चॉकलेट का बड़ा डब्बा… हाथ में लेकर भागती रोहिणी… घर में बिखरे सामानों से टकरा गई…
डब्बा गिर गया… सारे बड़े-बड़े मंहगे चॉकलेट पूरे घर में इधर-उधर फैल गए…
माया ललचाई आंखों से खड़ी होकर यह सब देख रही थी…
रोहिणी यहां वहां से चुनकर सब वापस डब्बे में डाल चुकी… पर फिर भी कुछ ढूंढ रही थी… उसकी फेवरेट चॉकलेट…
मां दूर से देख रही थी…” क्या हुआ रोहिणी…? कोई बात नहीं बेटा… जाने दो…!”
रोहिणी ने ठुनकते हुए सर उठाया… तो वह चॉकलेट माया के हाथ में थी…
माया दोनों हाथों से उसे पकड़े… देने और न देने के असमंजस में पड़ी… खड़ी थी…
मां पास आ गई…” बेटा… यह यहां के केयरटेकर की बेटी है… माया…!”
” हेलो माया…!” रोहिणी ने आगे बढ़ाकर उससे हाथ मिलाया…
माया ने एक हाथ में चॉकलेट को पकड़… दूसरा हाथ आगे बढ़ा दिया…” हेलो… मैं इसे रख लूं …!”
रोहिणी की सबसे फेवरेट चॉकलेट थी… मां जानती थी वह नहीं मानेगी… इसलिए उसके कुछ बोलने से पहले ही मां बोली…” ठीक है ले जाओ… रख लो… तुम्हारी दोस्ती का पहला तोहफा…!”
माया खुशी खुशी लेकर दौड़ गई…
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रोहिणी के पापा का तबादला यहां कानपुर में नए शहर में हुआ था…
दोनों बच्चियां हम उम्र थीं…
उस दिन से जो रोहिणी ने अपनी फेवरेट चीजों को माया के साथ बांटना शुरू किया… यह सिलसिला चल निकला…
आए दिन… कभी कोई खिलौना… कभी ड्रेस… या कभी कुछ और… जो भी रोहिणी को बहुत पसंद आता… माया उसे बड़ी ही बेचारगी से घूरती… फिर मासूमियत से कहती…” तुम किस्मत वाली हो… मेरी ऐसी किस्मत कहां…!”
और रोहिणी बड़े दिल से माया को हर प्यारी वस्तु दे देती…
माया धीरे-धीरे लालची और चालाक हो गई थी… उसकी नजर रोहिणी के गहनों, कपड़ों पर हमेशा बनी रहती…
दोस्ती के दिखावे की आड़ में वह रोहिणी को लगातार ठगती रहती… पर रोहिणी का दिल साफ था… वह सचमुच में माया को अपना दोस्त मानती थी… इसलिए उसे गरीब समझ… हमेशा हर तरह से उसकी मदद करती थी…
समय के साथ दोनों बच्चियों बड़ी हो गईं…
माया चार भाई बहनों में सबसे छोटी थी… बाकी दो बहनें और एक भाई सरकारी स्कूल से पढ़े लिखे… बहनों का ब्याह हो गया… भाई ने छोटी सी नौकरी ज्वाइन कर ली…
पर माया के सपने बड़े थे… उसने रोहिणी की मदद से… रोहिणी के साथ उसकी ही कॉलेज में प्रवेश प्राप्त कर लिया…
अब दोनों साथ ही एक ही कॉलेज में पढ़ते थे… कॉलेज में अखिल रोहिणी को पसंद करता था… रोहिणी अक्सर माया के साथ अखिल से मिलती थी… अखिल बड़े परिवार का इकलौता बेटा था…
आखिर माया ने यहां भी अपनी चाल चली…आजकल वह उदास रहने लगी थी… रोहिणी पूछती तो माया टाल जाती…]
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एक दिन रोहिणी ने जिद किया…” माया क्या बात है… समय से कॉलेज भी नहीं आती… मेरे साथ ठीक से बात भी नहीं करती… क्या हुआ… कुछ तो बताओ…!”
माया रोने लगी… रोहिणी से रहा ना गया…” बोलो माया.…!”
” नहीं… किस मुंह से बोलूंगी… यह कोई खिलौना थोड़े है… जो मेरे बोलने से तुम दे दोगी…!”
