला जी एक अखबार , कैंची और पेंसिल से कुछ नाप जोख कर काटने लगी। दीपा छत से आकर रसोई समेटने लगी, कामवाली  जा चुकी थी तो वह बर्तन सेट करने लगी।

इतने में दरवाज़े पर लगी कॉलबेल बजी।  दीपा ने दरवाज़ा खोला. ” अरे वाह दीदी आप! आइए। ” कहते हुए ननद गार्गी का प्यार से अभिवादन और चरण स्पर्श करते हुए स्वागत किया

दीपा की आवाज़ से माला जी भी ड्राइंग रूम  में आ गई , गार्गी को देखकर गले लगा लिया।  बोली, ” तुम्हारे आने का पता होता तो गौतम स्टेशन आ जाता तुम्हे लेने, बेटी। “

“कैसे बताती, एकदम से ही प्रोग्राम बन गया माॅ॑। ” गार्गी बोली

दीपा पानी- मिठाई देकर रसोई में चाय नाश्ता बनाने चली गई।

माॅ॑ को अकेला पाकर गार्गी माँ से धीरे से बोली, “माॅ॑, तुम इस उम्र में ड्रेस डिजाइनिंग का कोर्स करोगी!‌ सोच लो माॅ॑ तुम्हारे साथ जो स्टूडेंट्स होंगे वो तुम्हारी बेटी की उम्र से भी छोटे  होंगे। तुम्हें अटपटा नहीं लगेगा माॅ॑? मैं खुद अब सोच नहीं सकती क्लास अटेंड करने की और तुम 60 साल की होकर रेगुलर क्लास करने जाओगी! अजीब नहीं लगता तुमको?”

“गार्गी बेटा, काम सीखने की उम्र नहीं होती है! तुम्हें तो पता ही है मुझे सिलाई-कढ़ाई का शौक था जो घर-गृहस्थी के चलते छूट सा गया था।”

“हां तो घर में ही अपने शौक पूरे कर लेती।‌‌ हम लोगों की ड्रेस डिजाइन कर लेती और सिल लेती। माॅ॑, अब दिन भर फ्री तो रहती हों इस तरह काॅलेज जाकर क्यों लोगों को बातें बनाने का मौका दे रही हों?”

“सुनो तो सही गार्गी, दीपा ने मेरा वर्क देखा तो पूछा और बातों ही बातों में जब उसे पता चला कि मुझे बेहद शौक है तो उसने प्रोफेशनली सीखने के लिए मेरा एडमिशन करवा दिया और बेटा सच में मैं बहुत खुश हूॅ॑।”

“माॅ॑, लोग क्या कहेंगे? मेरी सास क्या कहेंगी कि समधन‌ पढ़ाई करने काॅलेज जाती है! कुछ तो ख्याल किया होता आपने!” रोष से गार्गी बोली, उसकी बात से अनिच्छा झलक रही थी

माला जी गार्गी की बातें सुनकर क्षणांश के लिए निःशब्द रह गई। मन में उनके चलने लगा कि कहीं इस उम्र में काॅलेज ज्वाइन कर वो स्वयं और बच्चों के लिए, अपने समधियाने के लिए जगहंसाई का पात्र तो नहीं बन जाएंगी। मन की दुविधा चेहरे पर परिलक्षित होने लगी। लोगों का छोड़ो यहां तो सगी बेटी ही माॅ॑ की भावना नहीं समझ पाई।‌

तभी दीपा जो ननद के‌ लिए चाय-नाश्ता देकर आई थी, वह नाश्ते की ट्रे टेबल पर रखते हुए बोली, “दीदी, कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का तो काम ही है कहना! भला किसी की उन्नति से लोग खुश हुए हैं कभी?

लेकिन यह सोचिए मम्मी जी के हाथ में हुनर है, उन्हें कितना शौक है यदि प्रोफेशनल ट्रेनिंग मिले‌ तो वे क्या नहीं कर सकती है! उनकी खुशी ड्रेस डिजाइनिंग में है, जानकर मैंने यह कदम उठाया है, सोचिए मम्मी जी को एक नई पहचान मिल‌ जाएगी! साथ ही अन्य स्त्रियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन जाएंगी। हम भी गर्व से कहेंगे हमारी मम्मी जी ड्रेस डिजाइनर हैं!”

अब मालाजी के मन-मस्तिष्क में छाई  दुविधा की धुंध छंट चुकी थी। उनकी बहू ने शायद मन पढ़ना सीख रखा है जो इतनी सरलता से गार्गी तक संदेश पहुंचा दिया कि बात लोगों के कहने में आकर अपना लक्ष्य बदलने की नहीं अपितु माॅ॑ के दिल की सुनकर माॅ॑ को हौंसले की उड़ान भरने के लिए बस साथ भर देने की है।

गार्गी को माॅ॑ और दीपा के बीच की आपसी समझ की प्यारी सी झलक मिल चुकी थी। वह बोली, “शायद तुम सही कह रही हों दीपा, जो बात बेटी होकर सालों से मैं नहीं समझ पाई वो तुमने चार महीने में जान ली। इसे ही कहते हैं मन का रिश्ता! तुमने माॅ॑ की अतृप्त इच्छा को जाना और उन्हें प्रेरित किया काॅलेज ज्वाइन करने के लिए….

सच माॅ॑ के मन की बात तुम ही समझ पाई हों और उसको पूरा करने का बीड़ा भी उठा लिया और मैं निरी बेवकूफ यही सोच रही थी कि लोग क्या कहेंगे? माॅ॑, हम सब तुम्हारे साथ हैं। मुझे पूरा विश्वास है आप पर माॅ॑ कि आप एक दिन भारत में ड्रेस डिजाइनिंग में छा जाओगी। मेरी नासमझी के लिए मुझे माफ़ कर दीजिए, आप दोनों। ” गार्गी ने भाभी और माॅ॑ के आगे हाथ ‌जोड़ते हुए कहा

माला जी ने अपनी बहू और बेटी को प्यार से गले लगा लिया। एक नई शुरुआत का शुभारंभ हो चुका है…

-प्रियंका सक्सेना 

(मौलिक व स्वरचित)

#मन_का_रिश्ता

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