ख़ुद को श्रेय क्यों न दूँ ??? – शनाया अहम : Moral Stories in Hindi

सपना एक गरीबी घर की लड़की थी , उसका बचपन बहुत ही अभाव में गुज़रा लेकिन उसे अपने घर की गरीबी से कोई शिकवा शिकायत नहीं थी।  सपना पढ़ने में होशियार थी।  उसके पिता रमेश जी ने एक सरकारी स्कूल में उसका दाखिला कराया हुआ था , इसी सरकारी स्कूल से सपना ने 12वीं का परीक्षा बहुत ही अच्छे नंबरों से पास की। 

सपना आगे कॉलेज में दाख़िला लेना चाहती थी, लेकिन उसके घर वालों ने उसकी शादी ये कहकर तय कर दी कि तेरे से बड़े दो भाई बैठे हैं और जब तक तेरे हाथ पीले नहीं हो जाते , उनकी शादी नहीं कर सकते इसलिए बहुत हो गई पढाई लिखाई, अब जाकर अपना घर सम्भालों। 

लेकिन पापा मैं आगे पढ़ना चाहती हूँ , 12वीं की पढ़ाई तो एक सीढ़ी थी जिसे मैं चढ़ चुकी हूँ, लेकिन अब मैं आगे पढ़कर कुछ बनना चाहती हूँ , अपने पैरों पर खड़े होना चाहती हूँ। 

सपना ने लाख समझाने की कोशिश कि लेकिन घरवालों ने उसकी एक न सुनी और उसकी शादी पंकज से कर दी।  घरवालों की इज़्ज़त रखने के लिए सपना शादी करके पंकज के घर आ गई।  सपना ने सोचा था कि वो अपनी पढ़ाई को जारी रखने के लिए पंकज से बात करेगी,

शादी वाली रात जब सपना ने पंकज से इस बारे में बात की तो उसने कहा कि पढ़ाई छोड़ो और कोई छोटी मोटी नौकरी देख लो ,क्योंकि मेरी कमाई इतनी नहीं है जो घर चला सकूँ ,मैं खुद अपने पापा के सहारे हूँ।  पंकज के मुंह से ये बात सुनकर सपना खड़ी की खड़ी रह गई ,उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि शादी की रात ही पंकज उसे नौकरी करने को कहेगा और इस घर में उसका ख़ुद का कुछ भी नहीं है।  

दिन गुज़रने लगे , सपना के मन में अपनी पढ़ाई और पति के निकम्मेपन को लेकर टीस उठती रहती लेकिन वो कुछ कर न पाती।  उसने कई बार अपने मायके में पंकज के काम करने में रूचि न होने और सपना पर ध्यान न देने की बात कही लेकिन मायके वालों ने ये कहकर पल्ला झाड़ लिया कि अब वही तेरा घर है और तेरी क़िस्मत है , सपना ने फिर कभी अपना दुःख मायके में भी नहीं कहा और दिल पर चोट खाने के बाद उसने मायके से भी आना जाना बंद कर दिया । 

एक साल बाद सपना के बेटे ने जन्म लिया, बेटे के जन्म के बाद सपना को एक सहारा मिल गया , सपना ससुराल के कामों के साथ सारा दिन अपने बेटे में लगी रहती और उसे ही अपनी ज़िंदगी का सहारा समझती। बेटा होने से खर्चों में बढ़ोतरी हो गई थी , ससुर ने भी अब साफ़ कह दिया था कि मैं अब और खर्च नहीं उठा सकता ,अपना अपने आप देखो। 

“सुनिए, पापा सही कह रहे हैं, आखिर वो क्यों हमारा ख़र्च उठाएंगे , आप कुछ काम करो , नीचे रोड की दुकान है हमारी।  मेरे ज़ेवर बेचकर दुकान में सामान भर लो ” .

हाँ शायद, तुम ठीक कहती हो , ऐसे ही करते हैं।  पंकज ने सपना की बात से सहमति जताते हुए कहा। 

सपना ने अपने गहने पंकज को दे दिए और पंकज उन्हें बेचकर कुछ सामान ले आया , थोड़ा सा सामान देखकर पंकज से सपना ने पूछा कि इतना ही सामन आया है बस तो पंकज ने कहा कि मैंने पैसे अपने अकाउंट में डाल दिए हैं , सामान ज़रा सा ही रखेंगे अभी। ग्राहक को आना होगा तो आ जायेगा। 

लेकिन ग्राहक सामान देखकर ही तो आएगा , आप तो सिर्फ बीड़ी सिगरेट के कुछ डब्बे ले आये हैं।  सपना ने ग़ुस्से में पंकज से कहा।  जिसे सुनकर पंकज बेशर्मों की तरह घर से निकल गया। 

