श्रीमती सुजाता के पति का देहांत हुए दो साल हो गए हैं। उनका अपने घर पर रहना कम ही होता है। उनके बेटे शेखर ने खराब स्वास्थ्य के मद्देनजर, उनको साथ रखने का इरादा किया है।
उन लोगों ने अविका को अपना घर किराये से दे दिया है। अविका अपने पति और दो साल की बेटी श्रेया के साथ मकान में रहने लगी है।
मकानमालिकिन होने के नाते, तीन महीने उन्होंने अविका को जाँचा परखा। फिर मनाली शेखर के पास रहने चलीं गईं।
अब तो वे कभीकभार, मात्र मुआयने के लिए वहाँ आतीं। सब कुछ चुस्तदुरुस्त देख, प्रसन्न हो, लौट जातीं। हफ़्ता या पंद्रह दिन श्रीमती सुजाता के रहने पर,
अविका चाय नाश्ता, खाना पानी सभी उनको समय समय पर पूँछ कर दे आती।
घर का रखरखाव अच्छा हो रहा था। हर पाँच साल के अंतराल पर रंगरोगन इत्यादि भी श्रीमती सुजाता ने करवाना उचित समझा।
यह सब अविका की देखरेख में संपन्न हो जाया करता। पैसे किराए में से घट जाते।
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श्रीमती सुजाता को अविका पर अनन्य विश्वास हो गया था। अविका को श्रीमती सुजाता के घर किराए पर रहते रहते करीब ग्यारह साल होने को आए।
श्रीमती सुजाता का बेटा उन्हें चेताता, पर वे अविका को अपनी पुत्री मानकर आश्वस्त हो गईं थीं।
कई अड़ोसी पड़ोसी भी आयेगये अविका पर तंज़ कर देते। पर अविका अपने शुद्ध अंतःकरण से श्रीमती सुजाता की बिना किसी लालसा के, मौका पड़ने पर सेवा करती।
उसका मानना था, उसके भगवान सब देख रहे हैं।
एक वो दिन भी आया जब श्रीमती सुजाता पंचतत्व में विलीन हो गईं। शेखर उनका बेटा उनके आख़िरी शब्दों का मान रखने वहाँ लौटा।
श्रीमती सुजाता ने अविका को अपनी बेटी माना था। इसलिए उस घर का आधा हिस्सा उस के नाम कर दिया था।
आधे घर का हिसाब व कागज़ी कार्यवाही कर, शेखर राखी बँधवा लौट गया।
मौलिक और स्वरचित
कंचन शुक्ला- अहमदाबाद