Moral Stories in Hindi : अक्सर दो बजे चाय की घुमटी पर विजया की नजर उस बच्चे पर पड़ती जो सहमा हुआ अपनी दादी के ऑंचल में सिमटा बैठा रहता। कभी दादी उसे चाय पिलाती तो कभी उसके बालों को सहलाती रहती। नीली कंचे सी ऑंखों से कभी टुकुर- टुकुर वह विजया की ओर देखता फिर नजरें चुराकर दादी के ऑंचल में छुप जाता।
जिस दिन वह नहीं दिखता विजया की नजरें उसे ढूंढती थी। वह घुमटी के सामने बनी एक झोपड़ी में दादी के साथ रहता था। उसकी दादी जामफल, बैर, कागज के कोन मे मिक्चर भरकर और खट्टी मीठी गोली को एक टोपलेमें रखकर बेचती थी।सुबह-सुबह वह टोपला लेकर निकल जाती। कुछ सामान बिक जाता और फिर सुबह १० बजे वह विद्यालय के गेट के पास बैठ जाती, उस समय बच्चों की नाश्ता करने की छुट्टी होती थी, कुछ बच्चे कुछ सामान खरीद लेते।
वह छोटा बच्चा अपनी दादी के पास चुपचाप बैठा रहता।दादी सुबह-सुबह उसे तैयार करके अपने साथ में रखती थी। सुबह-सुबह बालों में तेल डालकर पाटी पाड़कर बाल करीने से ओछती। मगर दौपहर तक धूल मिट्टी में खेलने के कारण वह बेतरतीब हो जाते। बारह बजे के बाद वह चूल्हे पर भोजन बनाती। वह उसे बहुत प्यार से रखती थी।
दौपहर में सूर्य की किरणें उसकी झोपड़ी पर सीधी पड़ती थी, तो वह अपने पौते को लेकर चाय की घुमटी की एक बैंच पर बैठ जाती।
एक दिन विजया ने कहा बेटा बिस्किट खाओगे, उसने एक बिस्किट का पेकेट उसकी तरफ बढ़ाते हुए पूछा। उसने एक बार नजरें उठाकर विजया की ओर देखा और फिर अपनी दादी की ओर देखने लगा मानो पूछ रहा हो ले लू क्या?
उसकी दादी ने कहा ‘लेलो बेटा मेडम जी प्यार से दे रही है।’ उस बच्चे ने हाथ बढ़ाया और फिर दादी के ऑंचल में सिमट गया। वे बोली ‘मेडम जी!यह बहुत संकोची है, डरता भी बहुत है मेरा पल्लू छोड़ता ही नहीं।’ विजया ने कहा- ‘कोई बात नहीं माजी।’ उसने उठकर वह पेकेट उसके हाथ में रखा और उसके बाल सहलाते पूछा -‘तुम्हारा नाम क्या है बेटा?’ वह कुछ नहीं बोला। माजी ने कहा- ‘इसका नाम चन्दू है।
दौपहर में झोपड़ी में गर्मी बहुत लगती है, यहाँ ठंडक रहती है इसलिए यहाँ लेकर बैठ जाती हूँ। विजया को चन्दू बहुत प्यारा लगता था और वह हमेशा उसके लिए कुछ लेकर आती थी। कभी गुब्बारा कभी बांसुरी कभी कुछ खिलौना मिठाई वगैरह। अब चन्दू भी विजया के पास जाने लगा था। तोतली बोली में कुछ बातें भी करता था।
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विजया विद्यालय में उच्च श्रेणी शिक्षिका थी। एक दिन वह घुमटी पर चाय पी रही थी, तभी एक काले रंग की कार विद्यालय के दरवाजे पर रूकी चन्दू उस समय घुमटी के बाहर खेल रहा था, वह एकदम घबरा गया और उसकी दादी से आकर लिपट गया। विजया ने कहा -‘माजी चन्दू उस गाड़ी को देखकर इतना डर क्यों गया?’