” ऐसी बात है… क्या है… जो मैं तुम्हें नहीं दे सकती… दे दूंगी… तुम बोलो तो…!”
” अखिल…!”
रोहिणी के पैर डगमगा गए…” बोला था ना… रोहिणी… तुम नहीं दे पाओगी… छोड़ दो… मत पूछो कुछ भी…!”
रोहिणी का दिल टूट गया…
कॉलेज का आखिरी हफ्ता था… अगले हफ्ते से परीक्षाएं होने वाली थी… रोहिणी ने अखिल से बात कर… उसे माया से जोड़ दिया…
खुद परीक्षा खत्म होने के बाद… कानपुर से हटकर बेंगलुरु चली गई… वहीं उसने एक बढ़िया कंपनी ज्वाइन कर ली.…
माया से ब्याह करने के बाद अखिल का हंसता खेलता घर… बीमार पड़ गया…
वह हर वक्त घर से अलग होना चाहती थी…” मुझे अकेले रहना… मुझे तुम्हारे साथ एक अलग दुनिया बसानी है…!”
धीरे-धीरे वह अखिल को घर से अलग करने में कामयाब हो गई…
बड़ा घर आंगन… लाखों की कमाई… रुतबा… सबकी मालकिन बन चुकी थी माया… पर फिर भी खुश नहीं थी…
बच्चे बूढ़े दोनों ही उसे बोझ लगते थे… इसलिए इतने बड़े घर में वह अकेली रह गई थी…
सब कुछ होते हुए भी उसे लगता… कुछ कमी है…
पांच साल हो चुके थे… इन पांच सालों में रोहिणी ने उससे कोई संपर्क नहीं रखा…
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एक बार यहां से चले जाने के बाद… वह दोबारा वापस नहीं आई…
माया अपने मन के मलाल को पचा नहीं पा रही थी… आखिर उसने खुद जाकर वहीं… उससे मिलने का मन बनाया…
कई जुगत लगाकर रोहिणी का पता ठिकाना मालूम करवा… अकेली ही बेंगलुरु के लिए निकल पड़ी…
दूसरे दिन ढूंढते ढूंढते हुए रोहिणी के घर पहुंच गई…
पांचवें मंजिले पर एक तीन बीएचके फ्लैट था… बेल बजते ही… थोड़ी देर में एक अधेड़ महिला ने दरवाजा खोला…
घर के भीतर एक सुकून था… महिला और बुजुर्ग पुरुष एक छोटे से बच्चे के साथ खेल रहे थे… किसी की आवाज सुन रोहिणी बाहर आई…
रोहिणी का हंसता सुकून भरा चेहरा और खुशी माया बर्दाश्त नहीं कर पाई…
घर में हर ओर खुशहाली झलक रही थी…
रोहिणी ने गले मिलकर उसका स्वागत किया… पर माया की बनावटी हंसी और कुटिल आंखें रोहिणी बचपन से जानती थी…
थोड़ी देर इधर-उधर की बातें करने के बाद… माया ने बोल ही दिया…” वाह रोहिणी… कितनी खुश दिख रही हो… लगता है बड़े मजे में हो…!”
रोहिणी इस बार चुप नहीं रही… उसने छूटते ही कहा …” हां माया बहुत खुश हूं… तुम खुश नहीं हो क्या…!”
” नहीं… खुशी क्या… वह तो किस्मत से ही मिलती है…!”
” तो अब क्या मांगोगी मुझसे… मेरी खुशी या फिर मेरी किस्मत…
कभी-कभी कुछ चीज खुद बनानी पड़ती है… सब कुछ मांगने से नहीं मिलता…
इतना अच्छा लड़का और परिवार भी तुम्हें खुशी नहीं दे पाए…
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मैं तो यहां अकेली आई थी… सुमित मेरे साथ काम करता है… हमने शादी की तो हम अकेले थे…
धीरे-धीरे गांव से मां पिताजी को बुलाकर… एक नया हंसता खेलता संसार बसाया है हमने…
अब इसमें से क्या लोगी… बोलो…!”
पहली बार रोहिणी की बातें सुन माया लज्जित हुई… उसे अपनी गलती का एहसास हुआ…
इस बार वह घर वापस आई तो… किसी से मांग कर अपनी किस्मत बदलने नहीं…
सबको बांटकर… खुद को बदलकर… अपनी असली खुशी पाने…
#किस्मत वाली
स्वलिखित
रश्मि झा मिश्रा