कीमत – कीर्ति मौर्या : Moral Stories in Hindi

निखिल और राधा की शादी को लगभग दस बर्ष होने को है।अभी भी दोनों की गृहस्थी में खटपट होती ही रहती है।राधा एक नौकरीशुदा महिला है।वह एक विद्यालय में शिक्षिका है।जिसने निखिल के कंधों से बच्चों की पढ़ाई, घर का राशन, बिजली का बिल,गैस का बिल तथा सासू मां शान्ति जी की दवाईयों इत्यादि के बोझ को अपने कंधों पर ले रखा है।निखिल की प्राइवेट कंपनी में नौकरी है।वह बस मकान का किराया और त्यौहारों पर ही खर्च करता है।बाकी सैलरी बचत में डाल देता है।

राधा के इतना करने के बाद भी निखिल खुश नहीं रहता, राधा के हर काम में कमी निकालना और बात बात में उसके मायकेवालों को नीचा दिखाना  निखिल की आदत है।जिससे राधा का मन बहुत दुखी रहता है।लेकिन निखिल को राधा के दुख से कोई लेना-देना नहीं है।ऊपर से कहता है कि क्यों रो -धो कर नौटंकी कर रही हो।सासू मां शान्ति जी भी बेटे का ही साथ देती हैं।राधा चाहे जितना अच्छा खाना बनाते शान्ति जी उसमें कमी निकाले बिना निवाला मुंह में नहीं डालती।

निखिल सिर्फ राधा से ही नहीं बच्चों से भी घुल-मिल कर बात नहीं करता,उन्हें समाज के अच्छे बुरे व्यवहार के बारें में नहीं बताता न ही उन्हें भविष्य के जीवन जीने के लिये तैयार करता।वह बस सुबह नहा खाकर आंफिस चला जाता और देर शाम घर लौटता फिर फ़ेश होकर खाना खाकर टीवी देखने लगता या फिर मोबाइल में व्यस्त हो जाता।न बच्चों से बात करता न ही पत्नी‌से। जब तक निखिल घर में रहता घर में एक तरह से कर्फ्यूं सा लगा रहता।पत्नी यदि निखिल को समझाने का प्रयास करती

कि घर आकर  कम से‌ कम बच्चों से बातें करिए उनकी पढ़ाई के बारें में पूछियें उन्हें नयी नहीं बातें बतायें तो वह कहता कि मेरे पास फालतू का टाइम नहीं है ये सब तुम्हीं करो। यह सब देखकर राधा बहुत चिन्तित रहती पर कुछ कर नहीं पाती।

निखिल के इस तरह के व्यवहार का उसका किसी दूसरी औरत से चक्कर चलना था।इसलिए वह परिवार के महत्व को समझ नहीं पा रहा था।आयें दिन उस औरत को लेकर घर में क्लेश होता ही रहता।दोनों बेटे अब बड़े हो रहे हैं सब समझने लगे हैं।

लेकिन निखिल तो अपनी स्वछन्द दुनियां में ही मस्त रहना चाहता है।पत्नी राधा और मां के समझाने का उसपर कोई असर नहीं पड़ रहा।बच्चे यदि अपनी‌ जरुरत के लिये मोबाइल,इयर बड या कपड़े, जूते इत्यादि खरीदने को कहते तो निखिल उन्हें डांटने लगता कि ये सब फालतू के खर्च हैं।यदि पत्नी राधा का कोई जेवर लेने का मन होता तो उसे भी फालतू खर्च बताकर मना कर देता।वहीं दूसरी ओर वह अपनी प्रेमिका को कभी सोने की अंगूठी,कभी सोने का हार, मोबाइल,साड़ियां और अन्य कीमती सामान उपहार में दे देता।

तब उसे पैसों की कहीं या फालतू खर्चे नहीं लगातें।वह उस परायी औरत नीरा के पास‌बैठकर फुर्सत में घण्टों बातें‌भी करता रहता था।

जब भी मौका मिलता वह नीरा के पास पहुंच जाता,खूब हंस हंस के बातें करता।यह सब देखकर राधा के दिल पर छुरियां चल जातीं।

जब भी राधा इस बारें में निखिल से कुछ कहना चाहती तो वह उसे झिड़क देता  और खूब खरी खोटी सुनाता।कहता कि तुमने मेरा जीना मुश्किल कर दिया है।तुमसे मेरा सुख नहीं देखा‌ जाता,तुमको कोई अक्ल नहीं है। राधा अकेले‌में खूब रोती और अपनी किस्मत को कोसती,सोचती दिन रात इतनी मेहनत करने और अच्छी तरह घर सम्हालने ,वफादारी और शालीनता का उसे यह ईनाम मिल रहा है।वो हमेशा मन से दुखी रहती।बच्चों को देखकर सोचतीं कितना मूर्ख आदमी है

जो इतने प्यारे बच्चों से भी खुद को दूर किये बैठा है।उस लालची और वहीं औरत नीरा के लिये।नीरा ने‌ निखिल को अपने फायदे के लिये अपने चंगुल में फंसा रखा था। इसी तरह की वर्ष बीत जाते हैं।

सासूमां शान्ति जी का देहान्त हो जाता है।राधा अपने मन को समझा लेती है कि ईश्वर ने निखिल को शायद उसके लिए बनाया ही नहीं है इसलिए उसे निखिल की तरफ से ध्यान हटाकर अपने पर और बच्चों पर केन्द्रित करना चाहिए।राधा ने अपनी परिस्तियां न बदलते देखकर अपनी‌  मनोस्थिति में 

बदलाव कर लिया।

इस प्रकार अब वह पहले की तरह दुख से कातर नहीं रहती और  खुश रहने लगी बच्चों पर पूरा ध्यान देने लगी।

समय बीता दोनों बेटे इन्जीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करके अच्छी कंपनी में नौकरी करने लगे। उनकी पोस्टिंग दूसरे शहर में हो गयी।अब राधा भी अपने बच्चों के साथ ही रहने लगी।घर में बस निखिल अकेला रह गया।अब उसे परिवार की कीमत समझ में आ रही थी क्योंकि नीरा ने सारे रूपये पैसे किसी न किसी बहाने लूट लिये,जमीन जायदाद पर भी कब्जा कर लिया।और निखिल को दरकिनार कर दिया।अब निखिल बिल्कुल अकेला हो गया 

अब उसे परिवार की कीमत समझ में आने लगी  पर अब बहुत देर हो चुकी थी।

दोस्तों ये कहानी एक सच्ची घटना पर‌ आधारित है। की बार लोग बाहर के लालची मक्कार  व्यक्ति के बहकावे में आकर अपने ही परिवार के महत्व को नहीं समझते और जब तक समझ में आता है तब बहुत देर हो चुकी होती है सब कुछ हाथ से निकल चुका होता है।

 

मौलिक एवं स्वरचित

अप्रकाशित

कीर्ति मौर्या 

गाजियाबाद ,उत्तर प़देश

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