Moral Stories in Hindi : मयंक और माला की पचासवीं वर्षगांठ थी, घर में धन की कमी थी नहीं, बेटे -बहू, बेटी -दामाद सबने बड़े उत्साह से तैयारी की।
तैयारी पर मयंक जी नजर रखें थे, कोई कमी ना रह जाये,उनकी इज्जत का सवाल जो था,आखिर लोगों को दिखाना भी तो था, उनकी पार्टी कितनी शानदार थी।मेहमानों की सूची और किसको क्या उपहार देना है सब निर्णय मयंक जी का ही था।
माला के लिये भी भारी बनारसी साड़ी और कुंदन का सेट आ गया था,आखिर वह दिन आ ही गया जिसका सबको इंतजार था, मित्र और रिश्तेदारों के लिये होटल में कमरे बुक थे।दिन में पूजा थी, शाम को शहर के पंच सितारा होटल में पार्टी…।
माला जी पार्लर जाने से इंकार कर दी खुद तैयार हो कर आ गई, मयंक जी भी क्रीम कलर की शेरवानी में जँच रहे थे, उनको देख कर कोई कह नहीं सकता वो सत्तर पार कर चुके।सब लोग तैयार हो कर होटल पहुँच गये, शहर के सभी प्रतिष्ठित लोगों को निमंत्रण था।
पार्टी अपने शबाब पर थी,टी. वी. के एक चैनल का कैमरामैन हर एंगल से मयंक जी, माला जी की फोटो ले रहा था, तभी एक मीडिया वाली लड़की ने माला जी की तरफ प्रश्न उछाल दिया, “आपकी सुखी गृहस्थी का राज क्या है, बताइये जिससे औरों को प्रेरणा मिले..”
माला जी मुस्कुरा कर जब तक बोलती, मयंक जी बोल उठे, “आपसी समझदारी और एक दूसरे के प्रति सम्मान…,।
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हॉल तालियों से गूंज उठा..।
माला जी चौंक पड़ी,लफ्ज निकलने वाले थे, ,”सम्मान…. क्या सच में ” लफ्ज दिल में ही रह गये,।
“तब तो आपको मयंक जी से कोई शिकायत नहीं हुई होगी, इतना समझदार पति किस्मत वालों को ही मिलता है..”मीडिया वाली लड़की प्रभावित होकर बोली।
“अजी शिकायत क्यों होगी, जब मै इनके मुँह खोलने से पहले ही इनकी इच्छा पूरी कर देता हूँ., साड़ी, गहने, बड़ी गाड़ी, बँगला सब तो दे रखा है इन्हे..”दर्प से मयंक जी बोले।
एक बार फिर तालियों की गूंज उठी, उसके शोर में, किसी ने एक जोड़ी पनीली आँखों की तरफ ध्यान नहीं दिया , जिसमें कई ख्वाबों की आहुति की लौ जल रही थी,तभी तो आज सुखी गृहस्थी का तमगा हासिल किया है।शिकायत करें भी तो किससे….??कौन उसकी बात समझेगा।
उन मरते ख़्वाबों lकी चीत्कार किसी ने नहीं सुनी, जो अंदर ही दफ़न हो जाते थे, वे छोटे -छोटे सपनें और चाहतें जो एक सामान्य जीवन के लिये जरुरी होते है, स्टेटस और दिखावे की भेंट चढ़ गये,।
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माला पिछली बार कब दिल खोल कर हँसी थी, उसे याद नहीं, शादी के बाद किसी दिन वो खिलखिला कर हँसी थी तब मयंक जी ने बोला,”गँवारों की तरह मुँह फाड़ कर क्यों हँस रही हो, अब तुम मिडल क्लास वालों की बेटी नहीं, शहर के सबसे अमीर घर की बहू हो.. हमारे स्टेटस का ध्यान रखों अपनी गँवारों वाली हरकत मायके में छोड़ आना ..”।
हतप्रभ माला को पति का मिजाज समझने में समय लगा, जब समझ में आया तो खामोश हो गई।
खूबसूरत माला को मयंक के पिता जी ने कॉलेज के वार्षिक समारोह पर देखा, खूबसूरत चेहरे वाली उस लड़की के सुरीले स्वर में गये भजन ने माधव जी को आकर्षित कर लिया, लड़की का पता लगा, उसके घर गये और अपने बेटे के लिये मांग आये।
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माला को घर की बहू बनाने में उन्हें पत्नी को मनाने में समय लगा, जबकि मयंक तो देखते ही माला की खूबसूरती का दीवाना हो गया। पिता -पुत्र के आगे सास मालती देवी की नहीं चली और मिडिल क्लास की माला, मयंक की पत्नी बन माधव विला में आ गई।
माधव विला में आते ही माला को समझ में आ गया, उसका स्थान भी, बैठक में सजे बेज़ुबान शो पीस की तरह है, जिसे अपनी मर्जी से कहीं आने -जाने को तो छोड़ दो,कपड़े भी अपनी पसंद के पहनने की इजाजत नहीं थी।
इस घर में हर वो चीज मौजूद थी, जो सबसे अलग और कीमती थी, उन्ही में माला भी थी। जब भी उसने विरोध करना चाहा, पढ़े -लिखें मयंक का अनपढ़ और असभ्य व्यवहार सामने आ जाता । धीरे -धीरे माला चुप होती गयी, ये सोच, शिकायत किससे करें , सब तो उसे भाग्यशाली समझते, एक सामान्य परिवार की लड़की, आज गहनों से लदी है,सब सुखों से परिपूर्ण है…,पर क्या सच में…. उसके जिस सुरीले कंठ से ससुर जी प्रभावित हुये, उस विद्या का यहाँ कोई मोल ना था…
“पैसे दे कर मंडली बुला लो, क्या जरूरत है अपना समय और गला खराब करने की “जब भी पारिवारिक समारोह पर उसने गाने की चेष्टा की,मयंक की यही प्रतिक्रिया थी..।
लोग उसके भाग्य से ईर्ष्या करते और माला इस विला से बाहर रहने वालों से ईर्ष्या करती..।
जो चीज जितना चमकता है, वही लोगों को दिखता है, उसके पीछे का स्याह अंधेरा किसी को ना दिखता।
“किस सोच में डूबी हो मैडम “कह मयंक जी ने माला को वर्तमान में ला दिया।
केक काटती माला सोच रही, पूरी जिंदगी समझौते में बीत गई, शिकायत नहीं कर पाई, करती भी तो सुनता कौन…?? लेकिन अपनी बहू के ख़्वाबों को उसने कैद नहीं होने दिया,उन्हें उसने खुला आसमान दिलाया, भले ही उसका अपना कोई आसमान नहीं था,..।
—-संगीता त्रिपाठी
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