सपना समझ चुकी थी कि उसके गहने बर्बाद हो गए हैं,वो अपने आंसुओ को पोंछते हुए अपने बेटे के पास लेट कर उसे प्यार करने लगी और जहाँ उसकी सुनने वाला कोई नहीं था तो वो अपने बेटे से ही अपने दिल की बात कर लेती थी, हालांकि उसका बेटा अभी बहुत छोटा था ,उसकी बात को न समझ सकता सकता था न उसका जवाब दे सकता था , लेकिन फिर भी वो अपनी माँ के आंसुओ का गवाह था, उसकी दिल की बात सुनाने का सहारा था। 

दिन बीत रहे थे , पंकज ने धीरे धीरे अकाउंट में डाले पैसे भी ख़त्म कर दिए और दुकान भी फिर से ख़ाली हो गई। बेटे के दूध के लिए भी सपना को न चाहकर भी ससुर के आगे हाथ फ़ैलाने पड़ते।  ससुराल में नाते रिश्तेदार भी मुंह हाथ बनाकर बातें बनाते और पति की निक्क्मेपन की वजह से सपना की भी कोई इज़्ज़त नहीं करता था

लेकिन सपना को इस बात से ज़्यादा अपने बेटे की फ़िक्र थी. हारकर उसने एक स्कूल में आवेदन किया , वो सिर्फ 12वीं पास थी इसलिए उसे नौकरी तो मिल गई लेकिन नर्सरी के बच्चों की क्लास दी गई। और तनख़्वाह भी बहुत कम थी, पर सपना ने ये सोचकर ये नौकरी कर ली कि कम से कम बेटे के दूध दवाई का ख़र्च तो निकलेगा।

अब सपना सुबह सुबह घर का काम निपटा कर बेटे को पंकज को सौंपकर स्कूल चली जाती और आते ही सारा दिन बेटे के साथ बिताती।  सपना ने कुछ छोटे बच्चों को घर में ट्यूशन देना शुरू कर दिया तो उसकी आमदनी थोड़ी और बढ़ गई। 

सपना ने पंकज से साफ़ कह दिया कि वो अपनी कमाई से घर और बच्चे को पाल लेगी लेकिन पंकज उसकी कमाई की तरफ़ देखे भी न। नहीं तो अब वो पुलिस कम्प्लेन कर देगी जिसे सुनकर पंकज डर गया।  धीरे धीरे दिन बीतने लगे , सपना ने अपनी कमाई से थोड़ा थोड़ा बचकर बी.ए. का फॉर्म भर दिया।

ग्रेजुएशन पूरा होने के बाद उसके बाद एम. ए. का फॉर्म भरा, तब तक उसका बेटा भी स्कूल जाने लगा। इसके बाद सपना बी. एड किया और अब सपना को बड़ी क्लास भी मिल गई और उसका वेतन भी काफ़ी बढ़ गया। सपना ने एक तरफ़ अपनी पढ़ाई जारी रखकर अपना अधूरा सपना पूरा कर लिया , दूसरी तरफ़ अपनी सूझबूझ से अपन घर को संभाला , और अपने बेटे की अच्छी परवरिश भी की , उसका बहुत अच्छे नामी स्कूल में एडमिशन कराया।  

आज सपना ने अपने बलबूते अपने घर में सुख सुविधा का हर सामान जुटा लिया, खाली पड़ी दूकान में अपना ख़ुद का कोचिंग सेण्टर खोल लिया , स्कूल से आने के बाद वो कोचिंग सेंटर में बच्चों को कोचिंग देती और देखते देखते वो पूरी तरह से अपने पैरों पर खड़ी हो गई।  

आज 18 साल बाद सपना एक सशक्त महिला थी , आज उसे ख़ुद पर गर्व था।  

आज एक नेशनल चैनल पर उसका इंटरव्यू चल रहा था।  

मैम, आज आप शहर का सबसे बड़ा कोचिंग सेण्टर चला रही है , शहर के सबसे बड़े स्कूल की प्रिंसिपल भी हैं, अपनी इन उपलब्धियों का श्रेय आप किसे देना चाहती हैं ???  रिपोर्टर के इस सवाल पर सपना ने कहा कि *मैं ख़ुद को इन उपलब्धियों का श्रेय देना चाहूंगी , क्योंकि ये सब मैंने अपने बलबूते किया है। विषम परिस्तिथियों से लड़ते हुए मैं आगे बढ़ी हूँ*। 

आपके पति का इसमें क्या योगदान रहा ??? रिपोर्टर ने अगला सवाल पूछा। 

*कुछ नहीं , उन्होंने कभी कोई ज़िमेदारी नहीं निभाई बल्कि उनके होते हुए भी मैंने एक सिंगल मदर की ज़िंदगी जी है, अपने बेटे की परवरिश अकेले की है।  तो उनका कोई योगदान नहीं रहा*।  

रिपोर्टर ने अचम्भे से सपना से फिर सवाल किया कि आप इतने बेबाकी से जवाब दे रही हैं , क्या आपको नहीं लगता कि एक भारतीय नारी का समाज के सामने पति को लेकर इस तरह के जवाब देना पच पायेगा ???

