“मैं तुम्हारी माँ के साथ नहीं रह सकती, बहुत टोका -टाकी करती हैं, जब तुम उन्हें गांव छोड़ आओगे, तभी मैं आऊंगी “कह मिली अपना सामान पैक करने लगी। मिहिर सर पर हाथ रखे बैठा था। सास -बहू की रोज की लड़ाईयों से तंग आ गया। किसको समझाये, किसको छोड़े, दोनों ही तो दिल में बसते हैं। दरवाजे की तेज आवाज से मिहिर की तंद्रा भंग हुई, जब तक मिली को रोकता, मिली जा चुकी थी। कमरे में लौट मिहिर उदास हो गया, शादी के अभी दो साल ही हुये थे ,साल भर तो वो और मिली बहुत एन्जॉय किये। जब तक पिता जी जिन्दा थे सब ठीक था,क्योंकि मिली कुछ दिनों के लिये गांव जाती या माता -पिता कुछ दिनों के लिये मिहिर के पास शहर आते।
समस्या तब बढ़ी जब पिछले साल पिता जी नहीं रहे, मिहिर माँ सुभद्रा जी को अपने साथ गांव से शहर ले आया। सासु माँ अब हमेशा उनलोगों के साथ रहेंगी जान मिली को अच्छा नहीं लगा।उसको अपनी आजादी में रूकावट लगने लगी सासु माँ। पहले कुछ दिनों की बात होती थी तो वो एडजस्ट कर लेती थीं पर अब हमेशा की बात थी। सासु माँ भी अब पहले जैसी नहीं रहीं, अक्सर मिली के बनाये खाने में नुक्ताचीनी करती थीं। मिली को पसंद नहीं आता था।
टैक्सी में बैठी मिली गुस्से से उबल रही थी घंटे भर बाद मायके पहुंची तो वहाँ ताला बंद मिला। अब तो मिली को और गुस्सा आया,माँ ऊषा जी को फोन किया तो माँ ने उठाया नहीं, लगातार तीन -चार बार जब माँ का फोन नहीं उठा तो मिली चिंतित हो गई। गुस्से में घर से निकल आई, नाश्ता भी नहीं किया था, अब जोरो की भूख लग रही थी। घर का ताला उसे मुँह चिढ़ा रहा था। थक कर मिली वही सीढ़ियों पर बैठ गई। मोबाइल उठा उसने भाभी नीरा को कॉल लगाया। फोन तुरंत उठ गया -“कहाँ हो आप लोग, माँ कहाँ है इतनी बार फोन कर रही हूँ माँ ने उठाया नहीं, सब ठीक है ना “गुस्से से मिली बोली।
इस कहानी को भी पढ़ें:
“हाँ मिली दी, सब ठीक है, माँ मेरे साथ बाजार आई है दिवाली के लिये शॉपिंग करने,लो आप माँ से बात करो “कह नीरा ने फोन ऊषा जी को दे दिया।
“कैसी हो मिली.. तबियत कैसी है, अब तो पांचवा माह चल रहा तुझे अपने खाने -पीने पर ध्यान देना जरुरी है, और समधन जी कैसी है “ऊषा जी ने कहा।
“तुम घर आओगी या फोन से ही बात करोगी, यहाँ मुझे सीढ़ियों पर बैठे आधा घंटा हो गया “मिली चिढ़ कर बोली।
“तू घर कब आई तूने आने का प्रोग्राम तो बताया नहीं “ऊषा जी ने चिंतित होते हुये पूछा, अनुभवी थी समझ गई, आज मिली फिर झगड़ा करके आयी है।लोकल मायका होने से मिली जब देखो तब रूठ कर मायके आ जाती है। अब मिली को सबक सिखाना जरुरी हो गया है, ऊषा जी ने मन ही मन सोचा।
“माँ, मिली दी का ऐसी अवस्था में ज्यादा देर बैठना ठीक नहीं, हम घर वापस चलते है”नीरा ने ऑटो रोकते हुये कहा।
घर पहुँच कर ऊषा जी ने देखा मिली दीवार से टेक लगाये निढाल पड़ी थी। उसे सहारा दे घर के अंदर लाई। नीरा जल्दी से मिली का फेवरिट पास्ता बना कर लाई। पास्ता देखते ही मिली की ऑंखें चमक उठी “इसी पास्ते की वज़ह से लड़ाई हुई थी, सासु माँ गँवार है उनको क्या पता पास्ते का टेस्ट, जब देखो टोकती रहती -बहू पास्ता मत खाओ, सलाद खाओ, फल खाओ, अरे जो मन होगा वही खाउंगी ना “मिली सासु माँ सुभद्रा जी की नकल उतारते बोली।
अनुभवी ऊषा जी कुछ ना बोली, जब मिली खा चुकी तो आराम करने अपने कमरे में चली गई। शाम की चाय पर ऊषा जी ने मिली को घेरा -तुम अचानक से कैसे आ गई “
