सब कुछ अपनी बहन पर ही लुटा देना.. हमारे बारे में सोचने की क्या जरूरत है.. जब एक दिन हम सड़क पर आ जाएंगे तब तुम्हें पता चलेगा, क्या ठेका ले रखा है उसकी हर फरमाइश पूरे करने की, भाई हो बाप नहीं, पूरे 14 साल की हो गई है, अरे… अब तो इसकी शादी के बारे में सोचो? कोई बढ़िया सा घर ढूंढो और इसे यहां से विदा करो!
पल्लवी.. बिना माता-पिता की वह बच्ची जो अपने भाई भाभी के साथ रहते हुए बड़ी हो रही थी और अपना बचपन तो भूल ही चुकी थी, 8 वर्ष की उम्र से ही उसे यह एहसास करवाया जाता रहा कि वह बहुत बड़ी हो गई है और उसे घर की सारी जिम्मेदारियां निभानी आनी चाहिए और उसकी भाभी उसे घर के सारे काम करवाती, भाई को अपनी बहन का बचपन छिनते हुए देखकर बहुत दर्द होता किंतु वह मजबूर था कुछ नहीं कर पाता,
कभी-कभी सोचता क्या मेरी बहन हमेशा बदकिस्मत रहेगी, क्या उसे सारी जिंदगी इसी तरह गुजारनी पड़ेगी, काश.. कोई आए जो मेरी बहन को भी किस्मत वाली बना दे, मैं इसके लिए कोई राजकुमार तो नहीं ढूंढ सकता किंतु कोई ऐसा इंसान जो मेरी बहन को सारी खुशियां दे सके जल्दी ही मिल जाए, और एक दिन पल्लवी किस्मत वाली बन ही गई जब उसके भाई ने उसका रिश्ता एक बहुत उच्च घराने में तय कर दिया,
14 वर्ष की पल्लवी का वर उम्र में 16 वर्ष बड़ा था और पहले उसकी दो पत्नियों का स्वर्गवास भी हो गया था, उसकी 3 और 5 साल की दो बेटियां थी जिनकी वजह से उसे शादी की जरूरत पड़ी, भाई की अंतरात्मा ऐसे घर में अपनी बहन को देने में कचोट रही थी
किंतु रविंद्र का रहन-सहन, उच्च खानदान और साधन संपन्न घर को देखकर उसने सोचा यहां मेरी बहन कौन से सुख में रह रही है कम से कम वहां उसे दोनों समय भरपेट भोजन मिलेगा अच्छे कपड़े मिलेंगे और समाज में इज्जत मिलेगी, और बात बात पर ताने तो नहीं सुनाई देंगे, यह सोचकर उसने उसकी शादी रविंद्र से कर दी, 14 वर्ष की बच्ची जिसे खुद एक मां की जरूरत थी वह ससुराल जाते ही दो बच्चियों की मां बन गई,
वह उनका पूरा ध्यान रखती उनके साथ समय बिताते बताते उसे समय का पता ही नहीं चलता, रविंद्र और उनकी मां यह देखकर बहुत प्रसन्न थे घर में नौकर चाकर किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं थी, पल्लवी को तो अच्छा खाना अच्छा पहनना और अच्छा घर परिवार देखकर ही सुकून मिल रहा था, वह स्वयं को बहुत किस्मत वाली समझ रही थी,
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पल्लवी ने शादी के 10 वर्ष पश्चात एक बेटे को जन्म दिया जिससे पल्लवी की इज्जत उस घर में और बढ़ गई, दोनों बहनों के लिए भी भाई का आना मानो संपूर्ण खुशियां मिल जाना था, बेटे के जन्म के 15 वर्ष पश्चात रविंद्र बाबू एक एक्सीडेंट में स्वर्गवासी हो गए ,पल्लवी ने अपनी दोनों बेटियों की शादी भी बहुत अच्छे घरों में कर दी, शादी के बाद में पीहर से कभी ढंग से बुलावा भी नहीं आया
अतः पल्लवी का संपर्क धीरे-धीरे खत्म हो चला था, बेटियां हर सुख दुख में अपनी मां के साथ होती किंतु बेटा अंश दादी और पूरे परिवार के लाड प्यार के कारण ऐसा बिगड़ा कि उसके सुधरने की उम्मीदें नजर नहीं आती, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसकी मां बीमार है या अकेली है या उसकी दो बड़ी बहनें भी हैं
और उसे एक भाई का फर्ज निभाना है, आजकल तो वह रात को शराब के नशे में चूर होकर आने लगा, पल्लवी के मना करने पर उससे बदसलूकी करने से नहीं चूकता, एक दिन अपने दोस्तों के बहकावे में आकर धोखे से सारी जायदाद पर पल्लवी के हस्ताक्षर करवा लिए और पल्लवी को घर से निकाल दिया, पल्लवी अपने बेटे के सामने ही हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगी…
बेटा अब मैं इस उम्र में कहां जाऊंगी किंतु लाड प्यार में बिगड़े अंश को अपनी मां के ऊपर तनिक दया ना आई, जिस बेटे की वजह से वह किस्मतवाली कहलाई आज उसी की वजह से ठोकरे खाने को मजबूर हो गई, उसके पति उससे उम्र में बड़े भले ही थे किंतु उन्होंने कभी अपना हक पल्लवी पर उसकी मर्जी के बिना नहीं जताया,
पल्लवी उनका आदर करते-करते उनसे प्रेम करने लगी और अपना पूरा जीवन उनकी सेवा में ही व्यतीत करने का सोच लिया था किंतु भगवान की मर्जी के आगे कुछ न चली, उनके पति गुजर गए और अंश.. बिना बाप का का बेटा बिगड़ गया, आज पल्लवी को अपने पति की बहुत याद आ रही थी और सोच रही थी.. काश.. वह उसे भी अपने साथ ले जाते !
दिशाहीन पल्लवी को उसके पांव अपने मायके की ओर खींच कर ले गए वहां उसके भाई भाभी भी अकेले थे, वहां जाने पर पता चला उनका बेटा उन्हें छोड़कर हमेशा के लिए विदेश चला गया बिना अपने मां-बाप की परवाह किए, आज उसे उसके बेटे ने घर से निकाल दिया और यहां उसका भतीजा माता-पिता को छोड़कर चला गया
शायद दोनों बहन भाई बदकिस्मती के शिकार थे, पल्लवी सोच रही थी कि वह अपने आप को किस्मत वाली समझे या बदकिस्मत! किंतु जैसे ही उसकी बेटियों को अपनी मां की दशा का पता चला दोनों दौड़ी चली आई और अपनी मां से कहने लगी… मां तुमने क्या हमें इतना पराया कर दिया क्या हम तुम्हारी अपनी बेटियां नहीं है
, मां भाई ने तुम्हें घर से निकाल दिया तो एक बार तो तुम हमें बताती, मां जो हुआ सो हुआ अब आप हम दोनों बहनों की जिम्मेदारी हैं आप सम्मान पूर्वक हमारे साथ हमारे घर में रहेंगी और रही जायदाद की बात हमें उससे कोई मतलब नहीं है हमें सिर्फ हमारी मां चाहिए!
पल्लवी के बहुत मना करने पर भी दोनों बेटियां अपनी मां को सम्मान पूर्वक अपने घर ले गई और पल्लवी सोच रही थी यह बेटियां पराई होकर भी मेरी अपनी हो गई और मेरे अपने बेटे ने अपनी मां को ही पराया कर दिया!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
कहानी प्रतियोगिता “किस्मत वाली”