सपना ने बहुत ही द्रढ़ता से जवाब दिया कि *अगर मैं झूठ बोलती कि मायके का साथ मिला, ससुराल का साथ मिला , पति का साथ मिला तो समाज पचा लेता लेकिन अगर मैं सच बोल रही हूँ तो समाज पचा नहीं पायेगा। .क्यों भाई*???

*क्या समाज झूठ सुनना चाहता है*???

सपना के जवाब से रिपोर्टर खामोश हो गया , लेकिन सपना ने अपनी बात जारी रखी, कि *समाज को सच स्वीकारना आना चाहिए और मैं हर उस औरत से अपील करती हूँ जो मेरी तरह ज़िंदगी गुज़ार रही हैं या गुज़ार चुकी हैं , जो सारा दिन घर के कामों में पिसती रहती हैं लेकिन उन्हें तारीफ़ के दो बोल नहीं मिलते। 

सिर्फ ये सुनने को मिलता है कि तुम घर में सारा दिन करती क्या हो ??? दूसरी तरफ़ जो औरतें अपने बच्चों की परवरिश अकेले कर रही हैं और पति के होते हुए भी सिंगल मदर की भूमिका निभा रही हैं, उन सबसे मैं आग्रह करती हूँ कि अपनी ज़िम्मेदारियों को अकेले उठाने का श्रेय ख़ुद को देना शुरू करें.  जब हर औरत ख़ुद को श्रेय देगी ख़ुद को इज़्ज़त देगी तभी समझ उसे स्वीकारेगा और इज़्ज़त देगा*। 

सपना का ये इंटरव्यू समाज में ही रहने वाला उसका पति , उसके मायके वाले, उसके ससुराल वाले सब देख रहे थे , सब के सब ख़ुद में शर्मिंदा थे लेकिन वो सब सिर्फ एक दूसरे का मुंह ताक सकते थे।  लेकिन इस सबके बीच में सपना के इंटरव्यू पर उठ उठकर तालियां मारने वाला भी एक शख़्स मौजूद था और वो था सपना का बेटा। 

इंटरव्यू ख़त्म होते ही जैसे ही सपना घर आई उस का बेटा उसके गले से लग गया और बोला “माँ मुझे आप पर नाज़ है “

सपना ने कसकर बेटे को अपने दिल से लगा लिया ठीक वैसे ही जैसे वो 18साल पहले आंसू भरी आँखों से नन्हे से बेटे को सीने से लगाकर रो पड़ती थी , आज भी सपना की आँखों में आंसू तो थे लेकिन ये आंसू ख़ुशी और तसल्ली के थे। 

आज पंकज भी दोनों को सीने से लगाने के लिए आगे बढ़ा ही था कि इतने में सपना ने कहा कि “खाना बना रही हूँ , आप खाने के बाद दवाई ज़रूर ले लेना और कल सुबह मेरा बेटा आपको चेकअप के लिए ले जायेगा , क्योंकि कल मैं नहीं आ सकती , मुझे कल जल्दी जाकर एक्स्ट्रा क्लास लेनी है “. इतना कहकर सपना कपड़े बदलने कमरे की तरफ़ बढ़ गई.

आज पंकज को समझ आ गया था कि सपना उसके प्रति सिर्फ अपनी ज़िम्मेदारी निभा रही है , पति पत्नी के रिश्ते को ख़ुद पंकज ने बहुत पीछे छोड़ दिया है और अब उस वक़्त को वापस लाना नामुमकिन है , ये सोचते हुए पंकज भी थके क़दमों से अपने कमरे की तरफ़ बढ़ गया। 

पीछे से बेटा खड़ा हुआ ये सोचता रहा कि मेरी माँ ने पिता के होते हुए भी सिंगल मदर की तरह मुझे पाला , घर को संभाला, लेकिन फिर भी मुझसे पिता के ख़िलाफ़ एक शब्द कभी नहीं कहा , मुझे उनसे अलग नहीं किया , आज भी वो पिता जी के लिए अपनी ज़िम्मेदारी निभा रही हैं , मेरी माँ एक त्याग की मूर्ति है. 

उसने जो ज़िम्मेदारियाँ अकेले निभाई हैं तो फिर *क्यों वो अपने आप को श्रेय न दें* ???

इन सब ज़िम्मेदारियों को निभाने और आज एक सशक्त और कामयाब महिला होने का सारा श्रेय सिर्फ और सिर्फ मेरी माँ को जाता है।

शनाया अहम

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