“वो माँ मै अब तब तक उस घर में नहीं जाऊँगी जब तक मिहिर की माँ रहेंगी वहाँ”मिली बोली।
“जब से समधन जी आई है तू रोज लड़ाई कर मायके आ जाती है, पहले मै तुम्हारा लड़कपन समझती थी, लगा समय के साथ तुम समझदार हो जाओगी, पर मै तुझ नकचढ़ी से गलत उम्मीद रखती थी।”गुस्से से ऊषा जी बोली।
“क्या माँ तुम मेरी सास या मिहिर की गलती देखने के बजाय मुझमें गलती देख रही हो “मिली बोली।
“जो सही है मैं उसका साथ दूंगी “ऊषा जी ने नाराजगी से कहा।
इस कहानी को भी पढ़ें:
“तू जिंदगी के एक ही पहलू को देख रही, जिसमें मस्ती, घूमना,बेपरवाही ही जिंदगी है, दूसरा पहलू तो एक दूसरे की मदद करना या साथ खड़े होना है, जिस सास ने मिहिर को जन्म दिया, उस माँ का अधिकार तुझसे कम कैसे हो सकता है। पति प्यारा है पर पति की माँ या रिश्तेदार नहीं, मिहिर इकलौता बेटा है, अगर वो अपनी माँ को अपने साथ नहीं रखेगा तो कौन रखेगा। तेरे साथ मिहिर के फेरे लेने से ही तेरे अधिकार ज्यादा और माँ के कम हो गये ये कैसे सोच लिया।अरे रिश्ते बनाने में बड़ी मेहनत लगती है, टूटने में एक पल भी नहीं लगता।किसी बात का एक ही पहलू नहीं होता दूसरा और तीसरा भी होता है।
तूने उनकी रोक -टोक देखी पर क्यों रोक रही ये पहलू नहीं देखा, अरे तेरे स्वास्थ्य की चिंता है तभी तुझे टोकती है,अगर वो तुझे प्यार ना करती तेरी परवाह ना करती तो क्यों टोकती। सिक्के का हमेशा एक ही पहलू मत देखा कर दूसरा पहलू भी देखा कर। कल को अगर तेरी भाभी नेहा भी यही सब सोचने लगे तो तुझे कैसा लगेगा।तेरी तरह वो भी छोटी -छोटी बातों का बतंगड़ बना मायके चली जाये और तेरे भाई जय से अलग रहने की जिद करें तो तुम्हे कैसा लगेगा। अगर नीरा भी तेरी तरह बात -बात पर रूठ कर मायके चली जाये तो तू रूठ कर कहाँ आयेगी।
तुझे चाहिये की समधन जी का अकेलपन दूर करने में मिहिर का साथ दे, उल्टा तू मिहिर को भी तनाव ग्रस्त कर देती।अभी तो तेरा बच्चा आया नहीं, कल को तेरे बेटे की बहू तुझे बोझ समझने लगे तो… याद रखों मिली, कर्मो का फल इसी जीवन में मिलता है “।गुस्से से काँपती ऊषा जी बोली।
“माँ शांत रहिये, तनाव से आपका बी. पी. बढ़ जायेगा “पानी का गिलास ऊषा जी को देती नीरा बोली।
मिली शांत, सर झुकाये बैठी थी, सच ही तो कह रही माँ,रिश्ते बनाने पड़ते है। रात भर मिली सो नहीं पाई सुबह उठते ही ऊषा जी के पास आ बोली “-माँ आप ठीक कह रही थी, मै ही स्वार्थी हो गई थी, अब मै अपने घर जा रही हूँ, दिवाली के लिये सासु माँ और मिहिर के साथ शॉपिंग भी तो करना है, मुझे अपने घर के साथ रिश्ते भी संवारना है,।”
सुबह उठते ही मिहिर को फोन कर दिया था, “आज छुट्टी ले लो, माँ के साथ शॉपिंग करने चलना है “।
अटैची ले बाहर जाने वाली थी कि सुभद्रा जी की आवाज सुनाई दी -अरे बहू फिर भारी सामान उठा लिया ये आजकल की लड़कियाँ कुछ समझती नहीं…..”चौक कर मिली ने देखा तो मिहिर और सुभद्रा जी के साथ माँ -पापा और नीरा संग भाई भी मुस्कुरा रहे थे। मिली को जीने का मन्त्र मिल गया।परिवार में रिश्तों को अपनत्व से ही संवारा जा सकता है।अब एक नई मिली सामने थी जो सासु माँ की बेटी और पति की मित्र और सहयोगी थी।
-=संगीता त्रिपाठी
NICE STORY
Absolutely
Sahi dhang se jeevan jeene ke liye rishtey bahut mahatav rakhte hain.
Par galat dhang se jeevan jeene ke liye rishtey kabhi mahatav hi nahi rakhte hain