*खुलना ग्रंथि का* – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

           अरे अदिति अपने अस्तित्व को पहचानो,जब हर पल कचौटा जाता है, अपमानित किया जाता है तो फैसला तो तुम्हे लेना ही पड़ेगा।

       तुम ठीक कह रही हो सपना।फैसला तो करना ही पड़ेगा।तुम मेरी बचपन की सखी हो,इसीलिये तुमसे अपने मन की हर बात शेयर कर लेती हूँ, इससे मेरा मन भी हल्का हो जाता है।

     अभी एक वर्ष ही तो हुआ था,आकाश और अदिति के प्रेम विवाह को।दोनो में ही असीम प्रेम,एक दूसरे के बिना न सकने की ललक थी। आकाश ने अपना जॉब लगने के बाद अपने पिता की अनुमति के बाद ही अदिति से विवाह किया था।माँ को यह शादी अस्वीकार्य थी,पर आकाश के पिता की अनुमति आगे वह अधिक कुछ बोल नही पायी,

और शादी हो भी गयी।शादी के छः माह बाद ही अचानक हृदयाघात के कारण आकाश के पिता गोलोकवासी हो गये।माँ पहले ही अदिति को नही चाहती थी सो अब उन्हें लगने लगा कि अदिति ही मनहूस है इसी के कारण आकाश के पिता की मृत्यु हुई है।अब आकाश तो ऑफिस चला जाता,इधर माँ अदिति पर व्यंग्य बाण छोड़ती रहती।

        प्रारम्भ में अदिति ने माँ के तानों पर ध्यान नही दिया,उसका विचार था कि आकाश के पिता की मृत्यु के कारण उन्हें काफी सदमा लगा है,इसी कारण शायद चिड़चिड़ा व्यवहार हो गया है।पर उनका कटु व्यवहार दिनोदिन असहनीय होता जा रहा था।एक बात अजीब थी कि आकाश के सामने माँ का व्यवहार सामान्य रहता,

पर उसकी अनुपस्थिति में उनका व्यवहार रौद्र रूप लेता जा रहा था।बात बात में अदिति को वे अपमानित करती रहती।आखिर एक दिन अदिति ने आकाश को सारी बात बता कर कहा कि वह मानसिक यंत्रणा के दौर से गुजर रही है।आकाश बोला अदिति तुम जो कह रही हो बिल्कुल सच हो सकता है,यह सब बाबूजी के असामयिक निधन के कारण है।

माँ से कहने का मतलब होगा कि वे और शोक सागर में डूब जायेंगी।अदिति तुम्हे ही धैर्य रखना होगा,मां कुछ दिनों में ठीक हो जायेंगी। अदिति कहती तो क्या कहती।उसकी यंत्रणा जारी थी।

      अब तो माँ सीधे ही आकाश के पिता की मृत्यु का जिम्मेदार अदिति को उसके मुंह पर ही ठहराने लगी थी।अदिति समझ नही पा रही थी कि करे तो क्या करे?जब भी अदिति को अवसर मिलता तो वह अपनी पीड़ा को अपनी सहेली सपना से साझा कर लेती।सपना ने तभी तो कहा क्यों अपमानित होती रहती हो,फैसला लेना पड़ेगा।फैसला जिसे सपना इंगित कर रही थी,वह क्या इतना आसान है?फिर आकाश तो उसे बेहद प्यार करता है।कैसी दुविधा थी सामने।

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      अदिति ने अपने सिर को एक झटका दिया और मन को मजबूत कर निश्चय कर लिया कि उसे खुद ही इस जंजाल से निकलना होगा।उसने समझ लिया माँ जो व्यवहार उसके साथ कर रही है,उसे आकाश के सामने उजागर नही करती है,इसका मतलब वे सबकुछ जानबूझकर उसे सताने को करती है। अदिति ने भी अपनी योजना तैयार कर ली।

       अब माँ कुछ भी बोलती उससे दुगने स्वर में अदिति भी प्रतिकार करने लगी।अदिति का ये रूप मां के लिये आश्चर्यजनक था,ऐसा तो माँ ने सोचा भी नही था।अदिति भी आकाश के सामने  सामान्य रहती।माँ अब अदिति का यह रूप देखकर सहमने लगी थी और पहले की भांति उनका अदिति को तासना धीरे धीरे कम होता जा रहा था।इतना सब होने पर भी अदिति माँ का पूरा ध्यान रखती।असल मे माँ के मन मे तो ग्रंथी अदिति के साथ आकाश के प्रेमविवाह की थी।

          एक दिन माँ बाथरुम गिर गयी और उनके माथे में चोट लग गयी और पावँ में मोच आ गयी,ये तो अच्छा हुआ कि कोई फ्रैक्चर नही हुआ।तब आकाश घर पर नही था,तब अदिति ने ही माँ को संभाला, डॉक्टर को घर पर ही बुला लिया।मोच के कारण माँ को चलने फिरने में परेशानी होने लगी तो अदिति ने ही उनकी पूरी सेवा की।मां की ग्रंथि खुलती जा रही थी,

धीरे धीरे मां ठीक हो गयी।उस दिन सुबह जब अदिति की आंखे खुली तो उसे माँ की आवाज सुनाई दी,अरे बेटी मुझे एक कप चाय तो दे दे।बेटी शब्द सुन अदिति की आंखे अनायास ही नम हो गयी और दौड़कर माँ कहते कहते उनसे चिपट गयी।

       अदिति ने जो फैसला किया था,आकाश को न छोड़ने का,माँ के व्यवहार को अपने पक्ष में बदलने का,सटीक साबित हुआ था।

बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित

#निर्णय तो लेना पड़ेगा  कब तक आत्मसम्मान खोकर जियोगी*

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