वह बोली -‘मेडम जी एक ऐसी गाड़ी ने इसके पापा को हमसे छीन लिया। अभी पिछले साल की ही बात है, यह बाहर खेल रहा था, इसकी गेंद सड़क पर चली गई, यह उसे लेने के लिए सड़क पर चला गया उसी समय एक काली कार तेजी से आई इसे बचाने के चक्कर में मेरे बेटे का भयंकर एक्सिडेंट हो गया और वह दुनियाँ छोड़कर चला गया।
बस इसीलिए यह गाड़ी देखकर डर जाता है।’ माजी की आवाज भर्रा गई थी-‘ बिन माँ का बच्चा, माँ जन्म देते ही मर गई,और पिता इस तरह……। अगर आज वो होता तो मेरा चन्दू भी स्कूल जाता। मैं इसके लिए कुछ नहीं कर पा रही हूँ।इसकी पूरी दुनियाँ मैं ही हूँ, अब मेरा शरीर भी साथ नहीं देता, कब तक इसका साथ दूंगी? मेरे बाद इसका क्या होगा ?मेडम जी डर लगता है। उन्होंने चन्दू को अपने सीने से लगा लिया। उनकी ऑंखों में ऑंसू आ गए थे।’
विजया का मन बहुत भारी हो गया था। चन्दू की उम्र पॉंच साल की थी। विजया ने सोच लिया था कि वह देर से ही सही, अगले सेशन में चन्दू को स्कूल में भरती कराएगी और उसका खर्चा वह उठाएगी।
विजया को अपने पापा की याद आ गई, कितनी मेहनत से पढ़ाया उन्होंने हम तीनो बहिनों को। विजया सबसे बड़ी बेटी थी। उससे छोटी जया और रूपा। वे हमेशा कहते थे-‘क्यों परेशान होती है सुधा! हमारी ये तीनों बेटियॉं बेटो से कम नहीं है, और यह विजयलक्ष्मी तो हमें हर जगह विजय दिलाएगी।
यह मेरी बेटी नहीं बेटा है। जब विजया ने बी.ए . की परीक्षा उत्तीर्ण की तब उसके पिता की मृत्यु हो गई। विजया ने घर की हालत देखते हुए शिक्षिका की नौकरी कर ली। अपनी दोनों बहिनों को अच्छा पढ़ाया लिखाया और उनकी अच्छा रिश्ता देखकर उनकी शादी कर दी। विजया ने शादी नहीं की वह माँ को अकेला छोड़कर जाना् नहीं चाहती थी माँ ने कई बार कहा ‘बेटा!तू शादी करले कल जब मैं नहीं रहूँगी तू बिल्कुल अकेली रह जाएगी।’मगर उसने इस बात पर ध्यान नहीं दिया।
छुट्टियों में दोनों बहिने और उनके नन्हे मुन्ने नाना के घर आते थे। वह सबको बहुत प्यार से रखती। वह ५२ वर्ष की हो गई थी। उसे भी उसके जीवन में जो कमी थी, कभी-कभी बहुत अखरती थी। मगर अपनी माँ को अकेला छोड़ कर जाना नहीं चाहती थी।
एक दिन वह स्कूल जा रही थी। एक दृष्य देखकर उसकी आत्मा हिल गई माजी की झोपड़ी के आगे भीड़ जमा थी।
माजी का स्वर्गवास हो गया था और चन्दू उनसे लिपटकर जोर- जोर से रो रहा था। उसे समझाना बहुत मुश्किल हो रहा था। गालो पर ऑंसुओ के निशान हो गए थे। विजया ने उसे प्यार से बुलाया ‘चंदू बेटा मेरे पास आओ।’ उसे पता नहीं क्या हुआ दौड़कर विजया से जाकर लिपट गया बोला ‘आप दादी से कहो ना कि वो मुझसे बात करे।’
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विजया की ऑंखों से भी ऑंसुओ की बरसात हो रही थी। उसके मन में उस बच्चे के प्रति ममता जाग गई थी, उसने निश्चय कर लिया था कि वह इस बच्चे को विधिवत गोद लेकर इसकी परवरिश करेगी। उसने उस बच्चे को कानूनी रूप से गोद ले लिया और उसको विद्यालय में भर्ती कराया, प्यार से उसके मन से सारे डर को दूर किया।
विजया के इस निर्णय की कुछ लोगों ने आलोचना भी की मगर उसने इसकी परवाह नहीं की उसकी मॉं उसके निर्णय में उसके साथ थी। चन्दू के आ जाने से विजया के जीवन में भी खुशियों ने दस्तक दे दी थी, वह बहुत खुश थी उसे बेटे के रूप में पाकर।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित