‘खुद पर भरोसा’ – अनीता चेची

जिया अब 16 वर्ष की हो गई थी। उसका इस तरह से  अल्हड़ पन, उछलते, कूदते पूरे घर में घूमना दादी को बिल्कुल भी पसंद नहीं था।  वे बार-बार  कहती जिया कुछ घर का काम भी किया करो। अगले घर जाकर नाम बदनाम करोगी।

 जिया हंसी में उड़ा देती।

 अरे !नहीं अम्मा देखना  मैं आपका नाम रोशन करूंगी।

 

  अम्मा -‘पता नहीं कैसा नाम रोशन करेगी ?अभी तो तुझे खुद से रहना भी नहीं आता और तेरे पिताजी हैं कि तेरे लिए लड़का ढूंढने की कोशिश में है।

 

पिताजी बेटी को देखकर हमेशा खुश रहते हैं और कहते देखना एक दिन अपनी बेटी को बहुत बड़े परिवार में दूंगा, रहीस परिवार  में राज करेगी मेरी बेटी।

 

जैसे सरस्वती उनके मुॅंह पर बैठी हुई थी कुछ दिनों बाद ही जिया का रिश्ता पढ़े-लिखे परिवार में हो गया ।अच्छी सुंदर थी तो लड़के वालों को जल्दी ही पसंद भी आ गई। शादी के बाद जिया की सभी शरारतें खत्म हो गई।

 




 उसे ऐसा लग रहा था मानो एक सोने के पिंजरे में बंद हो गई हो ।समय पर उठना, खाना-पीना ,जगना, सोना यहां तक कि हॅंसने पर भी पूरी पाबंदी थी । जिया सोचती खुलकर हॅंसने में भी क्या मान मर्यादा जाती है?

 

उसके  पति को भी स्त्रियों का बाहर घूमना ,हॅंसना, बोलना बिल्कुल पसंद नहीं था। वे भी गंभीर स्वभाव के थे और हमेशा गंभीर बातें करते।

 

  सासु माॅं की नाक पर तो जैसे हमेशा गुस्सा  चढ़ा रहता। उन्हें देखकर तो वह थरथर कांपती। वे समय की बड़ी ही पाबंद और सफाई पसंद थी ।

जबकि जिया हर चीज उधर से उधर रखने वाली और मस्ती में रहने वाली थी। वे हर समय जिया को टोकती रहती। जिया ने कभी अपनी सासु माॅं को खुलकर हॅंसते हुए नहीं देखा था। उनका मानना था  अच्छे घर की बहू बेटियां ज्यादा जोर से नहीं हॅंसा करती। हॅंसने से मान मर्यादा खत्म होती हैं। ये विचारधारा जिया को बहुत अजीब लगती।वह सोचती खुश रहना तो परमात्मा का  अनुपम उपहार है।

 

मान मर्यादा की ऐसी विचारधारा में वह गुड़िया की भांति हो गई थी। जहां पूरे गांव में वह अपने स्वभाव के कारण सबकी लाडली थी। वही ससुराल में अपने इस स्वभाव के कारण  दुत्कारी जा रही थी। उसे खुद पर ही शक होने लगा था। अब वह खुद को बदलने लगी थी और इतना बदल गई थी कि उसने हॅंसना, बोलना,  सब  छोड़ दिया था । जिसके कारण वह धीरे-धीरे निराशा में जाने लगी क्योंकि यह सब उसके स्वभाव के विपरीत था।

 

  अब वह खुद में सिमट रही थी परंतु  उसने हार नहीं मानी ।उसे खुद पर भरोसा था । उसने अपने इस एकाकीपन को लेखनी का रूप दिया और लिख डाली बहुत सारी कविता ,कहानियाॅं और उपन्यास। जिसे लोगों ने खूब पसंद किया।

जहां एक और वह दुत्कारी  जा रही थीं वहीं दूसरी ओर उसके पाठकों के द्वारा उसे भरपूर प्रेम और सम्मान मिल रहा था।

 

 शायद वह परमात्मा के द्वारा इस संसार को आनंद का संदेश देने के लिए ही पैदा हुई थी।

 

अनीता चेची, मौलिक रचना

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