नमिता और वृंदा पड़ोसी बहुएं हैं। दोनों की दोस्ती पूरे मोहल्ले में प्रसिद्ध है। दोनों रोज शाम को पास के पार्क में सैर करने अवश्य जाती हैं और इस बहाने मन की बातें भी कर लेती हैं।
एक शाम की सैर के दौरान, वृंदा को कुछ चिंतित और परेशान देख नमिता ने पूछा,
“आज तेरा मूड़ उखड़ा उखड़ा क्यों है?”
वृंदा ने गहरी सांस ली और कहा,
“बस क्या बताऊं तुझे… मैं तो बहुत तंग आ गई हूं। बहू चाहे कितना भी कर ले… वह बेटी नहीं बन सकती।”
नमिता ने यह सुनकर चौंकते हुए पूछा,
“पर तुझे बेटी बनना ही क्यों है? तू है तो अपने मम्मी-पापा की बेटी। फिर तुझे ससुराल में क्यों बेटी बनना है?”
वृंदा ने धीरे-धीरे अपनी परेशानियां साझा की,
“तुझे पता है मेरी ननद रितु चार दिन रहकर आज ही गई है। उस पर सबने क्या प्यार उड़ेला है। मुझे तो किसी ने कभी ऐसा प्यार नहीं दिया।”
नमिता मुस्कराई और कहा,
“रितु चार दिन की मेहमान बनकर आती है। मेहमानों की आवभगत तो हमारी संस्कृति की विशेषता है। तूने सुना नहीं क्या, ‘अतिथि देवो भव’? ये तेरा घर है। तुझे अपने ही घर में ये बेटियों वाला, मेहमानों जैसा प्यार क्यों चाहिए?”
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वृंदा ने गहरी सोच के साथ उत्तर दिया,
“वो इसलिए क्योंकि बहू को कहां कोई प्यार करता है? कौन पूछता है बहू को? सारा दिन खटती हूं फिर भी बेटी नहीं बन पाती।”
नमिता ने कहा,
“यही तो तू गलत कर रही है। देख मेरी बात मान। तू ये बेटी बनने की कोशिश ही मत कर। अपने दृष्टिकोण में थोड़ा बदलाव ला। तू अपने ही घर में किसी और से पूछ की, प्यार की मोहताज मत बन। ठसक से मालकिन बन कर रह। बेटी के हिस्से में चार दिन की चांदनी आती है। क्या तुझे भी यही चाहिए? फिर तू बाकी दिन क्या करेगी?”
वृंदा ने नमिता की बातों पर ध्यान दिया और कहा,
“नहीं तो, चार दिन से क्या होगा? यार, इस मामले में तेरी बातें तो बिल्कुल अलग तरह की हैं। सब कहते हैं कि हम बेटी बनकर दिखाएंगे तो सास मां क्यों नहीं बनेगी? क्या तूने सच में ससुराल में कभी बेटी बनना नहीं चाहा?”
नमिता ने कहा,
“मेरी विदाई के वक्त मेरे पापा ने कहा था कि बेटियां पराई धरोहर होती हैं। अब ससुराल ही तेरा घर है। एक अच्छी बहू बनकर अपनी जिम्मेदारियां निभाना। बस मैंने तभी उनकी बात की गांठ बांध ली।”
वृंदा ने फिर से सवाल किया,
“नमिता, तो ससुराल में तू बहू के रूप में कभी उकता नहीं जाती?”
नमिता ने आत्मविश्वास से कहा,
“अपने घर में क्या उकताना? पूरी धौंस से रहती हूं। मेरा घर है तो इसका रखरखाव, इसकी जिम्मेदारियां मेरी। मेरी ननद परी आती है तो उस पर प्यार लुटाने का अधिकार केवल अपने सास-ससुर और पति को क्यों दूं? उसकी पसंद के व्यंजन बनाना, उसकी पसंद की शॉपिंग करवाना और उसके साथ गप्पें हांकना… सारे हक लेकर रहती हूं। परी अक्सर कहती भी है कि ‘भाभी अपने घर जल्दी जल्दी बुलाते रहा करो, आपकी मेज़बानी अच्छी लगती है।”
वृंदा ने नमिता की बातें ध्यानपूर्वक सुनीं और कहा,
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“वाह, नमिता वाह! मैंने तो कभी इस एंगल से सोचा ही नहीं था। ससुराल में बेटी बनने के चक्कर में मैं नाहक ही परेशान हो रही थी। पर नमिता, इसका कारण ये भी था कि मैं जब भी मायके जाकर आती हूं, मेरी सास को उनके दिए उपहार बिल्कुल पसंद नहीं आते। मैंने अपना मन मारकर धीरे-धीरे मायके जाना कम कर दिया और अपनी सास की ही बेटी बनने की कोशिश करने लगी जो कभी संभव नहीं है।”
नमिता ने मुस्कराते हुए कहा,
“देख वृंदा, अल्हड़ सी, मस्त सी, आवभगत करवाने वाली बेटी बनने का मजा तो मायके में ही आता है। इसलिए पापा की परी, मम्मी की गुड़िया और दादी की दुलारी बनने मैं तो साल में दो तीन बार मायके जरूर जाती हूं।”
वृंदा ने बात बीच में काटते हुए कहा,
“मायके जाने का मन तो मेरा भी बहुत होता है। पर उपहार….। नमिता, तुझे उपहार वाली दिक्कत नहीं आती होगी ना!”
नमिता ने ठहाका लगाया और कहा,
“वृंदा, मायके से ज्यादा उपहार तो मैं लाती नहीं और थोड़े तो वो देकर ही मानते हैं। अब अगर ससुराल में किसी को पसंद नहीं आते तो मैं कह देती हूं कि मेरे मायके वालों की पसंद पर निर्भर थोड़ी न हैं हम। हमें किस चीज की कमी है? खाता-पीता घर है भई हमारा। जिसे जो पसंद है अपने पैसों से खरीद लेंगे हम।”
यह सुनकर वृंदा भी ठहाका मारकर हंस पड़ी।
“यार नमिता, तू सिर्फ ससुराल की पक्की बहू नहीं, बल्कि पक्की मास्टरनी भी है। बातों-बातों में कितनी अच्छी कोचिंग दी है तूने! आगे का सिलेबस मैं स्वयं करूंगी और तुझे मेरिट से पास होकर दिखाऊंगी।” वृंदा ने नमिता को बाय करते हुए अपनी बात कही।
उस दिन वृंदा ने आत्मविश्वास के साथ बेटी बनने के झमेले से बाहर निकलकर बहू बनने अपने घर की ओर कदम बढ़ा दिए।
—सीमा गुप्ता (मौलिक व स्वरचित)
प्रतियोगिता वाक्य- #”बहू चाहे कितना भी कर ले… वह बेटी नहीं बन सकती।”