किसी की उम्मीद ना टूटने देने की खुशी – संगीता अग्रवाल 

” चल ना यार गोलगप्पे की प्रतियोगिता करते हैं बहुत दिन हो गए गोलगप्पे खाये ” श्रुति की सहेली दिव्या ने कॉलेज से वापिस आते हुए कहा।

” देख ले हार जाएगी हमेशा की तरह ” श्रुति ने उसे आगाह किया।

” अरे जा जा ” दिव्या बोली।

” भईया खिलाना गोलगप्पे “अपनी पसंदीदा चाट की दुकान पर जा श्रुति ने कहा।

 दोनो सहेलियाँ गोलगप्पे खा ही रही थी के सामने से एक फटे कपड़ों मे 10-12 साल का बच्चा बड़ी उम्मीद से आया। , “दीदी दीदी ये पेन खरीद लो।”

” नही चाहिए ” दिव्या ने खाते हुए कहा !

” दीदी ले लो ना एक भी नही बिका इतनी देर से मुझे भूख भी लगी है बस पांच रूपए का है। ” उम्मीद टूटते देख बच्चा लाचारी से बोला।

” अरे कहा तो नहीं चाहिए क्यों टाइम खराब कर रहे हो साथ ही मजा भी जाओ यहाँ से ।” दिव्या लगभग झिडकते हुए बोली।

बच्चा सहम कर पास के पत्थर पर जा बैठ गया और हमें खाता देख उसके चेहरे पर बेचारी के भाव थे बच्चा वाकई मे भूखा था। श्रुति को उस पर तरस आया और उसने खाना बन्द कर बच्चे के पास जाके कहा।

” भूख लगी है चलो मैं खिलाती हूँ कुछ। “



” नहीं दीदी आप बस ये पेन ले लो ना बहुत अच्छे हैं ” बच्चा एक बार फिर बहुत उम्मीद के साथ श्रुति से बोला।

” देखो मुझे पेन तो नहीं चाहिए तुम्हें खाना खिला देती हूँ मैं बोलो क्या खाना है। ” श्रुति ने बच्चे से पूछा।

” दीदी गरीब हूँ पर भिखारी नहीं मेहनत करके खाता हूँ मैं ” बच्चा भूखा होते हुए भी स्वाभिमान से बोला और वहाँ से आगे बढ़ गया क्योकि अब उसकी सारी उम्मीद खत्म हो गई थी।

पर बच्चे के  शब्द हथौड़े से श्रुति कानों मे बजने लगे। बच्चा थोड़ी दूर चला गया। उसका स्वाभिमान भरा स्वर श्रुति के दिल को छू गया उसने उसे आवाज़ दी।

“सुनो”

” जी दीदी “पास आते हुए बच्चा बोला ।

” कितने पेन है तुम्हारे पास ” श्रुति ने बच्चे से पूछा।



” दीदी ज्यादा नही बस 50-55 हैं अभी तो “

दिव्या भी इतने श्रुति के पास आगई ।

” मुझे देदो सारे पेन ” श्रुति ने बच्चे से कहा।

“तेरा दिमाग खराब है क्या करेगी इतने पेन का ये लोग तो ऐसे ही पीछे पड़ते है तू चल यहां से  ” दिव्या श्रुति से बोली।

“बोलो कितने के हैं सारे पेन ? ” दिव्या की बातों पर गौर ना कर श्रुति ने फिर बच्चे से पूछा।

” दीदी आप सच मे सारे लेंगी!! ” बच्चे की आँखों मे चमक थी।

” हाँ लूँगी पर एक शर्त पर, तुम्हे फ़िर मेरे साथ चाट खानी होगी ” श्रुति मुस्कुराते हुए बोली।

बच्चा हैरानी से श्रुति को देखने लगा पर सारे पेन बिकने की खुशी मे हाँ कर दी।

” दीदी सारे पेन 275 के है आप 250 दे दो। ” बच्चे ने कहा।

श्रुति ने उसे पूरे 275 रुपए दिये क्योकि वो ज्यादा देती तो बच्चे को भीख लगती। साथ- साथ उसे चाट खिलाई उसकी आँखों मे जो चमक श्रुति देख रही थी वो हजारों रुपए मिलने पर भी नही आती।

चाट खाके बच्चा श्रुति को धन्यवाद देता चला गया। अब श्रुति की आँखों मे भी चमक के साथ साथ दिल मे खुशी भी थी किसी की उम्मीद ना टूटने देने की खुशी और किसी के आत्म सम्मान को ठेस पहुंचाए बिना किसी की मदद करने की चमक।

धन्यवाद

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल 

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