कुआँ – डा. इरफाना बेगम Moral stories in hindi

बहुत ही अजीब बात है की जिस चीज़ से मैं सबसे ज़यादा ग़ुस्सा होती थी आज उसी चीज़ को अपनाया। सिर्फ अपने लिये नहीं बल्कि कई और लोंगों के लिये जिनको उसकी जरूरत थी। क्योंकि मुझे असकी जरूरत नहीं थी लेकिन उसे पाने के लिये मैने अपना अधिकार जताया। वह चीज थी एक कुआं, जिस पर अब सिर्फ मेरा अधिकार है। 

 अपने नाम और कुनबे के अधिकार के हिसाब से अधिकार माँगा। जन्म के बाद जैसे ही मुझे मेरी दादी की गोदी  में डाला गया दादी ने मेरा नामकरण कर दिया और कहा की इसको भी मेरे नाम से ही जाना जायेगा। और  इस तरह से मेरा नाम भी मेरी दादी के नाम पर हो गया   कहानी मेरी दादी की है लेकिन  नाम के आधार पर इस पर अधिकार मैंने लिया। मैने अपनी दादी को बहुत ही बचपन में खो दिया था लेकिन सुनते है वह बहुत ही समझदार महिला थी, जो सही होता उसके लिये डट कर मुकाबला करतीं। वक्त के तकाजे के हिसाब से मुझे अपने नाम को साकार करना था। 

दादी के माँ पिता के निधन के बाद जायदाद का बटवारा चल  रहा था। मकान ज़मीन और घर के सभी कागज़ निकले। पंच बंटवारे  लिए मौजूद थे। शरीयत के कानून के अनुसार बटवारा होना था। बेटी को सभी चीज़ों में चौथाई हिस्सा मिलना था। दादा अपने समय के हकीम थे इसलिए उनकी आय अच्छी थी सरकारी नौकरी थी। घर में किसी चीज़ की कमी नहीं थी इसलिए दादी और दादा ने साफ़ कह दिया की हमको कुछ भी नहीं चाहिए। भाई को ज़यादा ज़रुरत है उनके बच्चे भी छोटे है तो पूरी संपत्ति भाई को दे दी जाये। किसी को कोई आपत्ति नहीं थी। क्योंकि बंटवारा दोनो भाई बहन के बीच कानून के आधार पर हो रहा था। अब तो और भी कोई गुंजाइश नहीं थी जब दादी ने सब कुछ भाई के नाम पर दे दिया। 

 

दादी के मुंशी जी बडे ही दूरदर्शी थे उन्होने कहा बिटिया भले ही आज तुम्हे कुछ जरूरत हो मै दुआ करूंगा कि तुम हमेशा इतनी ही सम्पन्न रहो लेकिन कागजात से अपना नाम मत हटवाओ। दादा जी को मुंशी जी का सुझाव पसन्द गया उन्होने कहा कि दादी के भाई इस सम्पत्ति को प्रयोग करें उसमें से कुछ भी नहीं लेंगे लेकिन दादी के भाई बिना इजाजत के  इसे बेच नहीं सकते। इस तरह पर कागजों पर दादी का नाम बना रह गया। 

 

गांव के उस क्षेत्र में लोगों ने बसना शुरू कर दिया। वहां पर पानी की दिक्कत काफी होती थी। पानी के लिये महिलाओं को बच्चों और पुरूषों का इंतेजार करना पडता था इसलिये सबमें विचार हुआ कि अगर इस तरफ भी एक कुआं हो तो औरतें भी किसी भी वक्त निकलकर पानी ले सकती थी। अब सवाल हुआ कि इसके लिये पैसा और जमीन कहां से आयेगा। दादी और उनके भाई की दूर की रिश्तेदार ने कहा कि मैने कमरबन्द बुन कर कुछ रूपया बचाया है उससे सिर्फ कुआं खुद सकता है जिससे पानी मिलने लगे लेकिन जगत वगैरह नहीं बन पायेगी। कुये की खुदाई के लिये और जरूरत के लायक बनाने के लिये पैसों की व्यवस्था तो हो गई थी लेकिन अब सवाल उठा कि यह कुआं खोदा कहां जाये। दादी के भाई ने कहां कि हमारी जमीन पूरे इलाके में बीच में पडती है इसलिये यहां पर कुआं खोदा जा सकता है। और इस तरह से कुयें को जमीन भी मिल गई और कुआं खुद गया जिससे लोगों को पानी की किल्लत से राहत मिली। 

वक्त अपनी गति से गुजर रहा था उस सम्पत्ति का जिक्र कहीं भी नहीं रहा था। दादी ने अपने बच्चों को अच्छा पढाया  लिखाया और उनकी नौकरियां लगते ही समय पर सबकी शादी कर दी दादी के बच्चों की जहां जहां नौकरी थी वह अपने परिवारों के साथ बस गये। पहले दादी और उसके बाद उनके भाई फिर दादा जी का भी देहान्त हो गया।

 दादी के भाई के बेटे (दादी के भतीजे) मां के जरूरत से ज्यादा लाडले होने के चक्कर में पढाई लिखाई कर पाये जिससे उनकी शादी भी देर से हुई। इस सब के बाद अचानक एक बदलाव हुआ काम करने  की जगह एश से जिन्दगी गुजारने के लिये  गाडी और नौकर रखने  के लिये दादी के भतीजे ने सम्पत्ति बेचनी शुरू कर दी। कम से कम दाम में वह जमीनें बेच रहे थे किसी की भी नहीं सुन रहे थे। जब तक दादी के बच्चों को पता चलता वह अधिकांश जायदाद बेच चुके थे। फिर बारी आई उस कुयें के पास वाली जमीन की। उसको बेचने के लिये उन्होने कुयें को बन्द करने की कोशिशें शुरू कर दीं। सभी ने मना किया लेकिन वह नहीं मान रहे थे। उनको रोका गया तो बोले कि मेरी बुआ ने सारी सम्पत्ति मेरे पिता के नाम कर दी है अब इसका मै कुछ भी करू कोई कुछ नहीं कर सकता।  

तब मझे लगा कि अब अधिकार जताने की जरूरत है। मैने गांव के पटवारी से सम्पर्क किया उन्होने बताया कि मैने भी सुना है कि आपकी दादी ने अपनी सम्पत्ति अपने भाई के लिये छोड दी थी लेकिन कागजों में क्या है वह देखना पडेगा। पटवारी जी ने बताया कि कागजों में नाम अभी भी दादी के हैं। इसलिये अगर उनका कोई वंशज इसके लिये लडाई करेगा तो उसे उसका हक मिल सकता है। दादी के बेटे यानि मेरे पिता भी अपनी मां कि तरह ही बोले जो दिया जा चुका है उसे वापिस क्यों लेना। कोई सहारा नहीं था फिर भी कागजों के आधार उस जीवन दायनी स्रोत कुये पर अपना अधिकर जताने के लिये कोर्ट में केस डाल दिया। जिस पर स्टे है। 

अब इस जीवनदायनि कुये को बचा कर उसपर सिर्फ अपना अधिकार बना कर रखना है। जिससे उसके पानी का प्रयोग सभी जरूरतमंद कर सकें। 

डा. इरफाना बेगम, नई दिल्ली

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