श्यामा जब तीसरी बार प्रेगनेंट थी तब वह रोज भगवान से प्रार्थना करती थी कि इस बार उसके घर बिटिया को ही भेजना । पति रोहन हँसते हुए कहा करते थे कि श्यामा बेटा हुआ तो किसी को दे देगी क्या?
वह कहती थी कि मज़ाक़ में भी मत कहिए कि बेटा होगा हमारे दो बेटे हैं मुझे तो बेटी चाहिए है और देख लेना बेटी ही होगी । ईश्वर का फ़ैसला कुछ और ही था और उसने फिर एक बार बेटे को ही जन्म दिया था ।
अब क्या करती बेटा बहुत ही खूबसूरत गोल मटोल था । बच्चे के आते ही वह उसे प्यार करने लगी परंतु दिल में कसक थी कि बिटिया होती तो अच्छा था । रोहन ने कहा कि श्यामा एक बात कहूँ जो नहीं है उसके लिए दुखी होने के बदले में जो है उससे ही खुश हो जा । मेरी बात मान बहू को ही बेटी बना लेना ।
समय के साथ साथ श्यामा भी बच्चों के लालन पालन में व्यस्त हो गई थी । वह अभी भी किसी छोटी सी बच्ची को देखती थी तो उसका मन उसकी तरफ़ खिंचा चला जाता था ।
उनके तीनों बच्चे बड़े हो गए थे । रोहन प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हुए भी अपने तीनों बेटों को पढ़ाया था । बड़ा बेटा विपुल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद बैंगलोर में एक कंपनी में नौकरी कर रहा था ।
दूसरा बेटा विकास बी बी ए के अंतिम साल में पढ़ रहा था । उसकी कैंपस सेलेक्शन में नौकरी लग गई थी ।
तीसरा बेटा विनीत वकालत की पढ़ाई कर रहा था । श्यामा और रोहन को देख सब कहते थे कि आप बहुत ही खुशनसीब हैं कि तीनों बेटे लायक बन गए हैं । आपकी बात को पत्थर की लकीर समझते हैं ।
श्यामा को कभी-कभी डर लगता था कि कहीं उनके घर को नज़र ना लग जाए।
विपुल को नौकरी करते हुए दो साल हो गए थे । माता-पिता उससे शादी की बात करने लगे थे क्योंकि लड़कियों के पिता रोहन और श्यामा से कई बार पूछ चुके थे रिश्ते के लिए ।
माता-पिता के बार बार पूछने के बाद एक बार उसने बताया था कि वह अपनी कॉलेज की एक लड़की मंजुला से प्यार करता है और उसी के साथ शादी करना चाहता है । हम सब बच्चों की ख़ुशियों के आगे माता-पिता विवश हो जाते हैं। उन्होंने खुशी खुशी विपुल की पसंद को ध्यान में रखते हुए उसकी शादी मंजुला से कर दी थी ।
मंजुला अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी । इसलिए उनका पूरा ध्यान अपनी बेटी पर ही रहता था । वे हैदराबाद में ही रहते थे । उसके पिता वकील थे । विपुल की शादी होते ही दोनों बच्चों के माता-पिता बैंगलोर जाकर उन दोनों की गृहस्थी बसाकर वापस आ गए थे । श्यामा को लगता था कि शादी के बाद बहू कुछ दिन उसके साथ रहे परंतु उनकी नई नई शादी हुई है तो उन्हें अलग क्यों करना सोचते हुए मन मारकर रह गई थी ।
मंजुला शादी होते ही चली गई थी इसलिए उसके बारे में ज़्यादा जान नहीं पाई थी ।
श्यामा ने जब पहली बार अपने किसी रिश्तेदार के मुँह से सुना था कि वे दोनों मंजुला के माता-पिता से मिलने आए थे। उसे बुरा लगा था कि एक ही शहर में रहते हुए भी बेटा उनसे मिलने नहीं आया है । रोहन ने कहा कि उनके बारे में ज़्यादा मत सोच । बच्चे जब तक छोटे होते हैं माता-पिता के होते हैं बड़े होने के बाद उनकी अपनी ज़िंदगी होती है
और मंजुला अपने माता-पिता की इकलौती संतान है इसलिए वे उनसे मिलकर चले गए होंगे । इस बीच रोहन भी रिटायर हो गए थे। उन दोनों को एक दूसरे से फ़ुरसत ही नहीं मिलती थी। जब तक बच्चे छोटे थे उनकी परवरिश में ऐसे डूब गए थे कि अपने आप को समय ही नहीं दे पाए थे । इसलिए वे दोनों अपने पुराने दिनों की कसर अब पूरी कर रहे थे ।
रोहन कह रहे थे कि देख श्यामा विपुल का फोन आया है कि मंजुला अपने माता-पिता के घर से यहाँ आ रही है और तेरे साथ कुछ दिन रहना चाहती है । तुम अपनी बेटी की चाह को पूरी कर लेना । श्यामा बहू का इंतज़ार करने लगी थी ।
वह दिन भी आ गया जब मंजुला श्यामा के साथ समय बिताने के लिए उनके घर रहने आ गई थी ।
श्यामा ने उसकी ख़ातिरदारी के लिए ज़मीन आसमान एक कर दिया था । उसे रसोई में आने नहीं देती थी । सारे काम वह खुद करती थी । उस घर में सब कुछ मंजुला की पसंद का ही बन रहा था । इस अति प्यार से भी मंजुला ऊब चुकी थी । यह बात वह अपनी माँ से फोन पर बता कर हँस रही थी ।
श्यामा मंदिर जाते हुए अपनी बहू से कहती है कि मंजु बेटा आपके लिए नाश्ता रसोई में रखा है खा लेना कहते हुए वह मंदिर के लिए निकली थी कि नहीं रोहन ने कहा कि श्यामा इतना काम करने की ज़रूरत नहीं है अपनी सेहत पर भी ध्यान दे ।
श्यामा हँस कर उनकी बातों को अनसुना करके मंदिर चली गई थी । वहाँ से आकर देखा तो नाश्ता रसोई में पड़ा हुआ था मंजुला कमरे में लेटी हुई थी ।
श्यामा ने उसके सर पर हाथ रखकर कहा कि क्या बात है उदास क्यों है ?
