क़िस्मत की हवा कभी नर्म कभी गर्म – स्नेह ज्योति :Moral stories in hindi

एक दिन रोहन अपने बचपन के दोस्तों से मिला जो कि एक रेड लाइट ऐरिया में डॉक्यूमेंट्री करने जाने वाले थे । तो संजय ने कहा – “यार तुम अच्छी वीडियो ग्राफ़ी करते हो हमारे साथ चलो “। लेकिन रोहन ने वहाँ जाने से साफ इनकार कर दिया । लेकिन अपने दोस्तों के ज़्यादा जोर देने पर वो उनकी मदद करने चला गया ।

वहाँ जाकर उसने देखा कि लड़कियाँ बड़े अजीबो गरीब कपड़े पहने अपने भाव को मेकअप की आड़ में छुपाए आने-जाने वाले मर्दों को अपनी अदाओं से रीझाने की कोशिश कर रही थी । ये सब देख रोहन को असहाय महसूस हो रहा था ।

लेकिन वो अपने काम पे ध्यान केंद्रित कर काम में लगा रहा । तभी फ़िल्म बनाते हुए उसकी नज़र यकायक एक जगह ठहर गयी । क्या यें मयूरी है ?? अपनी शंका को दूर करने के लिए रोहन भाग के उसके पास गया और उसे अपने सामने देख स्तब्ध रह गया । उसने हौली सी आवाज़ में मयूरी बोला लेकिन मयूरी ने कोई जवाब नही दिया ।

मयूरी उसे अपना ग्राहक समझ रीझाने लगी क्योंकि वो क्या थी वो सब भूल आज में जीना सीख गयी । रोहन ने मयूरी को अपने साथ चलने के पैसे दिए और उसके साथ चला गया। उसके दोस्त भी ये सब देख हैरान थे । रोहन उसके साथ जैसे ही कमरें में दाखिल होता है , तो वो उसे मयूरी कह सम्बोधित करता है ।

मयूरी कौन ? ……मैं काव्या हूँ ।

नहीं , मेरी आँखे तुम्हें पहचानने में धोखा नही खा सकती । मैं रोहन हूँ तुम्हारे बचपन का दोस्त ।

कौन रोहन ??

याद करो जब तुम दो साल की थी तो मेरी माँ को तुम फ़ुटपाथ पर मिली थी । सर्दी में तुम्हारी हालत बहुत ख़राब थी । इसलिए माँ तुम्हें घर लेकर आ गयी । बहुत महीनो तक जब कोई तुम्हें लेने नहीं आया तो माँ ने तुम्हें गोद ले लिया । तुम्हें अपने जीवन में आता देख मैं अपनी जगह प्यार और तवज्जो खो जाने के डर से तुम से घृणा करने लगा । लेकिन धीरे- धीरे मैं तुम्हारे साथ के साथ जीना सीख गया और तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त बन गयी । पर पता नही आज से दस साल पहले क्या हुआ ?? जो तुम हमारी ज़िंदगी से गुम हो गयी । और आज जब मिली हो तो पहचान भी नही रही ।

ये सब बातें सुन वो अपने आँसू रोक नही पायी और रोहन के गले लग गयी और सुबकते हुए पूछा माँ कैसी है ??

रोहन ने करुणामयी आवाज़ में बोला कि जब तुम गई तो माँ भी हमें छोड़ भगवान के पास चली गई और मैं अकेला रह गया ।

ख़ैर ! तुम ये बताओ कि तुम यहाँ कैसे आयी ……

जाने दो अब यही मेरा घर है ।

नही , तुम्हारा घर वो है जहाँ तुम्हारा बचपन गुजरा ।

रहने दो रोहन ……

आज तो मैं जाने नही दूँगा । अब मिली हो तो अपने साथ लेकर ही जाऊँगा ।

रोहन के ज़्यादा इसरार करने पर उस के मुँह से निकल गया कि अपने पापा से पूछो ।

ये सुन उसे कुछ समझ नही आया तभी दरवाज़े पर खटखटाहट हुई और रोहन के जाने का समय हो गया । जाते जाते वो मयूरी को बोल कर गया कि मैं फिर आऊँगा और तुम्हें वापस लेकर जाऊँगा ।

उसे जाता देख मयूरी भी मायूस हो गई । घर आकर रोहन को मयूरी का सवाल बेचैन करे जा रहा था । देर रात जब उसके पापा घर आए तो उसने सारी घटना बताई। उन्होंने रोहन को मयूरी से दूर रहने को कहा । बेटा सब भूल जाओ अब वो हमारे घर नही आ सकती ।

क्यों नही आ सकती ??? वो इस घर का फरद है ।

पापा मयूरी ने ऐसा क्यों कहा कि अपने पापा से जाकर पूँछो । क्या कोई बात है जो आप मुझसे छुपा रहे है ??

नही रोहन , ऐसा कुछ नही है बोल वो अंदर चले गए ।

रोहन कुछ दिनों तक उसी कश्मकश में उलझा रहा । फिर एक दिन वो मयूरी से मिलने पहुँचा उसे वहाँ देख मयूरी की अम्मा बोली…. क्यों बेटा जी लत लग गयी ????

रोहन ने उन्हें पैसे थमाए और अंदर चला गया । दरवाज़े की आहट सुन मयूरी चौंक गई पर रोहन को सामने देख खुश हुई ।

तुम आ गए……मुझे तुम्हारा ही इंतज़ार था । मिल गए तुम्हें तुम्हारे सवालों के जवाब ??