मंजुला ने कहा कि मैं ठीक हूँ माँ विपुल ने चिट्ठी लिखा है कि उसे बुख़ार आया है कमजोरी हो गई है वे जल्दी से आने के लिए कह रहे हैं । यह सुनते ही श्यामा ने रोहन से कहा कि बहू के लिए टिकट करा दीजिए और बाज़ार से अच्छी सी साड़ी फल फूल ला दें । मैं घर में उन दोनों की पसंद के व्यंजन बना देती हूँ और पैक कर देती हूँ । विपुल को अच्छा लगेगा । बस फिर क्या था घर भर में घूमते हुए श्यामा ने मंजुला के जाने के लिए पूरी तैयारी कर ली थी ।
उन्हें दुख इस बात का था कि बहू को कम से कम दस दिन भी अपने साथ नहीं रख सकी हैं । दिल को तसल्ली दी थी कि चलो कोई बात नहीं है विपुल की सेहत से ज़्यादा कुछ नहीं है ।
मंजुला के लिए रात की ट्रेन की टिकट करा दिया था और उसे पूरी हिदायतें देकर ट्रेन में बिठा दिया था ।
श्यामा को इन चार दिनों में ही मंजुला से लगाव हो गया था । दूसरे दिन सुबह कामवाली बाई से पूरा घर साफ कराते हुए मंजुला के कमरे की सफ़ाई भी कराने के लिए खुद उसके पीछे गई । बाई सफ़ाई करके चली गई थी तो श्यामा ने देखा कि पलंग पर पढ़ते हुए मंजुला ने मैगज़ीन छोड़ दी थी । उसे जगह पर रखने के लिए उठाया तो उसमें से एक काग़ज़ गिरा उठाया और देखा तो विपुल की चिट्ठी थी ।
श्यामा ने ना चाहते हुए भी पढ़ा था कि उसमें बीमारी के बारे में क्या लिखा है पढ़ लूँ । उसे मालूम था कि दूसरों के पत्र नहीं पढ़ते हैं ख़ासकर बेटे बहू की फिर भी वे अपने आपको रोक नहीं सकी उसमें उसने लिखा था कि मंजु कैसी है मुझे मालूम है मेरी माँ अपने पूजा पाठ से तुम्हें सता रही होगी । वे बचपन से ही ऐसी हैं
हम भाइयों को भी ऐसे ही सताया करती थी । यह मत छूना वह मत छूना यहाँ क्यों बैठे हो हर काम में दख़लंदाज़ी और रिस्टिक्शन हैं । तुम्हारे घर में ऐसा कुछ नहीं होता है तुम्हारे माता-पिता नए ज़माने के ख़यालात के हैं तुम्हारी परवरिश अलग तरीक़े से हुई है । अब हमें तो माँ है भुगतना पड़ा परंतु तुम्हें तो मैं वहाँ रहने देना नहीं चाहता था परंतु क्या करूँ मजबूरी है ।
तुम एक काम करो मैं बीमार हूँ कहकर माँ से कहो और यह भी कहो कि मैं तुम्हें बुला रहा हूँ । बस वे तुरंत तुम्हें यहाँ भेज देंगी । डार्लिंग मैं पूरी तरह से स्वस्थ हूँ तुम्हें यहाँ लाने का बहाना है और कुछ नहीं कल मिलेंगे मैं स्टेशन पर तुम्हें लेने आ जाऊँगा बॉय ।
पत्र पढ़ते ही श्यामा की आँखें बरसने लगीं थीं । उसका दिल टूट गया था । वह वहीं ऐसे ही बैठी रह गई थी ।
रोहन उसे ढूँढते हुए उस कमरे में पहुँच गए और श्यामा से कुछ पूछते इसके पहले ही उसने उनके हाथ में पत्र थमा दिया था । रोहन ने भी पत्र को पढ़ा देखा श्यामा रो रही थी और कह रही थी कि देखिए ना विपुल ने मेरे प्यार की क्या क़ीमत लगाई है । हमने बचपन से उन्हें किसी भी बात की कमी नहीं होने दी जो चाहे वह दिया परंतु उनके दिल में मेरे लिए कितनी कड़वाहट है कि झूठ बोलकर उसने अपनी पत्नी को बुला लिया है ।
उसके मुँह से बोल ही नहीं निकल रहे थे । रोहन उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे थे । सोच रहे थे कि श्यामा को क्या समझाऊँ पत्र पढ़कर तो यही महसूस होता है कि बच्चों के लिए माता-पिता कुछ भी कर लें लेकिन उनके लिए उसकी कीमत कम ही होती है । दोनों ही सदमे में आ गए थे हताश होकर एक-दूसरे का सहारा बनकर शून्य में देख रहे थे ।
के कामेश्वरी
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