नही , पापा ने तो कुछ नही बताया । लेकिन मैं आज जानकर ही जाऊँगा ।

मयूरी मुस्कुराई और उसे पानी दिया । तुम क्यों जानना चाहते हो । मैं आज जहाँ हूँ इस जगह की लड़कियों की कोई इज़्ज़त नही होती ।

तुम मुझे सच बताओ ये गोल मोल बातों में ना उलझाओ

मयूरी टालमटोल करने लगी तो रोहन ने उसे अपनी माँ कीं क़सम दी ।

तब मयूरी ने अपने मुख से सच बोलना शुरू कर दिया। जब मैं सात आठ साल की थी तो तुम्हारे पापा एक दिन मेरे पास आए और मुझे ग़लत तरीक़े से छूने की कोशिश की ।

क्या कह रही हो ????

मैं इसीलिए तुम्हें सच नही बताना चाहती थी । अगर तुम नही सुनना चाहते तो मैं रहने देती हूँ ।

नही तुम बोलो !

जब मैं बहुत छोटी थी तो शायद मैं उनका ये छूना जान ना सकी । ऐसा कई बार हुआ पर किसी ना किसी तरह माँ की मौजूदगी की वजह से मैं बच जाती । लेकिन जब मैं पंद्रह वर्ष क़ी हुई तो सब समझने लगी । लेकिन वो नही रुके एक रात वो नशे में चूर घर आए तुम सब सो रहे थे । मैं पढ़ रही थी । तभी वो मेरे दरवाज़े पर आकर खड़े हुए और मुझे ग़लत तरीक़े से छू मुझे गले लगाया । मैंने उनका विरोध किया और धक्का दे बाहर चली गयी । मैं बता नही सकती कि उस पल मेरी हालत क्या थी । मैं बिलक-बिलक कर रोने लगी । मन कर रहा था कि एक ज़ोर दार चाटा मार अपने अपमान का बदला लूँ । लेकिन ……ख़ैर

अगली सुबह मैंने हिम्मत की और माँ को बताने का सोचा लेकिन तुम्हारे पापा ने मुझे धमकी दी कि ऐसा मत सोचना वरना इस घर से बाहर जाओगी । इस घर से बाहर की दुनिया की मैंने कभी कल्पना ही नही की थी । इसलिए मैं चुप रही पर शायद वो इसे मेरी कमज़ोरी समझने लगे । इसलिए एक दिन मुझे बाज़ार से कुछ ज़रूरी सामान लाना था । तुम घर पर नही थे तो माँ ने मुझे उनके साथ भेज दिया ।

मैं सकुचाती सी चुप चाप उनके साथ चली गई । लेकिन वो मुझे चाय पीने जाना है बोल सामने की दुकान पर चले गए । इतने मैं एक कार मेरे पास आकर रुकी और मुझे उसमें बैठा कर कुछ लोग अपने साथ ले गए ।

अगले पल मैंने अपने आपको इस चकाचौंध की दुनिया में लोगों से घिरा पाया । तब जाकर मुझे पता चला कि मेरे नाम के पिता ने अपने डर को ख़त्म करने और चंद रुपयों के लिए मेरी इज़्ज़त को नीलाम कर दिया । एक वो दिन था और एक आज का दिन मैं बस यही सोचती हूँ कि काश मैं तुम लोगों से ना मिली होती …… तो अच्छा होता …..यूँ प्यार और मान की आड़ में रिश्तों को तार तार होते हुए ना देखना पड़ता ।

यें सच जान रोहन मयूरी से तो क्या अपने आपसे भी नज़र नही मिला पा रहा था ।

घर आकर उसने अपने पापा को उनका असल चेहरा याद दिलाया । तुम ये सब क्या कह रहे हो ??

मेरा कहना बुरा लग रहा है । लेकिन जो आपने किया उसका कोई पछतावा नही है ।

तुम एक ग़ैर के लिए अपने पापा पर इल्ज़ाम लगा रहे हो । लगता है वो तुम्हें बहुत पसंद है ।

छी…. पापा आज आपने साबित कर दिया कि एक घटिया इंसान की सोच हमेशा घटिया ही रहती है ।

हर इंसान को अपने कर्मों की सजा मिलती है जो आपको मैं दुला कर रहूँगा ।

मयूरी इस घर में आएगी क्योंकि वो सिर्फ़ मेरी माँ की बेटी ही नहीं है । बल्कि मेरी बहन एक सच्ची दोस्त है ।

क्या कह रहे हो रोहन ??

आपकी असल जगह ये घर नहीं बल्कि जेल है ।

रोहन ने आज अपने पापा को जेल भेज अपनी माँ की परवरिश पर आँच नहीं आने दी ।

कुछ दिनों बाद रोहन ने उस जगह की अम्मा को मयूरी के लिए पैसे दिए और उसे अपने घर ले आया ।

तभी आते वक़्त गली में गाना बजने लगा…… कभी काली रतिया कभी दिन सुहाने , क़िस्मत की बाते तो क़िस्मत ही जाने , ओ बेटा जी , ओ बाबू जी …… क़िस्मत की हवा कभी नर्म कभी गर्म

ये गाना सुन हम दोनों एक दूसरे को देखने लगे और समझ गए कि जो क़िस्मत में लिखा है वही होता हैं और बिना भगवान की मर्ज़ी के एक पत्ता भी नहीं हिलता । सबको अपने कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है ।

 

#क़िस्मत का खेल

स्नेह ज्योति

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